नास्तिक आस्तिक बाद (धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज का मार्क्सवादी को मुह तोड़ जवाब।) मार्क्सवादी के लिए गीता की प्रशंसा का कोई अर्थ ही नहीं, क्योकि गीता में तो स्वयं ही निर्बातस्थित निश्चल दीप के तल्य योगी के यत चित्त का निश्चल होना बतलाया हैं- 'यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता। योगिनो यतचित्तस्य युजतो योगमात्मनः।। (गी ६/१९) मार्क्स स्पष्ट ही निरश्वरवादी है, फिर उसकी दृष्टि से कर्मों का ईश्वर में समर्पण करना, फल की आकांक्षा बिना ईश्वराधन बुद्धि से शास्त्रलोक्त कमों का अनुष्ठान करना आदि सब बातें व्यर्थ हैं। धन को ही सर्वस्व मानने वाले भौतिकवादी के लिए हानि-लाभ, जय-पराजय को समान समझना कहाँ तक सम्भव हैं। किसी दाम्भिक के दम्भ के भण्डाफोड़ होने से किसी युक्ति-शास्त्रसम्मत सिद्धान्त का अपलाप नहीं किया जा सकता। एंजिल्स के ‘डायलेक्टस आफ नेचर' पुस्तक की बाते भी पुरानी पड़ गयी हैं। वस्तुत: वैज्ञानिकों ने ही प्रचालित जडवाद एवं बिकासवाद की युक्तियों का खण्डन करके एक अलौकिक शक्ति का महत्व सिद्ध किया है। *राजनीतिक-दर्शन* पाश्चात्त्य देशों में दर्शन एवं शास्त्र शब्द बड़ा ही सस्ता
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण