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Showing posts from April, 2019

विश्व इतिहास के उन तीन सेनापतियों में शामिल हैं, जिसने एक भी युद्ध नहीं हारा | पेशवा बाजीराव

   जनवरी का महीना और साल था 1736 ईस्‍वी। देश के शासकों के एक मजबूत संगठन के ध्‍येय को लेकर पेशवा बाजीराव (प्रथम, 1700-1740 ई.)  ने मेवाड़ की ओर भी रुख किया। तब यहां के महाराणा जगतसिंह (द्वितीय) थे। महाराणा ने इस बात का समर्थन किया कि सभी शासकों को एक होकर पेशवा के साथ हो जाना चाहिए। हालांकि उसके यहां आने की एक वजह और भ‍ी थी। सदाशिव बल्‍लाल जो पिछले एक साल से पट्टे की सनद के लिए कोशिश कर रहा था, उसे पूर्णता देकर कर के बारे में एक समझौता करना। हां, मेवाड़ ने इसे एक परेशानी के तौर पर लिया। महाराणा ने मुलाकात उदयपुर से कहीं दूर ही करने के लिए प्रधान बिहारीदास पंचाेली को भेजा किंतु बाजीराव का इस ओर आगमन निरंतर था। उसने डूंगरपुर के शासक महारावल शिवसिंह से भेंट की और यह भरोसा कर लिया कि कोई उसके विरोध में नहीं है। उसने 25 जनवरी को मेवाड़ की सीमा में प्रवेश किया तो महाराणा ने सलूंबर के रावत केसरीसिंह के मार्फत उदयपुर निमंत्रित करने की पेशकश की। बाजीराव ने निमंत्रण स्‍वीकार किया और दूसरी फरवरी को उदयपुर पहुंचा। आहाड़ के पास 'चंपाबाग' में उसको शाही सत्‍कार के साथ ठहराया गया और भेंट आद

जिन्होंने पाकिस्तान बनवाई वह स्वयं पाकिस्तान नहीं गए इसका कारण क्या है

मोहम्मद इस्माइल मुस्लिम लीग के मद्रास प्रांत के बड़े नेता थे। 1946 के चुनाव में प्रांत अध्यक्ष रहते उन्होंन जिन्ना को मद्रास की सभी मुस्लिम रिजर्व 28 सीटें जिताकर दी थी ताकि जिन्ना अलग इस्लामिक देश पाकिस्तान बना सके। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया लेकिन आपने आज तक एक भी मद्रासी मूल का पाकिस्तानी नहीं देखा होगा। क्योंकि जिन मोहम्मद इस्माइल ने 1946 में जिन्ना को मद्रास में विजय दिलाई वो ना तो खुद पाकिस्तान गए ना उनके कहने पर जिन्ना को वोट देने वाला उनका कोई समर्थक। तो अब सवाल ये है कि पाकिस्तान बनवाने के बाद मोहम्मद इस्माइल ने भारत में रह कर क्या किया। मोहम्मद इस्माइल ने 1948 में एक नई पार्टी बनाई और उसका नाम रखा ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और भारत को ही पाकिस्तान बनाने के काम में जुट गए। और जिस कांग्रेस के खिलाफ 1940 के दशक में वो जिन्ना के नेतृत्व में लड़ रहे थे आज उसी कांग्रेस के साथ मिलकर केरल में चुनाव लड़ते हैं। साल 1996 में जिन्ना के साथ मिलकर पाकिस्तान बनवाने वाले मोहम्मद इस्माइल के सम्मान में भारत सरकार डाक टिकट जारी किया। देश को विभाजित करने वालों का ऐसा सम्मान विश्व के

