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Showing posts from February, 2020

नास्तिक आस्तिक बाद व बौद्धिक षड्यंत्र का संपूर्ण विवेचन करपात्री जी महाराज जी के

 नास्तिक आस्तिक बाद (धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज का मार्क्सवादी को मुह तोड़ जवाब।) मार्क्सवादी के लिए गीता की प्रशंसा का कोई अर्थ ही नहीं, क्योकि गीता में तो स्वयं ही निर्बातस्थित निश्चल दीप के तल्य योगी के यत चित्त का निश्चल होना बतलाया हैं- 'यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता। योगिनो यतचित्तस्य युजतो योगमात्मनः।। (गी ६/१९) मार्क्स स्पष्ट ही निरश्वरवादी है, फिर उसकी दृष्टि से कर्मों का ईश्वर में समर्पण करना, फल की आकांक्षा बिना ईश्वराधन बुद्धि से शास्त्रलोक्त कमों का अनुष्ठान करना आदि सब बातें व्यर्थ हैं। धन को ही सर्वस्व मानने वाले भौतिकवादी के लिए हानि-लाभ, जय-पराजय को समान समझना कहाँ तक सम्भव हैं। किसी दाम्भिक के दम्भ के भण्डाफोड़ होने से किसी युक्ति-शास्त्रसम्मत सिद्धान्त का अपलाप नहीं किया जा सकता। एंजिल्स के ‘डायलेक्टस आफ नेचर' पुस्तक की बाते भी पुरानी पड़ गयी हैं। वस्तुत: वैज्ञानिकों ने ही प्रचालित जडवाद एवं बिकासवाद की युक्तियों का खण्डन करके एक अलौकिक शक्ति का महत्व सिद्ध किया है। *राजनीतिक-दर्शन* पाश्चात्त्य देशों में दर्शन एवं शास्त्र शब्द बड़ा ही सस्ता

रमप्पा टेंपल संसार का सबसे hard पत्थर बेसाल्ट से बना Ramappa_temple जिसे काटने के लिए डायमंड कटर मशीन इस्तेमाल होता है

       भारत एक शिल्प कला प्रधान देश भी है इसमें अनेकों ऐसे तेजस्वी और कला के पुजारी इस धरती पर जन्म लिए हैं जिन्होंने अपनी ज्ञान और कला का  डंका पूरी दुनिया में बजाया है कुछ अंग्रेजी काल के पढ़े हुए और अंग्रेजी काल में पैदा हुए विद्वानों ने मूर्ति पूजा और कला का मजाक बनाकर इस्लाम और ईसाइयत का झंडा बुलंद करने में लगे हुए हैं और भारत की मूल व्यवस्था व संस्कारों से  काटने का काम जो अंग्रेज और मुगल नहीं कर पाए वह काम बड़े तरीके से हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी भी कर रहे हैं और  सबसे बड़ी बात यह की यह स्वयंभू प्राचीन भी बनने  का दंभ भी भरते हैं जिससे कि मंदिर और शिल्प कला के भारत की समृद्धि और और वैभवशाली परंपरा को नष्ट किया जा सके Ramappa_temple भारत वर्ष के हिन्दू मंदिर की भव्यता देखो इस मंदिर की मूर्तियों और छत के अंदर जो पत्थर उपयोग किया गया है वह है बेसाल्ट जो कि पृथ्वी पर सबसे मुश्किल पत्थरों में से एक है इसे आज की आधुनिक Diamond electron machine ही काट सकती है वह भी केवल 1 इंच प्रति घंटे की दर से अब आप सोचिये कैसे इन्होंने 900 साल पहले इस पत्थर पर इतनी बारीक कारीगरी की है सबसे

कोरोना से चीन की कराह उन अबोल जीवो का क्रंदन

   चीन में कहावत है की चारपायों में टेबल कुर्सी को छोड़कर और उड़ने वाले में पतंग को छोड़कर बाकी सब खा जाते हैं पर आज ऐसा संकट है कि करोना वायरस आज सब को खा जा रहा है पूरी दुनिया मे चीन जितना मूर्ख देआश ढूँढ़कर भी नही मिलेगा,,,,, चीन जैसे अतिमहत्वकांक्षी देश ने नेचर की अबतक की सबसे ज्यादा वाट लगाई है उतनी किसी विकसित देश ने नही लगाई,, ताजा उदाहरण कोरोना वायरस ने चीनी लोगो के जुबानी स्वाद की वाट लगा रखी है।। 1958 में भी चीन में ऐसी परिस्थिति थी, माओ झेडोंग नाम के चीनी pm ने उस वक़्त के गरीब चीन को औद्योगिकरण और अर्थव्यवस्था को ब्रिटेन और अमरीका के आगे ले जाने के लिए झेडोंग ने मूल कृषि प्रधान चीन को चार सूत्री कार्यक्रम में डाल दिया वो है four pests campaign... इस प्रोग्रम का विषय यह था कि इसमें चीन के 4 दुश्मन थे उसमे 1)गौरैया 2)चूहा 3)मक्खी 4)मच्छर चीन के तात्कालिक अर्थ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक गौरैया एक साल में 4.5 kg अनाज खा जाती है, और उसका परिणाम चीन के अर्थव्यवस्था पर होता है ऐसा उनका मानना था, इस प्रोग्राम के तहत सारे चीनी लोग गौरैया को मारने के लिये पागल हो गए,, स

