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Showing posts from December, 2017
नए साल का घपला कब 4 अक्टूबर 1582 के अगला दिन 15 अक्टूबर 1582 हो गया हैप्पी न्यू ईयर! मनाने वालों ध्यान से देखो हैप्पी न्यू ईयर आखिर क्यों ? जरा विचार करें - आधी दुनिया में नव वर्ष 1 जनवरी से प्रारम्भ नहीं होता । भारत की बहुआयामी संस्कृति में तो नव वर्ष कई रूपों में मनाया जाता है, जैसे कर्नाटक व तेलुगु क्षेत्रों में उगादि, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी क्षेत्रों में चैती चांद, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पनबा आदि नामों से नव वर्ष दिवस को जाना जाता है । भले ही इनके नाम अलग अलग हैं, किन्तु ये सभी एक ही दिन अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र के पहले दिन मनाये जाते हैं, जो अप्रैल के आसपास होता है । चीन में यह उत्सव जनवरी के अंत से लेकर फरवरी के अंत के बीच संपन्न होता है, इस दौरान सात दिनों के लिए सब कुछ मानो थम जाता है। एक जनवरी को नव वर्ष मूलतः पश्चिमी और ईसाई मान्यता है । इतिहास में ये दोनों ही एक समय पूरी दुनिया को प्रभावित करते थे । यह उत्सव क्यों मनाया जा रहा है, इससे पूरी तरह से अनजान लोगों के लिए भी यह वाणिज्य और व्यापार का सुनहरा मौक़ा हुआ करता था । अपने व्यावसायिक कौशल से पश
   कान्वेंट स्कूल की उत्पत्ति का वह सच जिसे पढ़कर हिल जायेंगे अजय कर्मयोगी  क्या आपसे कभी किसी ने पूछा है कि आपके बच्चे किस स्कूल में पढ़ते है ? आपने जो जवाब दिया वो ठीक है ! पर यदि आपने ये कहा कि मेरे बच्चे कान्वेंट में पढ़ते है या St.thomos, St.xaviour या Don Bosco's में पढ़ते है तो यकीन मानिये आपका स्टेटस सिंबल उस व्यक्ति की नजर में ऊँची हो जायेगी भले आप उस स्कूल के फी डिफाल्टर भी हो तो भी ! पर यदि आपने ये कहा कि मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है तो समझ लीजिये आपका स्टेटस सिंबल का ग्राफ शून्य हो गया ! वैसे मित्रो, आजकल बीपीएल वाले ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेज रहे है ! ये एक हकीकत है आज के समाज की आपकी हैसियत का पैमाना भी ये अंग्रेजी माध्यम के स्कूल ! कितनी ओछी मानसिकता होती जा रही है हमारी और हमारे समाज की ! पर आप शायद इन कान्वेंट विद्यालयों की उत्पति नहीं जानते होंगे कैसे हुई ! आइये इस लेख में पढ़े कि क्या हकीकत इन कान्वेंट विद्यालयों की स्थापना की !  करीब २५०० सालो से यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नही थी ! बच्चा पैदा होते ही उसे टोकरी में रख कर लावारिस छोड़

महान खगोल शास्त्री गणितज्ञ आर्यभट्ट और अंग्रेजी बैरिस्टर अंबेडकर दोनों की जयंती की आज भारत पर प्रभाव व प्रतिध्वनि

  महान गणितज्ञ खगोलशास्त्री आर्यभट्ट जी की जयंती पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं बधाई । आर्यभट के गणित और खगोल विज्ञान में 12 महत्वपूर्ण योगदान 1. आर्यभट ने पृथ्वी की परिधि (circumference) की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो असल लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतीशत कम है। 2. आर्यभट ने वायुमंडल की ऊँचाई 80 किलोमीटर तक बताई थी। असल में वायुमंडल की ऊँचाई 1600 किलमीटर से भी ज्यादा है पर इसका 99 प्रतीशत हिस्सा 80 किलोमीटर की सीमा तक ही सीमित है। 3. आर्यभट्ट ने सूर्य से ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह वर्तमान माप से मिलता-जुलता है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे 1 AU ( Astronomical unit) कहा जाता है। आर्यभट्‌ट के मान और वर्तमान मान इस तरह हैं- ग्रहआर्यभट्ट का मानवर्तमान मानबुध0.375 AU0.387 AUशुक्र0.725 AU0.723 AUमंगल1.538 AU1.523 AUगुरु4.16 AU4.20 AUशनि9.41 AU9.54 AU 4. आर्यभट ने तारों से सापेक्ष पृथ्वी के घूमने की गति को माप कर बताया था कि एक दिन की लंबाई 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सैकेंड होती है जो असल से सिर्फ 0.86 सैकेंड कम ह
*अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए किस हद तक जा सकता है उसका एक उदाहरण आपके सामने है !! *अमेरिका का एक अखबार है जिसका नाम है* *Washington post ! उसमे july 1979 में front page पर एक खबर आई ईरान और इराक नाम के दो पड़ोसी देश ! इनके बीच मे एक क्षेत्र है उसको अरबी भाषा मे shatt-al-arab कहते हैं उसमे बहुत अधिक मात्रा मे तेल छिपा हुआ है !* *खबर जब छपी तो उसमे reference दिया गया कि अमेरिका के जो अन्तरिक्ष मे सैटेलाइट है उनसे मिली जानकारी के अनुसार !* *तो ईरान और इराक दोनों देशो के कान खड़े हो गए और दोनों देशो ने कहना शुरू किया ये जो क्षेत्र है ये हमारा है !दोनों देशो ने एक साथ एक क्षेत्र पर अधिकार जमाना शुरू किया तो झगड़ा होना स्वाभाविक था* *दोनों का झगड़ा UNO मे गया !UNO काम करता है अमेरिका के इशारे पर !क्यूंकि अमेरिका के funds पर UNO की बहुत सी नीतिया चलती है* *1979 मे ईरान – ईराक का मामला UNO मे गया पर UNO ने इस पर कोई फैसला नही दिया !लिहाजा दोनों देशो मे एक दूसरे के खिलाफ युद्ध करने का तय कर लिया !* *इधर अमेरिका ने सदाम हुसेन को हथियार बेचना शुरू किया ! और उधर ईराक को हथियार बे

कुदरत का यह करिश्मा देखने के बाद प्रकृति की इस अनोखी छटा का कोई विकल्प नहीं हो सकता प्रकृति के साथ कैसा संजोग यह देखने में अद्भुत अकल्पनीय वीडियो है अजय कर्मयोगी

कहा जाता है सिख रात 12 बजे के बाद पागल हो जाते हैं ! ऐसा कहकर सिख भाइयो को मजाक उड़ाया जाता है पर क्या आप इसके पीछे सच जानते हैं? पढ़िए इस पोस्ट को और हरिसिंह नलवा के प्रति आपकी श्रधांजलि हो तो शेयर अवश्य करें !! जिससे जानकारी सभी तक पहुंचे !:: हरिसिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति थे उनका जन्म १७९१ में २८ अप्रैल को एक सिख परिवार, गूजरवाला- पंजाब में हुआ था इनके पिता का नाम गुरदयाल सिंह माँ का नाम धर्मा कौर था, बचपन में उन्हें घर पर लोग हरिया के नाम से पुकारते थे सात वर्ष में ही पितृ-क्षाया उनके ऊपर से उठ गयी १८०५ में महाराजा रणजीत सिंह ने बसंत उत्सव पर प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमे भाला, तलवार, धनुष-बाण इत्यादि शस्त्र चलाने में नलवा ने अद्भुत प्रदर्शन किया महाराजा बहुत प्रभावित हो अपनी सेना में भारती कर अपने साथ रख लिया एक दिन महाराजा शिकार खेलनेगए अचानक रणजीत सिंह के ऊपर शेर ने हमला बोल दिया हरीसिंह ने उसे वही तमाम कर दिया रणजीत सिंह के मुख से अचानक ही निक़ल गया अरे तुम तो राजा नल जैसे वीर हो तब से उनके नाम में नलवा जुड़ गया और वे सरदार हरिसिंह नलवा कहलाने लगे, महा
