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Showing posts from August, 2019
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का रहस्य  :-- नेहरु की दृष्टि में सुभाष चन्द्र बोस एक "#क्रिमिनल" थे, क्योंकि उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा था,, स्वतन्त्रता सेनानियों पर अत्याचार करने वाले अफसरों की नीन्द 15 अगस्त 1947 को उड़ गयी थी, चिन्तित थे कि जिनपर अमानवीय अत्याचार किये गए अब वे बदला ले सकते हैं, किन्तु नेहरु ने संविधान में अनुच्छेद 314 घुसाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त अफसरों को स्वतन्त्र भारत की कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका द्वारा दण्डित किये जाने के भय से  मुक्ति दिला दी, 1971 में जब अन्तिम ICS अधिकारी सेवानिवृत हुआ तब जाकर उसी वर्ष आज़ाद हिन्द फौज के बचे-खुचे जीवित सैनिकों को "स्वतन्त्रता सेनानी" की मान्यता इन्दिरा गाँधी ने दी (CPI के दवाब पर, क्योंकि सुभाष चन्द्र बसु द्वारा स्थापित पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक वाममोर्चा का अंग रही है)।   जिनको अंग्रेजी नहीं आती उनके लिए ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली को नेहरु द्वारा लिखे गए इस पत्र का अनुवाद दे रहा हूँ -- "विश्वस्त सूत्र द्वारा मेरी समझ बनी है कि आपके युद्ध अपराधी सुभा
पिछले दिनों डिस्कवरी चैनल के मसहूर कार्यक्रम मैन वर्सेज वाइल्ड में बेयर ग्रिल्स से अपने बचपन की यादों को साझा करते हुये जब मोदी ने कहा कि एक सामान्य परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें साबुन इत्यादि दुर्लभ थे।लिहाजा वह नहाने तथा कपड़े धोने के लिये मैदान में ओस की बूंदें पड़ने के बाद तैयार हुई मिट्टी की पपड़ी को इकट्ठा कर के लाते थे और उसी से कपड़े धोते थे।इसके बाद सोशल मीडिया पर शहरी बुद्धिजीवियों के बीच एक नयी बहस शुरू हो गयी है कि यह कैसे हो सकता है? बहरहाल, शहरी बुद्धिजीवियों ने जिस चीज को नहीं देखा है तो यह एक प्रकार से शास्वत सत्य मान लिया जाता है कि उस तरह की चीजें दुनिया में होती ही नहीं हैं।मतलब कुएं के मेढ़क ने बाहर की दुनिया नहीं देखी तो वह बस यही गाता रहता है कि "इतना सा ही है संसार।" बाकी जो तीस-चालिस वयवर्ग के हैं और जिन्होंने ग्रामीण परिवेश को जीया है वह मोदी की उस बात को आसानी से समझते हैं कि वह रेह के बारे में बात कर रहे हैं।कुछ सालों पहले तक भूगोल और कृषि विज्ञान में भी इसे सहज ही पढ़ने को मिल जाया करता था।अब इसे पढ़ाया जाता है या नहीं, यह मुझे नहीं पता लेकिन साह
   अब्दुल बसित ने सेकुलर लेखकों की पोल ही नहीं खोली धमकी भी दी है भारत मे लंबे समय तक , पाकिस्तान के राजदूत (हाई कमिश्नर ) रहे अब्दुल बसित ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि उन्हीने भारतीय पोर्न लेखिका व तथाकथित बुद्धजीवी शोभा डे से पाकिस्तान के नैरेटिव, जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की मांग किये जाने को लेकर लिखवाया था।यही नहीं उन्होने यह भी कहा कि उन्होने आतंकवादीयों के पोस्टर बॉय रहे बुरहान बानी के पक्ष में लिखवाने लिखवाने के लिए पैसे दिये थे। अब्दुल बसित पाकिस्तान में केमरे के सामने यह सब कहते पाये गए। अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि विदेश सेवा का एक राजनायिक ऐसा क्यों कह रहा है ? भारतीय लेखकों और पत्रकारों की पोल खोलने के लिए उसने अपनी व्यावसायिक प्रतिबद्धता और सरकारी गोपनीयता भंग करके अपनी सेवा शर्तों का उल्लंघन क्यों किया ? और ऐसे समय पर जब पाकिस्तान की विश्व जनमत में बहुत किरकिरी हो रही है तब उन जैसा निष्ठावान पाकिस्तानी अधिकारी अपनीय राजकीय निष्ठा को डाव पर क्यों लगाना चाहेगा? यह तो जगजाहिर है कि पाकिस्तान ने वर्षों से इन लेखकों और पत्रकारों को पैसे देकर पाला है और अंतराष्
बकरीद की कुर्बानी  का यह वीडियो देख कर आप स्वयं ही तय करें जानवर  कौन? https://youtu.be/Hnf5kE1nOqM

