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Showing posts from August, 2018
वेद में जैन मत और ऋषि-जैन और बौद्ध मतों को प्रायः नास्तिक या वेद विरोधी मानते हैं। पर वेद में सभी प्रकार के मतों का समन्वय है। शाब्दिक अर्थ के तर्क के रूप में बौद्ध मत भी है जो गौतम के न्याय दर्शन का ही थोड़ा दूसरे शब्दों में वर्णन है। वेद में जैन तर्क भी कई स्थानों पर हैं। जैन तर्क में अस्ति-नास्ति-स्यात् (शायद) को मिलाकर ७ प्रकार के शाब्दिक विकल्प हैं। ३ तथा ७ प्रकार के सत्यों का वर्णन भागवत पुराण में ब्रह्मा द्वारा भगवान् कृष्ण की स्तुति में भी है- सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये। सत्यस्य सत्यम् ऋतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः॥ (भागवत पुराण, १०/२/२६) वेद में भी ३ प्रकार के ७ विकल्पों का कई स्थानों पर वर्णन है- ये त्रिषप्ताः परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रतः। वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वो अद्य दधातु मे॥१॥ (अथर्व, शौनक संहिता, १/१/१) सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्। (पुरुष सूक्त, यजुर्वेद, ३१/१५) शब्द रूप में ३ या ७ ही विकल्प होते हैं। गणित के अनुसार अनन्त विकल्प होंगे। इसमें संशय होता है। अतः जैन मत
#भारत_का_आर्थिक_इतिहास: 1813 में ब्रिटेन के चार्टर में इस बात की चर्चा हुई कि ईस्ट इंडिया कंपनी और ईसाई मिशनरियों के द्वारा हिन्दुओ के धर्म परिवर्तन का सबसे शशक्त अस्त्र क्या होगा - निष्कर्ष निकल कर आया कि शिंक्षा। तदन्तर भारत मे तत्कालीन शिंक्षा की पद्धति और शिक्षक और छात्रों का डेटा इकट्ठा करने का कार्य तात्कालिक 1820 से 1830 में  ईसाई अफसरों को सौंपा गया। जिसका डेटा धरमपाल जी की "ब्यूटीफुल ट्री" में प्रस्तुत किया गया है - जिसमे तात्कालिक समय मे शिंक्षा ग्रहण करने वाले शूद्र छात्र और छात्राओ की संख्या सवर्ण छात्रों की तुलना में चार गुना थी। 1835 में मैकाले भारत आता है और शिंक्षा का माध्यम नग्रेजी को बनाने की बात तय की जाती है। 1854 में तथाकथित मैग्नाकार्टा आता है। और फिर सिस्टेमेटिक तरीके से भारत के कृषि-शिल्प-वाणिज्य के साथ साथ शिंक्षा को नष्ट किया जाता है। मैक्समुलर, विलियम मोनियर, रोबर्ट दे निबोली, एम ए शेररिंग के अनुसार धर्म परिवर्तन में अगली बड़ी बाधा - ब्रामहण ( सवर्ण) और जाति नामक संस्था थी। इसलिए इन दोनों को सिस्टेमिक तरीके से गरियाते हुए हिंदूइस्म को निम्न ब
धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बनाम धर्माधारित लोकतंत्र  पहली बात तो हम सब को  जान लेना चाहिए कि विश्व में कहीं भी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र नहीं है. यह  धर्मनिरपेक्ष शब्द ही अवास्तविक है ,झूठा है और केवल भारत में बदमाशों और लफंगों के द्वारा प्रचारित है.संसार में कोई भी इस गंदे शब्द का उच्चारण तक नहीं करता . इतने दुस्साहसिक लफंगे केवल भारत में हैं जो  इस नितांत असभ्यता सूचक शब्द का उच्चारण करें क्योंकि इस शब्द की अंग्रेजी होगी Lawlessness, Arbitraryness , Virtuelessness , Democracy without Any Value , इत्यादि .  दूसरी बात यह है कि पश्चिमी यूरोप का कोई भी Nation State  धर्म से उदासीन नहीं है या कह सकते हैं कि रिलीजन से उदासीन नहीं है अपितु प्रत्येकNation State  का एक धर्म है ,उसके द्वारा घोषित रूप से एक विशेष रिलिजन का राजकीय संरक्षण किया जाता है जिसका अर्थ होता है कि वहां की शिक्षा और न्याय व्यवस्था तथा शासन की संरचना में उस रिलीजन का आधारभूत प्रभाव रहेगा और वह रिलिजन ही वहां विधि का प्रथम स्रोत होगा .इस तथ्य को अच्छी तरह जान लेना आवश्यक है अतः धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र विश्व में कहीं नहीं

आर्यभट्ट और वाराताहमिहिर में कुछ नहीं रखा,भूतिया फिल्मों से प्रेरित ब्रम्हाण्ड कैसे बना इसपर बिगबैंग थ्योरी दे

पूरब का ब्रम्हाण्ड, पश्चिम का बिगबैंग और भूतों वाली फिल्म [हमारी शिक्षा और व्यवस्था, आलेख – 25] --------------------   किसी ने लिखा – “एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” और हम पत्थर लिये पिल पडे। आसमान में तो सूराख नहीं हुआ, दो चार सर अवश्य फट गये हैं। कथनाशय यह है कि शब्दार्थ और भावार्थ के मध्य जमीन और आसमान का अंतर है और यही प्राचीन ज्ञान के प्रति समझ विकसित करने का प्राथमिक सूत्र है। प्राचीन का विषय उठा है तो ज्ञान होना चाहिये कि क्या आर्यभट्ट के इस राष्ट्र भारत के पास सृष्टि और इसकी उत्पत्ति की कोई मौलिक अवधारणा पहले से समुपस्थित थी? इस विषय पर गहरे उतरने से पूर्व यह भी समझना चाहिये कि ब्राम्हाण्ड की उत्पत्ति से संदर्भित बिग-बैंग थ्योरी जिसे आज कमोबेश सर्वत्र मान्यता प्राप्त है, से पहले, क्या समझ विकसित थी। बाईबल सेवन डे थ्योरी प्रदान करती है अर्थात परमेश्वर ने सात दिन में सृष्टि का निर्माण किया। आरम्भिक छः दिनों में परमेश्वथर ने ब्रह्माण्ड और पृथ्वी (दिन 1), आकाश और वायुमण्डल (दिन 2), सूखी भूमि और सभी पौधे के जीवन (3 दिन), सितारों, सूरज और चन्द्रमा सहित अनेक  निकायों का
भादो की लस्सी कुत्तो की, कार्तिक की लस्सी पूतों को....    ये सुनने में केवल एक लोक कहावत लगती है लेकिन इसके बहुत गूढ़ अर्थ हैं । और ये सीधा सीधा हमारी सेहत से जुड़ा है । हिंदू कैलेंडर का छठा  महीना भादों बरसात के दो महीनों में से एक है । सावन की रिमझिम बारिश में चारों और हरियाली की चादर फैली होती है तो भाद्रपद महीने की धूपछांव सावन की हरियाली को खत्म करने लगती है । हांलांकि बारिश इस महीने में भी पड़ती है लेकिन सूर्य चूंकि तब तक सिंह राशि में आ जाता है और शेर की तरह ही दहाड़ता दिखता है । इस महीने की धूप बहुत तीक्ष्ण होती है । इस महीने में भी  उन्हीं सब बीमारियों का डर रहता है जिनका  सावन में रहता हैं , वायरल , खांसी जुकाम , डायरिया मलेरिया डेंगू आदि । आयुर्वेद में इस महीने में खान पान के नियम बहुत सख्त  रखे गए । इस महीने में दही और लस्सी का प्रयोग तो बिल्कुल मना किया गया है । दही और लस्सी ही क्यों खमीर से बनने वाले जितने भी खाद्य पदार्थ जैसे इडली , वड़ा , डोसा , ढ़ोकला आदि कुछ भी  नहीं खाना चाहिए । इस महीने की उग्र धूप से शरीर में पित्त का संचय होता है । इसी कारण आपने देखा
गंगुओं का हमारा युग और राजा भोज [हमारी शिक्षा और व्यवस्था, हमें तो वास्कोडिगामा ने खोजा है, भारतीय उससे पहले थे ही कहाँ? पढाई जाने वाली पाठ्यपुस्तकों का सरलीकरण करें तो महान खोजी-यात्री वास्कोडिगामा ने आबरा-कडाबरा कह कर जदू की छडी घुमाई और जिस देश का आविष्कार हुआ उसे हम आज भारत के नाम से जानते हैं? माना कि देश इसी तरह खोजे जाते हैं लेकिन अपनी ही डायरी में वास्कोडिगामा किस स्कंदश नाम के भारतीय व्यापारी का जिक्र करता है? वास्कोडिगामा स्वयं लिखता है कि उसके पास उपलब्ध से तीन गुना अधिक बडे जहाज में मसाले तथा चीड़ -सागवान की लकडियाँ ले कर अफ्रीका के जंजीबार के निकट पहुँचे इस भारतीय व्यापारी से दुभाषिये की मदद से संवाद स्थापित कर उसने उससे भारत आने की इच्छा प्रकट की। स्कंदश के जहाज के पीछे पीछे ही वह भारत पहुँचा। हे एनसीईआर्टी, हे सीबीएसई, हे यूजीसी वगैरह वगैरह, कृपया शंका समाधान करें कि हम अपना अस्तित्व कब से मानें, वास्कोडिगामा की खोज से पहले अथवा पश्चात से? अपनी ही पुरानी पुस्तकों को हम कितना जानते हैं? “जहाज के निर्माण में लोहे का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये चूंकि इससे समुद्री य

यूरोप में गुलाम बनाकर जानवरों जैसा व्यवहार

  नकली स्वाधीनता के पश्चात नकली शिक्षा के द्वारा हमें पढ़ाया गया अंग्रेज तो यहां आए थे काली मिर्च का व्यापार करने ..!! पर ये कभी नहीं बताया के वो काली मिर्च के साथ साथ यहां से लोगों को गुलाम बना के ले जाते और उंन्हे पूरी दुनिया मे बेचते ।। ऐसे ही एक गुलामो का व्यापारी था एल्हू येल ..!! जिसका दक्षिण भारत मे बड़ा तगड़ा नेटवर्क था ।। वो दक्षिण भारत से अपहरण करके हजारों बच्चों महिलाओं को गुलाम बना के ले जा के अमेरिका में बेचता था ...! जिससे उसने अकूत दौलत कमाई और उसी दौलत का एक बड़ा हिस्सा उसने सन 1718 में अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी को दान कर दिया ।। इसी के बाद उस यूनिवर्सिटी का नाम येल यूनिवर्सिटी पड़ा ।। जहां पढ़ के आज के भारतीय गर्व महसूस करते हैं ।। अब सवाल है के इस सब इतिहास को देश से छुपाया क्यों गया ..?? दरअसल अंग्रेजों ने आजादी के बदले नेह रू गां धी अ म्बेडकर से वादा ले लिया था के आजादी के बाद ... अंग्रेजों के अत्याचार बाहर नही आने चाहिए ..!! पर अत्याचार तो हुआ था ..!! लोगों को गुलाम बना के बेचा गया ..!! उनकी संपत्तियां लूटी गईं ..!! भारतीयों के रोजगार छीने गए ..!! हमे भुखमरी बीमार
ऋग्वेद में  ''भारत'' देश का राष्ट्र के रूप में सबसे पहला उल्लेख हुआ है — विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनम् ( ३-५३-१२ ) 'विश्वामित्र की प्रार्थनाएँ इस भारत जन ( राष्ट्र ) की रक्षा करती हैं । सत्य उद्घाटित करता लेख -- (( आँखों पर पश्चिम इतिहासकारों और  सनातन द्रोही मार्क्सवादी चश्मा जड़ा हो तो उतार दीजिए इतिहास का सत्य उद्घाटित हो कर रहेगा ) विपरीत शिक्षायें-अंग्रेजी शासन काल में सभी विषयों में तथ्यों के विपरीत शिक्षा दी गयी। बचपन से वही पढ़ने के कारण सही बात समझना असम्भव हो जाता है। कुछ उदाहरण- (१) भारतीय पुराणों में इन्द्र को पूर्व दिशा का लोकपाल कहा गया है। पर पढ़ाया गया कि आर्य लोग पश्चिम से आये और उनके मुख्य देवता इन्द्र थे। लोकपाल रूप में इन्द्र मनुष्य थे और मनुष्यों का भी एक वर्ग देव कहलाता है। (२) भारत के इतिहास का एकमात्र स्रोत पुराण है। उसी से नकल कर उसकी काल गणना को झूठा कहा गया। इसके लिये एक मुख्य काम हुआ कि जितने राजाओं ने अपने शक या संवत् आरम्भ किये उनको काल्पनिक कह दिया। केवल शिलालेखों को प्रामाणिक माना, उनकी तिथियों को सावधानी से नष्ट कर
भारत की आजादी की सच्चाई पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि: ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये। 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में । Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है। स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है। और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए
#ये_आज़ादी_झूठी_है अंग्रेजों द्वारा भारत का शोषण और लूट करने के लिए बनाई गई तमाम कानूनें , शाशन-व्यवस्था आज भी भारत में चल रही हैं, हिंसा व शोषण पर आधारित यह शासन व्यवस्था टिकाऊ बनाये रखने के लिए बनाए गए तमाम कानून अब भी लागू हैं तो मैं ये कैसे मान लूं कि भारत आज़ाद है?? आपने देखा होगा कि राजीव भाई बराबर सत्ता के हस्तांतरण के संधि के बारे में बात करते थे और आप बार बार सोचते होंगे कि आखिर ये क्या है ? पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि: ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये। 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में । Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है। स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है। और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो