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Showing posts from January, 2021

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत की रहस्यमयी संदेह और गहराया १२५ वी जयंती पर

       #सुलगते_सवाल??? क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कायर थे जो गुमनामी बाबा के रूप में बरसों तक रहे और कभी सामने नहीं आए ??? इस प्रश्न का उत्तर #अनुज_धर की बहुचर्चित पुस्तक #नेताजी_रहस्यगाथा में स्पष्ट हो जाता है। जिस विमान दुर्घटना में नेताजी को मृत मानकर नेहरू सरकार ने चैन की सांस ली थी वो दरअसल उस दिन वहाँ से उड़ा ही नहीं था। ये अंग्रेज़ी सत्ता को धोखा देने की चाल थी। नेताजी मंचूरिया होते हुए रशिया निकल गए थे। किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान और जर्मनी की पराजय और स्टालिन के रशिया का मित्र राष्ट्रों की ओर झुकाव नेताजी के लिए मुसीबत बन गया था। स्टालिन ने नेताजी को साइबेरिया के कन्सन्ट्रेशन कैंप में रखा था। किंतु १९४८ में स्टालिन की मृत्यु के बाद रशिया में सत्ता परिवर्तन हुआ था और नये लोगों को फालतू में कैदियों का बोझ ढोने में कोई रुचि नहीं थी इसलिये नेताजी को चुपचाप वहाँ से चीन रवाना कर दिया गया था जहाँ से छुपते छुपाते वे तिब्बत के रास्ते भारत में आए लगभग १९५६ के आसपास। फिर १९८५ तक यायावर संत की तरह रहे। १९५६ से नैमिषारण्य, हरिद्वार, गंगोतरी, इत्यादि तीर्थों पर यायावरी करते हुए अंत

दिग्विजयी सम्राट शालिवाहन परमार को आधुनिक शिक्षा ने सम्राट विक्रमादित्य का हत्यारा व शक संवत बना दिया

    विश्वविजेता सिकंदर नहीं सम्राट शालिवाहन थे... सम्राट विक्रमादित्य के ५९ वर्ष बाद शालिवाहन परमार की राज्याभिषेक ७७ (इ.) हुआ था तो मुर्ख वामपंथीयों का यह तथ्य बिलकुल गलत हैं की सम्राट विक्रमादित्य की हत्या उनके परपोत्र शालिवाहन ने किया हैं । मित्रों मैकॉले ने तो इतिहास को बर्बाद किया हैं पर मैकॉले के मानसपुत्र काले अंग्रेज़ो ने इस परंपरा को आगे ज़ारी रखते हुए इस राष्ट्र के वीरों को गुमनाम कर दिया गया और लूटेरों को इस भारत भूमि के शासक बना दिया गया, जैसे अंगिनत बार हारनेवाले मैसिडोनिया के सिकंदर को विश्व विजयी बना दिया सिकंदर सौ से भी अधिक राज्यों से पराजित हुआ था सिकंदर को विश्वविजयेता घोषित करनेवाले मैकॉले के मानसपुत्र इतिहासकार थे। आप सोच भी नहीं सकते इन्होंने इतिहास में कितनी गंदी मिलावट की, प्रियदर्शिनी नाम का राजा हुआ करता था जो विश्वविजयता था उनको मिटा कर राजा अशोक का नाम प्रियदर्शिनी कर दिया गया सातवाहन राजा सातकर्णि राजा कोई और था पर इतिहासकारों ने विक्रमादित्य के परपौत्र के नाम को मिटाने के लिए शालिवाहन को सातकर्णि बना दिया । हमारे भारत के १२ ऐसे राजा हुये जिन्होंने विश्वविजय

केवल शुभ लाभ की संस्कृति में ही वैश्य कर्म है

   कुछ सिद्धांत और लॉजिक बड़े अच्छे होते हैं पर उनका व्यवहारिक पक्ष बड़ा ही भयानक होता है   वैश्यशूद्रौ प्रयत्नेन स्वानि कर्माणि कारायेत् । तौ हि च्युतौ स्वकर्मभ्यः क्षोभयेतामिदं जगत् ।। राजा वैश्य तथा शूद्र से यत्नपूर्वक अपने-अपने कर्मों को करवाता रहे, क्योंकि स्वकर्मों से भ्रष्ट ये दोनों इस संसार को क्षुभित कर देंगे। [भूत-भौतिक पदार्थों के स्वरूपरक्षक नियम- विधिविधान ही भूतभौतिक पदार्थों के प्राकृतिक धर्म हैं। समस्त प्राकृतिक पदार्थ अपने-अपने अन्तर्यामीरूप निःयतिःसत्यात्मक धर्मसूत्रों से ही नियन्त्रित हैं, इन सभी प्राकृतिक धर्मों का मूलाधार विश्वातीत शाश्वत-निरपेक्ष मूलधर्म है। 'धर्मो रक्षति रक्षितः' इसी प्राकृतिक या प्रतीक धर्म के लिए ही कहा गया है। सत्य-धर्म और धर्म-कर्म शब्द अभिन्नार्थक बने हुए हैं। सत्य धर्मरूप से अभिव्यक्त है और धर्म कर्मरूप से सुसमृद्ध है। ब्रह्म से उत्पन्न क्षत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसी कारण भीष्म ने 'राजा कालस्य कारणम्' कहते हुए प्राकृतिक धर्म को सत्तातन्त्रसाक्षेप माना है। चूंकि ब्रह्म प्रतीकभूत ब्राह्मण भूतात्मनिष्ठ बनता हुआ स्वयं अप