गजशास्त्रम महर्षि पालकाप्या

दक्षिण राजस्‍थान में पाये जाते थे कभी छोटे नख वाले हाथी.... महर्षि पालकाप्‍य ने बहुत पहले गजशास्‍त्रम़ की रचना की है। इसमें देश के प्राचीन वनों का वर्णन आया है। पालकाप्‍य की रचना इसलिए पुरानी हैं कि उसमें पृथ्‍वी को सात समुद्रों वाली नहीं, जैसा कि गुप्‍तकाल में सप्‍तसिंधुपर्यन्‍त कहा गया है, बल्कि चतुस्‍सागरपर्यन्‍ता कहा गया है, इसलिए यह ईसापूर्व की रचना है। उसमें अंगदेश के चक्रवर्ती राजा रोमपाद के प्रश्‍नों का उत्‍तर है - अंगानामधिप: श्रेष्‍ठ: श्रीमानिन्‍द्रसमद्युति। येनेयं पृथिवी सर्वा सशैलवनकानना।। चतु:सागरपर्यन्‍ता भुक्‍तासीन्मित्रतेजसा। दानेन चन्‍द्रसदृशो दीप्तिमान् दिव्‍यतेजसा।। स रोमपादनृपतिश्‍चक्रवर्ती महायशा:। रोमेति नाम पद्मस्‍य रेखाकारस्‍य विश्रुतम्।। (पालकाप्‍योत्‍पत्ति क्रम कथनं 1, 1-3) इस ग्रंथ में विविध वनों का वर्णन आया है। ग्रंथ के अनुसार दक्षिण राजस्‍थान का वन प्रदेश तत्‍कालीन सौराष्‍ट् वन के अंतर्गत आता था। यह वन रेवा नदी या नर्मदा की अंतिम सीमा से लेकर आबू पर्वत तक ओर द्वारका से लेकर सौराष्‍टृ तक फैला हुआ था। यह वन पचास योजन में फैला हुआ था। समग्रत: इसे 'सौर

क्या आप पुदीना का यह चमत्कार जानते हैं

पुदीना के इन जबरदस्त फायदों को सुन आप भी हो जायेंगे हैरान* पुदीना की मूल उत्त्पत्ति का स्थान भूमध्यसागरीयप्रदेश है, परंतु आजकल संसार के अधिकतर देशों में पुदीना का उत्पादन हो रहा है। पुदीना की एक प्रकार की पहाड़ी की किस्म भी होती है *परिचय :* पुदीना की मूल उत्त्पत्ति का स्थान भूमध्यसागरीयप्रदेश है, परंतु आजकल संसार के अधिकतर देशों में पुदीना का उत्पादन हो रहा है। पुदीना की एक प्रकार की पहाड़ी की किस्म भी होती है। भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पुदीना उगाया जाता है। पुदीना में अधिक तेज खुशबू होती है। पुदीना की चटनी अच्छी बनती है। पुदीना का उपयोग कढ़ी में और काढ़ा बनाने में किया जाता है। दाल-साग आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता है। यदि हरा व ताजा पुदीना उपलब्ध न हो तो उसके पत्तों को सुखाकर उपयोग में लाया जा सकता है। पुदीना में से रस निकाला जाता है। पुदीना की जड़ को जमीन में बोकर पुदीना की उत्त्पति की जाती है। पुदीना किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है। घरों के बाहर लॉन में, बड़े गमलों में पुदीना को उगा सकते हैं। पुदीना ( pudina )के पत्तों से भीनी-भीनी सुगंध आती है। रंग : पुदीना का रंग हरा हो
यह पोस्ट एक भाई ने दिया था जिसकी वेदना का एहसास हमें भी हुआ तो हमने कुछ संशोधन और समाधान देने का प्रयास किया है यदि आपने मैनफोर्स कॉन्डोम का 00:29 सेकंड का नया विज्ञापन नहीं देखा तो जल्द देख डालिये .... और विज्ञापन देखने के बाद भी आपका खून न खौले तो एक वार खुद पे आत्मचिंतन जरूर कीजियेगा .... अपने ज़मीर में अवश्य झांकियेगा .... विज्ञापन फ़िल्म करण अर्जुन की थीम पे बेस्ड है .... एक वृद्ध हिन्दू महिला विधवा के गेटअप में भगवान महाकाल के मंदिर में मूर्ति के सामने खड़ी रो पीट चीख चिल्ला रही है कि हे भगवान मेरे करण अर्जुन कब आएंगे ?? .... आसमान और धरती का सीना चिर के आएंगे .... जी हां बिल्कुल वैसे ही जैसे राकेश रोशन निर्देशित फिल्म करण अर्जुन में राखी पे फिल्माये दृश्य जैसे .... विज्ञापन की वृद्ध अभिनेत्री की भाव भंगिमा परिधान अदाकारी संवाद सब राखी जैसे .... विज्ञापन में तभी पीछे से एक वृद्ध आदमी आता है जो उस वृद्ध महिला का पति होता है वो अपनी पत्नी से कहता है .... अरे भाग्यवान करण अर्जुन कैसे आएंगे तुम 7 जन्मों से मुझे रोज़ रात को मैनफोर्स कॉन्डोम जो पहनाती हो .... अब ना करण आएगा ना अर्जुन आए

आखिर इस सबरीमाला मंदिर में जाने को क्यों बेताब हैं विधर्मी सनातनद्रोही षड्यंत्रकारी

जानिये और समझिये कि सबरीमला मंदिर क्यों सबकी आंखों में खटक रहा है। केरल में सबरीमला के मशहूर स्वामी अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के नाम पर चल रहे विवाद के बीच लगातार यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस मंदिर में ऐसा क्या है कि ईसाई और इस्लाम धर्मों को मानने वाले तथाकथित एक्टिविस्ट भी कम से कम एक बार यहां घुसने को बेताब हैं। इस बात को समझने के लिये हमें केरल के इतिहास और यहां इस्लामी और राज्य में बीते 4-5 दशक से चल रही ईसाई धर्मांतरण की कोशिशों को भी समझना होगा। मंदिर में प्रवेश पाने के पीछे नीयत धार्मिक नहीं, बल्कि यहां के लोगों की सदियों पुरानी धार्मिक आस्था को तोड़ना है, ताकि इस पूरे इलाके में बसे लाखों हिंदुओं को ईसाई और इस्लाम जैसे अब्राहमिक धर्मों में लाया जा सके। केरल में चल रहे धर्मांतरण अभियानों में सबरीमला मंदिर बहुत बड़ी रुकावट बनकर खड़ा है। पिछले कुछ समय से इसकी पवित्रता और इसे लेकर स्थानीय लोगों की आस्था को चोट पहुंचाने का काम चल रहा था। लेकिन हर कोशिश नाकाम हो रही थी। लेकिन आखिरकार महिलाओं के मुद्दे पर ईसाई मिशनरियों ने न सिर्फ सबरीमला के अयप्पा मंदिर बल्कि पूरे केरल

मनुष्य के दानव प्रवृत्ति से कई जीवो के अस्तित्व का संकट

इस तस्वीर को गौर से देखिये। इवोल्यूशन यहां से यू-टर्न ले रहा है। ये मालद्वीप के माफारू द्वीप की तसवीर है। यह ग्रीन सी टर्टल है। समुद्र में हजारों किलोमीटर तैर कर ये यहां पर अंडे देने आया। लेकिन, जहां पर उसे अंडे देने थे, वहां पर तो हवाई जहाज के लिए रन-वे बन चुका है। अब क्या किया जाए। ग्रीन सी टर्टल आईयूसीएन की सूची में इंडेजर्ड श्रेणी में है। यानी अगर ध्यान नहीं दिया गया तो ये प्राणी जल्द ही विलुप्त हो जाएंगे। ग्रीन सी टर्टल वहां पर अंडे देने के लिए वापस लौटते हैं, जहां पर उनका जन्म हुआ होता है। माफारू द्वीप को कछुए के अंडे देने वाली जगह के रूप में जाना जाता है। यह सी टर्टल भी यहीं पर पैदा हुआ होगा। अब अंडा देने के लिए इसने हजारों किलोमीटर की समुद्र पार किया। लेकिन, इस जगह पर पिछले ही साल एयर स्ट्रिप बन गई है। मालद्वीप ने यूएई से साठ मिलियन डॉलर का दान लेकर इसका निर्माण किया है। कछुआ पहले तो उसे पार करने की कोशिश में लगा रहा। फिर बीच में ही अपने अंडे देकर वहां से चला गया। ये मां अपने अंडे देकर तो जा रही है। लेकिन उसे बच्चों की कोई उम्मीद नहीं है। कितनी मायूसी रही होगी उसे इस बात की।
  ब्रिटेन ने भारत की Demography Change करने के लिए कई Non-Hindu Religions को बढ़ावा दिया था जैसे ईसाईयत और इस्लाम, तो Hinduism के ही कई Sects को अलग धर्म के तौर पर स्थापित किया जैसे जैन, बौद्ध और सिख, भारत में पहला मदरसा किसी मौलवी या इमाम ने नहीं बल्कि ब्रिटेन ने खुलवाया था, आज हम जो इस्लाम का प्रसार देखते हैं उसमें सूफी ऑर्डर्स के बाद ब्रिटिशों का सबसे बड़ा योगदान था, ब्रिटेन ने ना ही मात्र इस्लाम को संरक्षण दिया बल्कि उसे बढ़ाने में भी भरपूर योगदान दिया, बहुत बड़ी ऐसी मुसलमान आबादी है जिन्होंने ब्रिटिशकाल में इस्लाम कबूल किया था, जैसे बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार, सिंध, खैबर, बलूचिस्तान, कश्मीर और पंजाब नूरिस्तान, चित्राल, हुंजा, कुनार और बादख्शान जैसे हिमालयन क्षेत्रों में मात्र 110 वर्ष पहले ही ब्रिटिशों के संरक्षण में अफगानी अमीर अब्दुल रहमान खान ने पहाड़ी हिंदुओं को तलवार के बल पर इस्लाम मे धर्मांतरित करने का मिशन चलाया था, नूरिस्तान एरिया को आज भी काफिरिस्तान ही कहकर बुलाया जाता है      यह है वारेन हेस्टिंग्स, ब्रिटिश सरकार का गवर्नर जनरल ऑफ बेंगाल। इसमे 1780 में भारत मे

जलियांवाला बाग नरसंहार की ह्रृदयविदारक घटना कैसे हमारी इस द्रश्य पटल से गायब हो गई

जलियांवाला बाग में हमने कुछ गलत नही किया तो माफ़ी क्यों मांगे। माफ़ी मांगने से हमारे देश का क्रेडिट घटेगा और हमें वित्तीय हानि झेलनी पड़ेगी मार्क फील्ड (विदेश मंत्री , ब्रिटेन) | 11 अप्रैल 2019 आज से 95 साल पहले, 13 अप्रैल 1919 , बैशाखी का दिन , पूरे पंजाब में उत्सव का माहोल था ! इसी दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। करीब 10000 से 20000 लोग वहा पर थे ! आने वाले वक्त से बेखबर आजादी के ये दीवाने बड़े ही शांतीपूर्ण तरीके से 'रोवॉल्ट एक्ट' के प्रावधानों का जलियावाला बाग मैदान में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। विरोध प्रदर्शन के मात्र एक घंटे बाद ही ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने 50 गुरखा और 25 बलूची हथियार बंद सैनिको के साथ बाग़ में घुस आया| इस बाग़ में केवल एक बड़ा दरवाजा था जहाँ पर “डायर” अपनी सेना के साथ खड़ा था| जनरल डायर ने देश की आजादी के लिए शांति से सभा कर रहे निहत्थे हजारो लोगो पर अंधाधुंध गोलिया चल
 धर्मो रक्षति रक्षित: _____________________________ ईसा सन १६९९ की वैशाखी का दिन ! आनंदपुर साहब में हजारों लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी। प्रतीक्षा थी गुरू गोविन्द राय की जिनके गुरुगद्दी पर आसीन हुये लगभग तेरह वर्ष की लंबी अवधि बीत चुकी थी। गोविन्द राय उधर स्नान-ध्यान करने गये थे और इधर भीड़ उनके पूर्व हुये गुरुओं के बलिदान के स्मरण में लगी थी। गोविंद राय जब बाहर आये तो उनके चेहरे के दैदीप्यमान तेज़ में अब तक हुये सभी नौ गुरुओं की झलक नज़र आ रही थी तो जिह्वा पर उस रोज़ साक्षात माँ शारदा विराजमान थीं।  भीड़ से मुखातिब होकर गोविंद राय ने तक़रीर शुरू की। भीड़ मंत्रमुग्ध उन्हें सुनती जा रही थी तभी गुरूजी ने अपनी तलवार खींची और ललकार उठे - है कोई धर्मी जो प्यासी चंडी को अपना शीश देकर धर्म की रक्षा को तैयार है? संगत से एक भी आवाज़ नहीं उठी। गुरूजी ने फिर से वही पुकार लगाई- है कोई....? सभा में उसी तरह ख़ामोशी पसरी रही बल्कि कई तो निकल कर जाने लगे कि न जाने आज इन्हें क्या हुआ। इतने में तीसरी बार जब ललकारा तो सभा ने देखा कि एक आदमी हाथ जोड़े शीश नवाये खड़ा कह रहा है- गुरुदेव! चंडी को मेरे रक्त से नहला दो

नाइटहुड उपाधि लेने की अपमानजनक प्रक्रिया

#यह_इतिहास_बताता_है_कि_अंग्रजों_का_दलाल_ #चाटूकार_कौन_था.? लन्दन के बकिंघम पैलेस में ब्रिटेन की महारानी/महाराजा से ‘नाइटहुड’ (सर) की उपाधि लेने की प्रक्रिया अत्यन्त अपमानजनक है। यह उपाधि लेनेवाले व्यक्ति को ब्रिटेन के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती है और इसके पश्चात् उसे महारानी/महाराजा के समक्ष सिर झुकाकर एक कुर्सी पर अपना दायाँ घुटना टिकाना पड़ता है। ठीक इसी समय महारानी/महाराजा उपाधि लेनेवाले व्यक्ति की गरदन के पास दोनों कन्धों पर नंगी तलवार से स्पर्श करते हैं। तत्पश्चात् महारानी/महाराजा उपाधि लेनेवाले व्यक्ति को ‘नाइटहुड’ पदक देकर बधाई देते हैं। यह प्रक्रिया सैकड़ों वर्ष पुरानी है और भारत में जिस जिसको यह उपाधि मिली वो सभी ‘सर’ इस प्रक्रिया से गुजरे थे। ब्रिटेन अपने देश और अपने उपनिवेशों में अपने चाटुकारों को ब्रिटेन के प्रति निष्ठवान बनाने के लिए ऐसी अनेक उपाधियाँ देता रहा है। नाइटहुड (सर) की उपाधि उनमें सर्वोच्च होती थी। गुलाम भारत में ब्रिटिश शासकों द्वारा देश के अनेक राजा-महाराजा, सेठ-साहूकार, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् आदि ब्रिटेन के प्रति वफादार रहने की शपथ लेने के बाद

ज्ञान की देवी माँ शारदा के सर्वज्ञ पीठ की गुलाम कश्मीर में आज की भयावह स्थिति से कब छुटकारा मिलेगा

 ज्ञान की देवी माँ शारदा सर्वज्ञ पीठ की गुलाम कश्मीर में आज की स्थिति माँ सरस्वती का निवास: शारदा देश कश्मीर और ‘सर्वज्ञ पीठ’ की धरोहर कश्मीर में जिस मंदिर के द्वार कभी आदि शंकर के लिए खुले थे आज उसके भग्नावशेष ही बचे हैं। हम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी और नवरात्र में माँ सरस्वती की वंदना शंकराचार्य द्वारा रची गई स्तुति से करते हैं लेकिन उस सर्वज्ञ पीठ को भूल गए हैं जिसपर कभी आदि शंकर विराजे थे। देश की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित करने तथा आचार्य गौड़पाद में महाविष्णु के दर्शन करने के पश्चात आदि शंकर को माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई थी। विद्यारण्य कृत ‘शंकर दिग्विजय’ ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि विश्व में जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप में भारत और भारत में काश्मीर सबसे प्रसिद्ध स्थान है जहाँ शारदा देवी का वास है। उस क्षेत्र में माँ शारदा को समर्पित एक मंदिर है जिसके चार द्वार हैं। मंदिर के भीतर ‘सर्वज्ञ पीठ’ है। उस पीठ पर वही आसीन हो सकता है जो ‘सर्वज्ञ’ अर्थात सबसे बड़ा ज्ञानी हो। उस समय माँ शारदा के उस मंदिर