जम्मू कश्मीरी रियासत के प्रमुख महाराजा हरी सिंह की वह सच्चाई जो लोगों से छुपाया गया

     ******************************** जम्मू और कश्मीर रियासत के पूर्व राजा "महाराजा हरि सिंह" का जन्म 23 सितम्बर 1895 को हुआ था. उनके पिता अमर सिंह, जम्मू और कश्मीर रियासत के शासक महाराज प्रताप सिंह के भाई थे. महाराज प्रताप सिंह अपने भतीजे "हरी सिंह" से बहुत स्नेह करते थे, जब हरी सिंह मात्र 20 साल के थे तब उन्होंने उसे अपना सेनापति बनाया. 1925 में जम्मू और कश्मीर रियासत की सत्ता उन्हें आपने चाचा से विरासत में मिली. उनके साशन में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, सिक्ख, आदि सभी बड़े स्नेह से रहते थे. उनके शासन काल में हिन्दू धर्म के तीर्थ ( अमरनाथ, वैष्णो देवी, आदि) के साथ साथ मुस्लिम ( हजरत बल, चरार-ए-शरीफद, आदि ) और बौद्ध तीर्थों ( लेह-लद्दाख में) का भी बहुत विकास हुआ. उनका शासन पंथनिरपेक्षता की एक मिशाल था. हिन्दू , बौद्ध और यहाँ तक कि गिलगीत बल्तिस्तान के मुस्लिमों में भी उनके प्रति आदर और प्रेम का भाव था. उन्होने अपने राज्य में प्रराम्भिक शिक्षा अनिवार्य कर दिया एवं बाल विवाह के निषेध का कानून शुरु किया. ऐसे लोकप्रिय राजा को भी नेहरु, अब्दुल्ला और माउंटबेटेन ने

असम के आसामी राय ने युद्ध कौशल और बुद्धिमत्ता से नालंदा विश्वविद्यालय विध्वंसक बख्तियार खिलजी का सेनाओं सहित विध्वंस किया

   "अगर तुमसे हथियार नही चलते, तो तुम्हारा मर जाना ही बेहतर है "  यही उत्तर था मध्यप्रदेश के छोटे से रियासत के राजपूत राजा की ,  राजा मलेक्षों से लड़ने के लिए जनता को हथियार दे दिए, " इससे पहले कि वो लोग तुम्हे मारे, तुम उन्हें मिटा दो " ।  जनता ने कहा; " हम हथियार का क्या करें, हमसे हथियार नही चलते, हमारी सुरक्षा तो आप ही करें ।"  सनातन रक्त में त्वरित प्रतिक्रिया के तत्वों का आभाव शायद हमेशा ही रहेगा।  प्रतिक्रियात्मक प्रत्युत्तर के लिए बाट जोहना हमारी आदतों में शुमार है।  जिस बख्तियार खिलज़ी (नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंसक आतताई मलेक्ष ) का नाम बिहार राज्य वाले ढो रहे हैं उसको असम के तात्कालिक शूरवीर आसामी राय से सीखनी चाहिए की कैसे बदला लिया जाता है।  बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने के बाद, बिहार समेत आधे भारत को लूटने, खसोटने के बाद आसाम की ओर बढ़ा । बनगांव ( बंगाल में ) में अपना पड़ाव डाला , एकाएक आसाम ही हिन्दू सेना ने आधी रात को ही उसपर चढ़ाई कर दी । आप अनुमान लगा सकते है कम से कम 500 km की दूरी तय कर आसाम की सेना ने उनप

शांति का स्थाई हल गिलगित बालटिस्तान सहित कश्मीर व हिंदूकुश पर्वत माला का भारत में पूर्ण समायोजन

POK_गिलगित_बाल्टिस्तान.. . .. वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में बातचीत करने की जरूरत है तो वह है POK और अक्साई चीन के बारे मेंl इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए गिलगित जो अभी POK नमें है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान(जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चाइना l "वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण l" भारत के इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित से हुए l हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा l किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान में 1965 में गिलगित को Russia को देन