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Showing posts from April, 2018
ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 AD में मात्र 70,000 पौंड में बनाई गई एक व्यापारिक संस्था थी ( रोमेश दत्त)। जब ये यूरोपीय ईसाई जलदस्यु (Pirate या Buccaneers लिखा इनको विल दुरान्त ने - कितना अच्छा और सम्मानीय लगता है न, ठीक वैसे ही जैसे हमारे इतिहासकार शरेआम डाका हत्या बलात्कार लूट और विनाश को Emperealism या उपनिवेशवाद लिखते हैं) विश्व के गैर ईसाइयों की जऱ जोरू जमीन पर कब्जा करने के लिए 16वीं शताब्दी में बाहर निकले तो इनके प्रतियोगी अन्य यूरोपीय ईसाई दस्यु मैदान में थे - डच स्पेनिश, पुर्तगीज, फ्रेंच - सबमे एक ही चीज कॉमन थी - डकैती के लिए ये अपने यूरोपीय ईसाई भाइयों की उतनी ही क्रूरता से लूटते और कत्ल करते थे - जितनी क्रूरता से उन गैर ईसाइयों का, जिनको लूटने ये निकले थे। खैर - मुख्य धारा में आइये। कंपनी ने जिन अनैतिक सेमी लिटरेट और अनपढ़ यूरोपीय ईसाइयो को नौकरी पर रखा उनमे दो शर्ते होती थीं कि वेतन कम होगा लेकिन #प्राइवेट_बिज़नेस की छूट हॉगी। अब देखिए ये भी कितना रहस्मयी शब्द है प्राइवेट बिज़नेस - अर्थात सरकारी पद के सदुपयोग से गैर ईसाइयों के लूट की छूट।  ( खैर आज भी यह प्रैक्टिस जारी है लेकिन
भारत का स्वर्णिम इतिहास: भाग-५ ============= गुरुकुलों के आधार पर जो भारत में जो चलता रहा है, वो क्या है, इन गुरुकुलों में विद्यार्थी धातु विज्ञान सीखते है या नक्षत्र विज्ञान सीखते है या खगोल विज्ञान सीखते है या धातुकर्म सीखते है या भवन विज्ञान सीखते है जो कुछ भी सीखते है, और सीख कर निकलते है, शायद वही बड़े बड़े वैज्ञानिक और इंजिनियर हो जाते है. १४ वर्ष की पढाई सामान्य नहीं होती है. आज की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में अगर हम देखें तो यहाँ १४ वर्ष की पढाई तो जो प्रोफेशनल एजुकेशन है उसी में होती है. यहाँ तो भारत में सामान्य गुरुकुलों में १४ वर्ष की पढाई होती है. और इसके बाद विशेषज्ञता हासिल करनी है, पंडित होना है, पांडित्य आपको लाना है, तो उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र इस देश में चलते है. जिनको उच्च शिक्षा केंद्र अंग्रेजो ने कहा है, आज उनको हम भारत में यूनिवर्सिटी और कॉलेजेस कह सकते है. आज इस भारत देश में, २००९ में, भारत सरकार के लाखो करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद लगभग साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है प्राइवेट और सरकारी सब मिलाकर और ४५० विश्वविद्यालय है, निजी और सरकारी कोनो मिलाकर, साढ़े तेरह हजार
भारत का स्वर्णिम इतिहास भाग - २ राजीव दीक्षित के व्याख्यान से थोड़ा आगे बढ़ता हू, शिक्षा व्यवस्था के बारे में, थोड़ी तकनीकी और विज्ञान की बातें, और थोड़ी सी कृषि व्यवस्था की बातें कर लेना चाहता हू, उद्योगों के साथ-साथ इस देश में विज्ञान और तकनिकी का भी बहुत विकास हुआ है. और हमारे अतीत के भारत की विज्ञान और तकनिकी के बारे में दुनिया भर के बहुत सारे शोधकर्ताओ ने बहुत सारी पुस्तके लिखी है. ऐसा ही एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर वो भारत में कगी लम्बे समय तक रहा, और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थोड़ी देर पहले मैंने लिया थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम है ???????????????टेंडरक्रस्ट उसने भारत की टेक्नोलोजी और विज्ञान पर बहुत ज्यादा कम किया है. और एक अंग्रेज है केम्पबेल कर के उसने भी भारत की विज्ञान और तकनिकी पर बहुत ज्यादा काम किया है. केम्पबेल का एक छोटा सा वाक्य मै आपको सुनाता हु वो ये कहता है “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है, ये तभी संभव है जब उस देश में कारखाने हो, और
🕉🙏🏻भगवान विष्णु जी 1300 वर्षो  से तैरते हुए पर कडाल आदि शैया पर यह मंदिर भूतनीकंटा , जो नौ कि.मी.नेपाल की राजधानी से दूरी पर स्तिथ हैं विश्व के अनेक वैज्ञानिकों के लिऐ यह शोध और कौतूहल का विषय रहा है यह 14 फीट पानी पर तैरती विश्व की एक मात्र मूर्ती है । वन्दे-मातरम