अमर शहीद मंगल पांडे का वर्तमान पारिवारिक स्थिति

आइए ! थोड़ा-बहुत जाने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, अमर बलिदानी स्वo मंगल पांडेय के घर-परिवार की वर्तमान परिस्थिति के बारे मे -- ######## मंगल पांडेय के वंशज, मंगल पाण्डे कट्टर ब्राह्मण होने के साथ ही एक समर्पित शिवभक्त भी थे। आज भी उनकी ओर से पूजित शिवलिंग सहसा ही इसका बोध कराता है। मौजूदा घर के ठीक सामने बने एक छोटे से शिवालय में उक्त शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग की पूजा मंगल पाण्डेय सेना में भर्ती होने से पहले तथा जब तक वे गांव आते रहे हमेशा करते थे। शिव में उनकी अटूट आस्था थी और इसके लिए वे घंटो शिव पूजा भी किया करते थे। आज ये मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में जरूर है, लेकिन आज भी इस मंदिर में गांव के लोग पूजापाठ करते हैं। (कुश्ती के शौकीन थे मंगल पाण्डेय) मंगल पाण्डेय के बारे में बुजुर्गों की यादों को जेहन में समेटे आज भी बुजुर्ग उस प्रसंग को कहते नहीं अघाते। मंगल के बारे में कुरेदते ही वे मंगल की वीरता का बखान नम आंखों से करने लगते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि अमर शहीद मंगल पाण्डेय कुश्ती के शौकीन थे और अखार में क्षेत्र में नामी-गिरामी अखाड़ा था। यहां मंगल पा

गूलर काऔषधीय व सांस्कृतिक महत्व

गुलर पक गये हैं पक कर जमीन पर गिर गये हैं चिड़ियाँ खूब खा रहीं हैं और इनके फल नीचे गिर रहें हैं आप को कुछ नहीं करना इनके बीज इकठ्ठा कर आप किसी जहाँ जंगल कम दिखे उसमें फेंक दे ते जब बारिश होगी तो बीज जम जायेंगे इसे चिड़ियाँ बहुत पसंद करती हैं उनको रहने का घर मिल जायेगा और जहाँ जहाँ जायेंगी बीट करेंगी तो नयाँ पेड़ बन जायेगा ये विडियो इसलिये बनाया की आपके आस पास शहतूत गुलर का पेड़ हो तो उसका आप अगर पेड़ खरीद कर नहीं लगा पाते तो सबसे आसान तरीका है की उसका सीड बाॉल बनाकर अपने आस पास फेंक कर पेड़ बना सकते हैं आपका भी इस धरती को हरा भरा करने का योगदान हो सकता है जब तक आप सब मिलकर हर साल 100 करोड़ पेड़ नहीं लगाते तब तक मिशन चलता रहेगा आप भी सहयोग दें,हमारे ठअपनेट बच्चों को सिखायें पेड़ लगाना ताकि आने वाली पिढी इसका महत्व समझें और इस धरती को हरा करें आइये जानते हैं गूलर खाने के फायदे के बारे में :- *गूलर* प्राय: सभी स्थानों पर पाया जाने वाला गुलर का वृक्ष 20 से 40 फुट ऊँचा होता है।तना मोटा, लम्बा, अकसर टेढ़ापन लिए होता हैं। छाल लाल व मटमैली होती है।पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे डेढ़ से तीन इंच चौड़

इंदिरा गांधी की हत्या का राज व भारत में वैश्विक सडयंत्र के काले अध्याय

    चर्च, ओपस दाई और एनटोइनो असल सवाल ये है कि कितने जानते हैं कि एंटोइनो अलबिना मैनो कौन हैं, क्या बैकग्राउंड है और राजीव गांधी से इनका अफेयर कितना मासूम था। तीन साल तक चले अफेयर के बाद एंटोइनो का राजीव गांधी से विवाह हुआ। अब आम आदमी के घर में भी कोई प्रेम विवाह होता है तो भी लड़के वाले लड़की के परिवार की और लड़की वाले लड़के के परिवार की थोड़ी बहुत जानकारी तो इकट्ठा कर लेते हैं। और राजीव गांधी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री के बेटे थे। एंटोइनो के बारे में जानकारी भारतीय खुफिया एजंसियों ने जुटाई। ऐसी दो फाइलें हैं। एक विवाह के समय की और दूसरी उनके हत्या के बाद की। दोनों में ही कुछ नाम, चेहरे और खिलाड़ी बार आते हैं। विवाह फिर भी हुआ। फिलहाल शुरुआत करते हैं। पढ़िए। प्रथम विश्व युद्ध के बाद से तूरिन राजनीतिक गतिविधियों का अड्डा था। यूरोप में उन दिनों कम्युनिज्म रवानी पर था और बहुत से कैथोलिकों को यह लगता था कि फासिस्ट ही उनसे मुठभेड़ कर सकते हैं।  तूरिन भी इसका अपवाद नहीं था। अपने तट पर कम्युनिस्टों के आगमन की आशंका से घबराया हुया तूरिन का नजदीकी कैथोलिक गांव ओर्बास्सानो फासिस्टों क