शिल्पकला का अदभुत उदाहरण मोढेरा मंदिर जहां चुने का उपयोग नहीं किया गया

             ताजमहल का  खूबसूरती  के विचारों में उलझे हुए लोगों के लिए जिन्हें मजार और कब्र खूबसूरत नजर आते हैं उन्हें.... मोढ़ेरा के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को एक बार जरूर देखना चाहिए ...! गुजरात के प्रसिद्ध शहर अहमदाबाद से क़रीब 100 किलोमीटर दूर और पाटण नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण दिशा में पुष्पावती नदी के किनारे बसा एक प्राचीन स्थल है- मोढेरा. इसी मोढेरा नामक गाँव में भगवान सूर्य देव का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है... जो, गुजरात के प्रमुख ऐतिहासिक व पर्यटक स्थलों के साथ ही गुजरात की प्राचीन गौरवगाथा का भी प्रमाण है. मोढेरा सूर्य मन्दिर का निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में करवाया था.... और, अब यह सूर्य मन्दिर अब पुरातत्व विभाग की देख-रेख में आता है. शिल्पकला का अदभुत उदाहरण प्रस्तुत करने वाले इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है. चालुक्य शैली में निर्मित इस मंदिर को राजा भीमदेव ने दो हिस्सों में बनवाया था. जिसमें से पहला हिस्सा गर्भगृह का और

फ़ूहड़ त्यौहार वैलेंटाइन डे बनाने वाले कैसे भूल गए संत गंगादास जी को

          #हिंदी_साहित्य_क े_भीष्म_पितामह_ महान_स्वतन्त्रत ा_सेनानी_सन्त_ग ंगादास_जी_महारा ज - संपूर्ण संक्षिप्त इतिहास अंग्रेजी सभ्यता के फूहड़ त्यौहार वैलेंटाइन डे मना रहे भारतीय इस महान क्रांतिकारी कवि संत को कैसे भूल गए? महात्मा गंगादास जी का जन्म 14 फरवरी 1823 को बसंत पंचमी के दिन उत्तर प्रदेश के रसूलपुर गांव में एक धनी कुलीन जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी सुखीराम जी मुंढेर के पास 600 एकड़ जमीन थी व उनके परिवार का वातावरण बहुत धार्मिक था। उनकी माता दखाकौर हरियाणा के बल्लभगढ के एक गांव से थी। महात्मा जी का बचपन का नाम गंगाबक्ष जी था। गंगाबक्ष जी बचपन से ही बहुत धार्मिक व साफ सफाई रखते थे उन्हें थोड़ी सी मिट्टी लगते ही वे रोने लग जाते थे व बहुत पूजा पाठ और भक्ति भी करते थे।इसलिए लोग उन्हें व्यंग से भगत जी ही कहते थे। लेकिन ये कौन जानता था कि यही भगत एक दिन इतना बड़ा महात्मा बन जायेगा। छोटी सी उम्र में ही गंगादास जी के माता पिता चल बसे थे। इसलिए वे 12 वर्ष की उम्र में ही एक अच्छे गुरु की खोज में निकल पड़े। गंगादास जी की विरक्ति एवं बुद्धिमता देखकर सेदेपुर जि

उड़ीसा में एक नए नवप्रभात गुरुकुल का उदय से विश्व में भारतीय संस्कृति का जलवा जर्मन कन्या का प्रवेश