ATM और बैंकों में कैश की कमी के क्या हैं बड़े कारण ------------------------------------- लोगों का डर सही है । बेन्क फैल हो चुके है । अभी सेंकडो नीरव मोदी बेंकों की एक्जाम लेने लाईन लगा के खडे हैं, ये परिक्षक बेन्कों को फैल करते जा रहे हैं । फैल को पास करने के लिए जनता के पैसे को काममें लेना है । जनता को ही परिक्षक बनाना है । जनता नामका परिक्षक बेन्कों को पेपर लिखने में ज्यादा टाईम देगा, भूल सुधारने का मौका देगा, गलत जवाब के भी मार्क दे देगा और बेन्कों को पास कर देगा । -------------------------------- ( पिछले १२-१३ दिन में जनता द्वारा बेन्कों से अचानक अरबों रुपए उठा लिए गये हैं । क्या ये बात सच है? जनताने ही उठाए हैं? या जनता के नाम कोइ मोर कला कर गया है? या नोटबंदी नंबर-२ है? ) . देश के कई राज्यों में कैश की किल्लत की खबरें आने के बाद सरकार हरकत में आ चुकी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली, आर्थिक मामलों के सचिव एससी गर्ग और एसबीआई चेयरमैन रजनीश कुमार ने कैश की कमी के कई कारण गिनाए। आइए जानते हैं कि क्यों ATM सूखे हैं और बैंक खाली... . प्रस्तावित फाइनैंस रेजॉलूशन ऐंड डिपॉजिट
*पत्तल में भोजन के अद्भुत लाभ* आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश मे 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले  लाभों के विषय मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते है। आम तौर पर केले की पत्तियो मे खाना परोसा जाता है। प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियों का यह प्रयोग होने लगा है। नीचे चित्र में सुपारी के पत्तों से बनाई गई प्लेट, कटोरी व ट्रे हैं , जिनमे भोजन करना स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है जिसे प्लास्टिक, थर्माकोल के ऑप्शन में उतरा गया है क्योंकि थर्माकोल व प्लास्टिक के उपयोग से स्वास्थ्य को बहुत हानि भी पहुँच रही है । सुपारी के पत्तों यह पत्तल केरला में बनाई जा रही हैं और कीमत भी ज्यादा नही है , तक़रीबन 1.5, 2, रुपये साइज और क्वांटिटी के हिसाब से अलग अलग है * पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पु
Scientist Believes the Human Microchip Will Become “Not Optional” Technologies designed specifically to track and monitor human beings have been in development for at least two decades. In the virtual realm, software programs are now capable of watching us in real time, going so far as to make predictions about our future behaviors and sending alerts to the appropriate monitoring station depending on how a computer algorithm flags your activities. That is in and of itself a scary proposition. What may be even scarier, however, is what’s happening in the physical realm. According to researches working on human-embedded microchips it’s only a matter of time before these systems achieve widespread acceptance. “Chances are you’re carrying a couple of RFID microchips now. And if you are, they’re sending out a 15-digit number that identifies you. That number can be picked up by what’s called an ISO compliant scanner. And they’re everywhere, too. […] “It’s not poss
आज कन्यादान नही होता बुढ़िया दान होता है क्या_यह_अजीब_नहीं_कि_बालविवाह_का_हौव्वा_केवल_इस_तर्क_पर_आधारित_है_कि_गर्भधारण_के_लिए_उनका_शरीर_तैयार नही है । सम्पन्न घरों की लड़कियां बहुत ज्यादा पोर्न देखती है। वे हर समय यौन उन्माद में जीती है।श्रम विहीन जीवन और अच्छे खानपान से वे जल्दी जवान होती है। उनके पास अपना एक अलग कमरा होता है। वे पेरेंट्स द्वारा तैयार किया एक सेक्सबम हैं जो जरा सी चिंगारी मिलते ही कभी भी फूट सकता है। इसके विपरीत परम्परागत हिन्दू परिवारों में ऐसा नहीं होता था। लड़कियों को कई व्रत करने पड़ते थे। उत्तेजक आहार नहीं दिया जाता था। थोड़ी जवान होते ही विवाह या गौना हो जाता था। विवाह पूर्व श्रृंगार, अच्छे कपड़े आदि केवल नैमित्तिक ही थे। सरस लोकगीत और रामचरितमानस में निपुणता अनिवार्य थी। माता, सास या जिठानी का पहरा था। आज की स्कूल शिक्षा इतनी उबाऊ और फालतू है कि घण्टों तक बिना कुछ किये क्लासरूम में बैठना पड़ता है। एनर्जी का उपयोग जैसे सिलाई, नृत्य, खेल, कला आदि को फालतू समझा जाता है। खाली समय में लड़के लड़कियां सेक्स फंतासी में खो जाते हैं। क्या यह अजीब नहीं कि बालविवाह का हौव्वा