एक ऐतिहासिक कहानी आपको बताता हूं। हवेनसांग जब भारत आया तो वह नालंदा विश्‍विद्यालय में पुस्‍तकों को देखकर चकित हो गया। उसने कहा,जिस समाज में ज्ञान का ऐसा भंडार हो, वह सदियों तक पूरी मानवता को रोशनी दे सकता है। वह वहां वर्षों रहा। उसने असंख्‍य पुस्‍तकों की हस्‍तलिखित प्रति तैयार की, आचार्यों से ज्ञान हासिल किया और अपने देश लौटने लगा। उस समय बारिश का मौसम था। नदियां उफान पर थीं। हवेनसांग ने अपने साथ ढेर सारी पुस्‍तक अपने देश ले जाने के लिए लाद लिया। विवि के आचार्य ने हवेनसांग के साथ एक छात्र को लगाया और कहा कि यह हमारे अतिथि हैं। हमारे लिए देवता समान हैं। इन्‍हें सुरक्षित नदी पार करा देना और हां देखना इनकी एक भी पुस्‍तक नष्‍ट न होने पाए। पुस्‍तक हमारी सांस्‍कृतिक धरोहर हैं। हवेनसांग के साथ वह छात्र चला। नाव पर सवार हुआ। नाव मझधार में पहुंची। नदी उफन रही थी और हवा भी तेज थी। अचानक नाव डगमगाने लगा। नाविक ने कहा, नाव से कुछ भार कम कीजिए, अन्‍यथा नाव डूब जाएगी। पुस्‍तकें पानी में फेंक दीजिए, वर्ना हम सब मारे जाएंगे। हवेनसांग एक पुस्‍तक पलटता और उसमें ज्ञान का खजाना पाकर उसे रख देता। वह
अमृता फडनवीस, सांता क्लाज और नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट -- हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस की पत्नी श्रीमती अमृता फडनवीस (Amruta Fadnavis) की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर आईं, जिसमें उन्हें किसी रेडियो चैनल के लिए क्रिसमस आयोजनों का आरम्भ करते हुए “सांता क्लाज़” (Santa Claus) का प्रचार करते हुए देखा गया. एक मुख्यमंत्री की पत्नी का इस तरह सरेआम एक सार्वजनिक कार्यक्रम में किसी ऐसी संस्था अथवा किसी ऐसे पंथ को लेकर प्रचार करना जो पहले से ही धर्मांतरण के लिए बुरी तरह बदनाम है स्वाभाविक रूप से विवाद पैदा करने वाला था. तो विवाद हुआ भी... सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक हुआ.... परन्तु हमें यह समझना जरूरी है कि आखिर अमृता फडनवीस ने ईसाईयत के इस प्रतीक, जो कि "काल्पनिक बुढ्ढा यानी सांता क्लाज" है, का प्रचार करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?? जैसा कि सभी जानते हैं ईसाईयत के प्रचार और धर्मान्तरण के लिए ईसाई संस्थाएँ जबरदस्त ब्रांडिंग, इवेंट मैनेजमेंट तथा सेलेब्रिटीज़ को अपने साथ अधिकाधिक जोड़ने का प्रयास करती हैं, ताकि उन्हें समाज में एक स्वीकार्यता प्राप्त हो सके तथ
#क्रिप्टो_क्रिस्चियन_क्या_है....?अजय कर्मयोगी भारत की जनता में ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन छुपे हुए आस्तीन के सांप है जो भारत की संस्कृति तथा हिंदुओं के लिये एक अनदेखा खतरा है जिनका मूल उद्देश्य भारत को तथा इसकी हिन्दू संस्कृति को धीरे धीरे नष्ट करना है.. ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त क्रिप्टो-क्रिस्चियन का अर्थ हुआ गुप्त ईसाई।इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिस्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं। क्रिप्टो-क्रिस्चियानिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है।क्रिप्टो क्रिस्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिस्चियन जिस देश मे रहतें है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते है,वहाँ का धर्म मानतें हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है,पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रचार करते रहतें है.. क्रिप्टो-क्रिस्चियन का सबसे पहला उदाहरण रोमन सामाज्य में मिलता है जब ईसाईयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्काल महान रोमन सम्राट ट्रॉजन ने ईसाईयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और
भारत भी ईसा के कथित अनुचरों के सेवा-कार्यों के छलावे से अभिशप्त होकर अलगाव की आंधी में जल रहा है. ऐसे में सेमेटिक परिवार के इस सबसे बड़े सदस्य और उनके लोगों के बारे में प्रारंभिक जानकारी होना हमारे लिये अनिवार्य आवश्यकता है. इसलिये ईसा, चर्च और बाईबल पर कुछ जानकारीपूर्ण आलेख लिख रहा हूँ. सहेज कर रखियेगा...आगे बहुत काम आयेगा. आने वाला समय बौद्धिक युद्ध का है..याद रहे.. #मसीही_धर्म_शिक्षा ******************************************* 'बाईबल' को जानिये ******************************************* अब तक जिन सुसमाचारों की चर्चा की गई वो 'नया-नियम' के एक अंश मात्र हैं क्योंकि इसकी 27 किताबों में इन सुसमाचारों की संख्या बस ये चार ही थी यानि 23 के करीब और किताबें भी हैं जिसपर चर्चा जरूरी है. हैरान करने वाली बात ये है कि सुसमाचारों में ईसा के जन्म, उनकी वंशावली, उनके उपदेश और सूलीकरण वगैरह की चर्चा है पर ये सुसमाचार इन 23 किताबों में से कईयों की रचना के काफी बाद लिखे गये. बाकी बची 23 किताबों में कई किताबों की रचना इन सुसमाचारों से काफी पहली ही की जा चुकी थी. कह
दिसंबर यानि क्रिसमस का महीना शुरू हो गया है. दुनिया के सैकड़ों देशों के अरबों लोग जो ईसा को मानतें हैं उन सबकी आस्था का त्योहार 'क्रिसमस' इसी महीने के अंत में आता है. इन सबके साथ हमारा भारत भी ईसा के कथित अनुचरों के सेवा-कार्यों के छलावे से अभिशप्त होकर अलगाव की आंधी में जल रहा है. ऐसे में सेमेटिक परिवार के इस सबसे बड़े सदस्य और उनके लोगों के बारे में प्रारंभिक जानकारी होना हमारे लिये अनिवार्य आवश्यकता है. इसलिये कल से ईसा, चर्च और बाईबल पर कुछ जानकारीपूर्ण आलेख लिख रहा हूँ. सहेज कर रखियेगा...आगे बहुत काम आयेगा. आने वाला समय बौद्धिक युद्ध का है..याद रहे.. #मसीही_धर्म_शिक्षा : भाग-३ ************************************************ 'बाईबल' को जानिये ************************************************ दो वर्ष पूर्व इसी दिसंबर महीने में मैंने चर्च के एक फादर के साथ 2012 में हुआ अपना एक संवाद यहाँ लिखा था. उस संवाद के दौरान फादर ने जब मुझसे ये कहा था कि ईसा के शरण में आना ही मुक्ति की राह है तो मैंने उनसे पूछा था कि मेरे हिसाब से तो दुनिया में एक भी ईसाई नहीं है जो प
कुम्भ पर्व-स्थलों का सांस्कृतिक व भौगोलिक रहस्य ज्योतिष विद्या के स्रोत के विषय में दो मत हैं – १. ज्योतिष विद्या अनेक देशों में स्वतन्त्रतया जन्मी। २. ज्योतिष विद्या मूलत: भारतीय है। हमारा मत इन दोनों से अन्य और तीसरा है और वह उपर्युक्त दोनों मतों से प्राचीन है किन्तु मानवता द्वारा उसे विस्मृत कर दिया गया है। वह मत है – ३. मानवता के आरम्भिक काल में जब संस्कृतियाँ व राष्ट्र पृथक् नहीं हुए थे तभी ज्योतिष का जन्म हो चुका था और उनके पृथक् होने के उपरान्त श्रेष्ठ संस्कृतियों व राष्ट्रों ने स्वतन्त्रतया इसका पृथक्-पृथक् विकास किया जिसका समय-समय पर न केवल विनिमय हुआ अपितु संयुक्त परियोजनाएँ भी चलाईं गईं। ऐसी ही एक संयुक्त परियोजना थी – रेखांशों का निर्धारण! अक्षांशों (latitudes) व रेखांशों (longitudes) का ज्ञान अति महत्त्वपूर्ण है। इनके बिना समुद्र यात्रा, मानचित्र-निर्माण आदि अनेक बातें अशक्य ही हैं। अक्षांशों का ज्ञान अपेक्षाकृत सरल है। सूर्य की सहायता से इनका अनुमान हो सकता है। उत्तरी गोलार्ध में ध्रुवतारे (Polaris) की सहायता से अक्षांश जानने की परम्परा अति प्राचीन है किन
गुरुकुल ऐसे विद्यालय जहाँ विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरू के परिवार का हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता है।[1] भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे विद्यालयों का बहुत महत्व था। प्रसिद्ध आचार्यों के गुरुकुल के पढ़े हुए छात्रों का सब जगह बहुत सम्मान होता था। राम ने ऋषि वशिष्ठ के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। इसी प्रकार पाण्डवों ने ऋषि द्रोण के यहाँ रह कर शिक्षा प्राप्त की थी। प्राचीन भारत में तीन प्रकार की शिक्षा संस्थाएँ थीं- (१) गुरुकुल- जहाँ विद्यार्थी आश्रम में गुरु के साथ रहकर विद्याध्ययन करते थे, (२) पाठशाला- जहाँ विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी, (३) तपस्थली- जहाँ बड़े-बड़े सम्मेलन होते थे और सभाओं तथा प्रवचनों से ज्ञान अर्जन होता था। नैमिषारण्य ऐसा ही एक स्थान था। गुरुकुल आश्रमों में कालांतर में हजारों विद्यार्थी रहने लगे। ऐसे आश्रमों के प्रधान 'कुलपति' कहलाते थे। रामायण काल में वशिष्ठ का बृहद् आश्रम था जहाँ राजा दिलीप तपश्चर्या करने गये थे, जहाँ विश्वामित्र को ब्रह्मत्व प्राप्त हुआ था। इस प्रकार का एक और प्रसिद्ध आश्रम प्रयाग में भारद्वाज मुनि का था।[2]
 जब बाल झड़ रहे हों 1. नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा। 2. बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा। 3. दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी। कफ और सर्दी जुकाम में सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं। 1. नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा। 2. गले में खराश या ड्राई कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा। 3. नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है। 4. तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा। शरीर, सांस की दुर्गध में यह परेशानी भी आम है। कई बार तो हमें इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाता है। 1. नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं। 2. गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है। 3. पान के पत्ते और
इस लेख में बहुत सारे विचार हम से भिन्न है आप भी इसे पढ़कर हमें अपने विचार देने का कष्ट करें अजय कर्मयोगी ################ यजुर्वेद व्याख्या की कठिनाई-इनका मुख्य भाष्य उव्वट-महीधर का है। तैत्तिरीय संहिता के भाष्य सायण तथा भट्ट भास्कर के हैं। एक नया फैशन दीखा है कि सायण तथा महीधर को वामपन्थी कह कर उनका बहिष्कार करे। पिछले 100 वर्ष के सभी वामपन्थियों के वे बिल्कुल विपरीत हैं। सायण और महीधर भी वामपन्थ के घोर विरोधी थे। उन्होंने ब्राह्मण ग्रन्थों के यज्ञ सम्बन्धी विवरणों के अनुसार भाष्य लिखा है। कई स्थानों पर यह निराधार या मनमाना हो जाता है। सबसे अधिक भ्रम प्रथम तथा अन्तिम श्लोकों में ही है जो प्रायः सभी भाष्यों में है। परिणाम स्वरूप सभी वेदों की व्याख्याओं में है। ऋग्वेद मूर्ति, यजुर्वेद गति तथा सामवेद महिमा रूप है। पर कई लोग वेद का नाम सुनते ही मूर्ति या ऋग्वेद का विरोध शुरू कर देते हैं। यज्ञ का अर्थ जाने बिना यजुर्वेद की व्यवस्था नहीं हो सकती। यज्ञ का अर्थ मन्त्र पढ़कर आग में हवन करना नहीं है। यजुर्वेद में गति का वर्णन है। कई गति क्रिया रूप में होती हैं। क्रिया नाशक या उपयोगी हो सकत