जनवरी का महीना और साल था 1736 ईस्वी। देश के शासकों के एक मजबूत संगठन के ध्येय को लेकर पेशवा बाजीराव (प्रथम, 1700-1740 ई.) ने मेवाड़ की ओर भी रुख किया। तब यहां के महाराणा जगतसिंह (द्वितीय) थे। महाराणा ने इस बात का समर्थन किया कि सभी शासकों को एक होकर पेशवा के साथ हो जाना चाहिए। हालांकि उसके यहां आने की एक वजह और भी थी। सदाशिव बल्लाल जो पिछले एक साल से पट्टे की सनद के लिए कोशिश कर रहा था, उसे पूर्णता देकर कर के बारे में एक समझौता करना। हां, मेवाड़ ने इसे एक परेशानी के तौर पर लिया। महाराणा ने मुलाकात उदयपुर से कहीं दूर ही करने के लिए प्रधान बिहारीदास पंचाेली को भेजा किंतु बाजीराव का इस ओर आगमन निरंतर था। उसने डूंगरपुर के शासक महारावल शिवसिंह से भेंट की और यह भरोसा कर लिया कि कोई उसके विरोध में नहीं है। उसने 25 जनवरी को मेवाड़ की सीमा में प्रवेश किया तो महाराणा ने सलूंबर के रावत केसरीसिंह के मार्फत उदयपुर निमंत्रित करने की पेशकश की। बाजीराव ने निमंत्रण स्वीकार किया और दूसरी फरवरी को उदयपुर पहुंचा। आहाड़ के पास 'चंपाबाग' में उसको शाही सत्कार के साथ ठहराया गया और भेंट आद
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण