संविधान की धारा 348 की वजह से ही गली-गली में अंग्रेजी माध्यम के अधकचरे स्कूल खुल रहे हैं। बच्चा हो या बड़ा, हर एक अपने परिवेश की बोली में ही अपने आप को सहजता से अभिव्यक्त कर पाता है। मातृभाषा परिवेश पर निर्भर करती है न कि मजहब़ वंश, जाति आदि पर। अंग्रेजी जैसी गैर परिवेश की भाषा में तो बस हम रटी रटायी बात ही उगल सकते हैं, मौलिक चिंतन नहीं कर सकते। हमारे देश की संविधान निर्माताओं ने अंग्रेजी को एक अल्प अवधि के लिए ही लागू किया था। उन्हें अनुमान था कि संविधान लागू होने के 15 वर्ष के अन्दर हिन्दी देश के सभी राज्यों में स्वीकार कर ली जाएगी और फिर देश में काम काज की भाषा अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी हो जाएगी। पर तमिलनाडु में हुए विरोध के चलते हिन्दी कामकाज की अधिकारिक भाषा नहीं बन पायी। तमिलनाडु आज भी तमिल को उच्चन्यायालय की अधिकारिक भाषा बनवाने के लिए तरस रहा है। अंग्रेजी व्यवस्था की वजह से भारत में कहने भर को लोकतंत्र रह गया है। पर 'इंग्लिश मीडियम सिस्टम’ की वजह से शासन प्रशासन के स्तर पर होने वाली कार्यवाही जनता के समझ के बाहर है। जनता न तो मूलत: अंग्रेजी में लिखे कानून क
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण