Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2017
अहंकार घटाने का उपाय :-- अपमान सहने की आदत बनाएं, किन्तु इतना नहीं कि दुष्टों का साहस बढे | बड़ो का पाँव अधिकाधिक छूने का प्रयास करें | EMPATHY का अभ्यास करें , SYMPATHY का नहीं | Sympathy में परायापन है, "दूसरे" के प्रति सहानुभूति है | Empathy में दूसरापन नहीं रहता, दूसरे का दुःख अपना दुःख लगता है | शिशु में यह गुण जन्मजात रहता है, उसे गलत प्रशिक्षण देकर गुमराह हमलोग करते हैं | उसके आत्मज्ञान को दबाकर झूठी अस्मिता (आइडेंटिटी) सिखलाते हैं जो अहंकार बढाती है | इसी गुण (Empathy) को प्राण का आयाम बढ़ाना कहते हैं, ताकि धीरे धीरे पूरा विश्व कुटुम्ब लगे | कलियुग में यह अधिक कठिन है क्योंकि दुष्ट लोग इसका गलत लाभ उठाएंगे | अतः कुत्संग से दूर रहे, फेसबुक पर भी ब्लॉक करने का अभ्यास बढायें | वसुधैव कुटुम्ब उनके लिए है जो कुटुम्ब बनने योग्य हैं, राक्षसों के लिए नहीं | किन्तु राक्षसों से दूर रहने पर भी उनके प्रति भी Empathy का प्रयास करें | अपने शरीर और मन को, अपने अहंकार और सांसारिक परिचय आदि को अपना अस्तित्व, अपनी अस्मिता, न मानें, बल्कि अपने औजार ("करण", अर्थात तीन अन्तःकर
प्राचीन सनातनी वस्त्र उद्योग . Ancient Indian Textile Industry यजुर्वेद के १८ वें अध्याय में ऋषि ग्राश्त्मद का उल्लेख आता है... इन महान ऋषि का वर्णन पौराणिक आख्यानों में भी मिलता है! वस्त्रोद्योग के मूल में सूत है और सूत का उत्पादन कपास से होता है। सर्वप्रथम ऋषि ग्राश्त्मद ने कपास का पेड़ बोया और अपने इस प्रयोग से दस सेर कपास प्राप्त की। इस कपास से सूत बनाया। इस सूत से वस्त्र कैसे बनाना, यह समस्या थी। इसके समाधान के लिए उन्होंने लकड़ी की तकली बनायी। वैदिक भाषा में कच्चे धागे को तंतु कहते हैं। तंतु बनाते समय अधिक बचा हिस्सा ओतु कहा जाता है! इस प्रकार सूत से वस्त्र बनाने की प्रक्रिया ऋषि ग्राश्त्मद ने दी। (ऋषि ग्राश्त्मद ने खगोल शास्त्र का विवेचन भी लिया था) अथर्ववेद में सन का विस्तृत वर्णन किया गया है! (अथर्ववेद २. ४. ५.) सन सूतं के नाम से इसे शतपथ ब्राम्हण में भी बताया गया है (शतपथ ब्राम्हण ३.२.१. एवं ६. १. २४) यहाँ देंखे - www.jstor.org/stable/3596207 भारत में रेशम, कोशा आदि के द्वारा वस्त्र सनातन काल से ही बनते थे। बने हुए वस्त्रों, साड़ियों आदि पर सोने, चांदी आदि की कढ़ाई, रंगाई
हम अक्सर मिसेज, मिस्टर, मिस, मैडम आदि शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं। आप इन शब्दों का अर्थ राजीव भाई दीक्षित के जुबानी जाने तब सोच समझकर प्रयोग करें। भारत बचाओ आंदोलन हर क्षेत्र में सही जानकारी देता रहेगा।,9336919081
*डब्ल्यूटीओ डाकूमैंट डब्ल्यूटीओ डाकूमैंट* *डब्ल्यूटीओ पर मैरे पास जितने डाकूमैंट है वो सभी आपको ईस ग्रुप मे साझा कर रहा हूँ।।* *कृपया उन सभी डाकूमैंट को ध्यान से पड़ीयेगा भाईयो बहनो।।* जो व्यक्ति इस डॉक्यूमेंट को देखना चाहता है कृपया अपना नंबर हमें भेजें या हमारे नंबर 9369 19081 ए संपर्क करें *हमारा एक ही दुर्भाग्ये है की मैं अपने सभी श्री राजीव दीक्षित जी के संर्थको को हिन्दी भाषा में ये सभी डाकूमैंट उपल्बद करवाने में असमर्थ हूँ।।* *मगर यह विशवास रखता हूँ की हम में से कुछ भाई या बहन ईन सभी डाकूमैंट को अग्रंरेजी भाषा से हिन्दी भाषा में बदलने में हमारी जरूर सहायता करेगा।।* *आप भी ईन सभी डब्ल्यूटीओ के डाकूमैंट को जन जन ता हो सके तो अपनी अपनी स्थानीये भाषा में साझा करने की कोशिश किजियेगा।* वन्देमातरम्।। जय  भारत।।
कृषि में हमेशा ही अग्रणी रहा है भारत उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय में एक वाक्य लिखा है- ‘हल की नोक से खींची रेखा मानव इतिहास में जंगलीपन और सभ्यता के बीच की विभाजक रेखा है।‘ विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है। अक्षैर्मा दीव्य: कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमान:। ऋग्वेद- ३४-१३ अर्थात्‌ जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ। कृषिर्धन्या कृषिर्मेध्या जन्तूनां जीवनं कृषि:। (कृषि पाराशर-श्लोक-८) अर्थात्‌ कृषि सम्पत्ति और मेधा प्रदान करती है और कृषि ही मानव जीवन का आधार है। वैदिक काल में ही बीजवपन, कटाई आदि क्रियाएं, हल, हंसिया, चलनी आदि उपकरण तथा गेहूं, धान, जौ आदि अनेक धान्यों का उत्पादन होता था। चक्रीय परती के द्वारा मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने की परम्परा के निर्माण का श्रेय उस समय के कृषकों को जाता है। यूरोपीय वनस्पति विज्ञान के जनक रोम्सबर्ग के अनुसार इस पद्धति को पश्चिम ने बाद के दिनों में अपनाया। कौटिल्य अर्थशास्त्र में मौर्य राजाओं के काल में कृषि, कृषि उत्पादन आदि को बढ़ावा देने हेतु कृषि अधिकारी की नियुक्ति का वर्णन मिलता है। कृ
एक् ग़लतफ़हमी का पूरा विश्व शिकार था कि पश्चमी देश शुरू से ही धनाढ्य रहा है। और हमको ये बताया गया है कि भारत एक आध्यात्मिक और धर्म प्रधान देश था लेकिन अर्थ प्रधान देश कभी भी नहीं था । जबकि 2000 सालो से ज्यादा वर्षों तक भारत विश्व कि एक सबसे बड़ी अर्थशक्ति थी , ये नई रेसेयरचेस से पता चल रहा है । भारत सोने की चिड़िया नहीं , मैनुफेक्चुरिंग की बहुत बड़ी अर्थ शक्ति थी । ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------         इस ग़लतफ़हमी को एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट ने तोडा । उसका नाम था पाल बैरोच । 80 के दशक में ,जिसके रिसर्च को पॉल कैनेडी ने अपनी ने अपनी पुस्तक "The Rise and fall of great Powers" उद्धृत किया। बरोच ने कहा कि झूठ है।पूर्व में पश्चिमी देश धनी नहीं गरीब थे। बल्कि सत्य इसके विपरीत है धनी देश पूर्व में थे औपनिवेश के पूर्व।      एक इतिहासकार हैं Jack Goldstone George Mason University के जिन्होंने 2009 में हायर एजुकेशन में चलने वाली एक बुक लिखी The Rise of the West in World History . 1500-1850.       एक चैप
कपास की खेती, सूत की कताई और बुनाई विश्व-सभ्यता को भारत की देन हैं। दुनिया में सबसे पहले ‘सूत’ इस देश में काता गया और सबसे पहले कपड़ा भी यहीं बुना गया। दूसरे शब्दों में,सूत कातना और कपड़ा बुनना यहां का उतना ही प्राचीन उद्योग है जितना कि स्वयं हिन्दुस्तान की सभ्यता। इसका प्रमाण है संसार  का सबसे पुराना ग्रंथ ऋग्वेद; जिसमें सूत  कातने और वस्त्र बुनने का उल्लेख मिलता है, जो निम्नलिखित मंत्र  है - तंतु तन्वंरज्सो भानुमान्विहि, ज्योतिष्मतः  पयः  धिया  कृतान् । अनुल्बणं  वयत,  जोगुवामपो,  मनुर्भव, दैव्यं  जनम् ॥ (ऋ 10/53/6)  अर्थात् -  सूत  बनाकर (तंतु  तन्वन्)  उस पर चढ़ाओ (रजसो भानुं अन्विहि) और  उसको  खराब  न  करते  हुए  कपड़ा  बुनो(अनुल्बणं वयत)  विचारशील  बनो(मनुः भव)  सुप्रजा निर्माण करो(दैव्यं जनं जनय)  और  तेजस्वियों  की  बुद्धिद्वारा  निश्चित  हुए  मार्गों  का  रक्षा  करो(ज्योतिष्मतः धिया  कृतान् पयः  रक्ष) यह कवियों  का ही  काम  है(जोगुवां अपः) । (सातवड़ेकर, 1922) उक्त मंत्र से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वस्त्र में  विचार का समावेश वैदिक काल में ही हो गया था साथ-ही-साथा यह भी स्पष्
भारत के ज्ञान भंडार का अथाह सागर  जिसमें पूरी दुनिया का ज्ञान समाहित व डूब सकता है !!!!---: पुस्तक और लेखक :----!!! अभिषेकनाटकम् - भास अभिज्ञानशाकुन्तलम् - कालिदास अविमारक - भास सुदर्शनविजयम्-- मधुसूदनमिश्र अर्थशास्त्र - चाणक्य अष्टाध्यायी - पाणिनि आर्यभटीयम् - आर्यभट आर्या-सप्तशती - गोवर्धनाचार्य उरुभंग - भास ऋतुसंहार - कालिदास कर्णभार - भास कादम्बरी - बाणभट्ट कामसूत्र - वात्स्यायन काव्यप्रकाश - मम्मट काव्यमीमांसा - राजशेखर कालविलास - क्षेमेन्द्र किरातार्जुनीयम् - भारवि कुमारसंभव - कालिदास बृहत्कथा - गुणाढ्य चण्डीशतक - बाणभट्ट चरक संहिता - चरक चारुदत्त ----भास चौरपंचाशिका - बिल्हण दशकुमारचरितम् - दण्डी दूतघटोत्कच - भास दूतवाक्य - भास न्यायसूत्र - गौतम नाट्यशास्त्र - भरतमुनि पञ्चरात्र - भास प्रतिमानाटकम् ---भास प्रतिज्ञायौगंधरायण - भास बृहद्यात्रा - वराहमिहिर ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त - ब्रह्मगुप्त ब्रह्मसूत्र - बादरायण बालचरित्र - भास मध्यमव्यायोग ---भास मनुस्मृति - मनु महाभारत - वेद व्यास मालविकाग्निमित्र - कालिदास मुकुटतादितक -बाणभट्ट मेघदूत -