  एक तरफ जहां भारत के तथाकथित मानसिक गुलामी से ग्रसित मानसिकता के शिकार लोग अपनी संस्कृति और संस्कृत से घृणा करते हुए आत्म हीनता के शिकार हैं  वही विश्व के सर्वोच्च  विचारक और चिंतक संस्कृत को अपनाने हेतु नए-नए उपाय कर रहे हैं जितनी संस्कृत की यूनिवर्सिटी भारत में नहीं है उससे ज्यादा आज जर्मनी पोलैंड सहित कई देशों में इस का अध्ययन चल रहा है नासा भी इसी कार्य में लगा हुआ वैसे तो मैं कोई वीडियो बनाता नहीं हूं ना कहीं फोटो ज्यादा खींचता हूं अच्छे-अच्छे श्रेष्ठ और समाज के अग्रणी लोगों से मिलने के बाद भी उनका कभी फोटो मैं आप सबके साथ शेयर नहीं करता हूं ना ही अपने फेसबुक और व्हाट्सएप, व अजय कर्मयोगी  यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया में भी मेरा कोई फोटो नहीं होता है पर मैं इस कन्या का उड़ीसा के गुरुकुल  उद्घाटन के अवसर पर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित मंच पर उपस्थित अन्य लोगों के साथ छोड़कर इस पदमपुर बरगढ़ ओडिशा के नव प्रभात गुरुकुल में  जर्मन  कन्या का Tv मीडिया के इंटरव्यू का वीडियो अपने छोटे से मोबाइल के माध्यम से बनाकर आप सबको शेयर कर रहा हूं शायद आप इस अंग्रेजी गुलामी मा

अंधी भोग और हवस की दौड़ ने चाइना को बर्बादी का रास्ता दिखाया

     सा विद्या या विमुक्तए  के मूल सिद्धांत से  भटक कर  आज सारी दुनिया भोग और हवस  के चरम पर अपना झंडा बुलंद किया हुआ है पर मनुष्य की इच्छाएं अनंत है और इस क्रम में चाइना ने सारी मर्यादा ए तोड़ते हुए प्रकृति की सारी व्यवस्थाओं को ध्वस्त करते हुए सब कुछ इस भोग और हवस के भेंट चढ़ती गई और पूरे दुनिया का यांत्रिक उत्पादन का सिरमौर बनने का एक अंतहीन प्रतियोगिता का शिकार बन गया जिसका परिणाम आज भयावह स्थिति से गुजर रहा है सही जीने का तरीका श्रेष्ठ ज्ञान से ही संभव हैग गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को पुनः स्थापित किए बिना असंभव है  चीन अपने देश की खबरों को दुनिया से छुपाकर रखना चाहता है। चीन की इंटेसा कंपनी ने एक बेहद सनसनीखेज खुलासा किया है कि कोरोना वायरस से चीन में मरने वालों की संख्या लगभग 45000 है। इसके अलावा डेढ़ लाख से ऊपर लोग कोरोना वायरस से ग्रसित हैं। चीन अभी तक दुनिया से इन खबरों को छुपाता आया है। यद्यपि चीन की इस कंपनी पर चीनी सरकार ने बैन लगा दिया है इसके अलावा चीन की सरकार ने मीडिया और तमाम कंपनियों को इस बात के लिए प्रतिबंधित कर दिया है कि यदि चीन से संबंधित कोई भी खबर

गुरुकुल ज्ञान व्यवस्था ही सारी समस्याओं का समाधान कर सकता है

         क्या कागज चीन ने बनाये?     हम सब जानते हैं ऋग्वेद को विश्व मे प्रथम ग्रंथ का सम्मान मिल चुका। ऋग्वेद पत्ते पर लिखा गया था ऐसा पत्र जो युगो तक नष्ट नही होता। और स्याही भी अद्भुत। कुछ हमारे इतिहास भी जानने की आवश्यकता होगी। । हमारे यहाँ भी विज्ञान था, परंतु हम उसे समझ नहीं पाए। आज का विज्ञान यह है कि वह कागज बनाता है और बच्चों से कहता है कि इस कागज पर लिखो कि पर्यावरण को कैसे बचाया जाए। बच्चा लिखता है। जो जितना अधिक लिखेगा, वह उतना अधिक अंक पाएगा और उसे अच्छी डिग्री मिलेगी। प्रश्न उठता है कि इससे पर्यावरण बचा या नष्ट हुआ। आखिर ये कागज भी तो पेड़ों को काट कर ही बनते हैं। तो फिर आप जितना अधिक कागज का प्रयोग करेंगे, उतना ही पर्यावरण को नष्ट करेंगे। परंतु आज हम इसी विरोधाभासी विज्ञान को पढ़ऩे के प्रयास में जुटे हैं। डिग्री लेकर विज्ञानी बन रहे हैं। पेड़ों को काट कर आत्महंता बन रहे हैं। हमारा पारंपरिक ज्ञान क्या कहता है? आज जो कागज बनता है वह पेड़ों को काट कर, रसायनों के प्रयोग से और बड़ी-बड़ी मशीनों के प्रयोग से। पर्यावरण को इतना नुकसान पहुँचाने के बाद जो कागज बनता है, उसकी