वेद में जैन मत और ऋषि-जैन और बौद्ध मतों को प्रायः नास्तिक या वेद विरोधी मानते हैं। पर वेद में सभी प्रकार के मतों का समन्वय है। शाब्दिक अर्थ के तर्क के रूप में बौद्ध मत भी है जो गौतम के न्याय दर्शन का ही थोड़ा दूसरे शब्दों में वर्णन है। वेद में जैन तर्क भी कई स्थानों पर हैं। जैन तर्क में अस्ति-नास्ति-स्यात् (शायद) को मिलाकर ७ प्रकार के शाब्दिक विकल्प हैं। ३ तथा ७ प्रकार के सत्यों का वर्णन भागवत पुराण में ब्रह्मा द्वारा भगवान् कृष्ण की स्तुति में भी है- सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये। सत्यस्य सत्यम् ऋतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः॥ (भागवत पुराण, १०/२/२६) वेद में भी ३ प्रकार के ७ विकल्पों का कई स्थानों पर वर्णन है- ये त्रिषप्ताः परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रतः। वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वो अद्य दधातु मे॥१॥ (अथर्व, शौनक संहिता, १/१/१) सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्। (पुरुष सूक्त, यजुर्वेद, ३१/१५) शब्द रूप में ३ या ७ ही विकल्प होते हैं। गणित के अनुसार अनन्त विकल्प होंगे। इसमें संशय होता है। अतः जैन मत
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण