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Showing posts from January, 2018
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस: मृत्यु के जन्म की खोज" भाग (८) सुभाष चन्द्र बोस का जर्मनी प्रवास को लेकर लोग सबसे ज्यादा दिग्भ्रमित है. वहां उनके बिताये गए २ वर्षो के बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध है. ज्यादातर द्वितीय विश्वयुद्ध के बात जो बात सामने आई वो ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी थी , जो एक विजेता का अपना सच था , उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस के बारे में एक तरफा ही बाते कहीं और उनके वास्तविक क्रिया कलापों और चरित्र को सामने न लाकर, उनके खिलाफ ही लिखा गया था . भारत का दुर्भाग्य यह रहा की ब्रटिश सरकार का ही सच, स्वतंत्रता के बाद से ही, नेहरु की कांग्रेस सरकार ने अपना लिया और सुभाष चन्द्र बोस के विरुद्ध कही जाने वाली बातो और आंकलन को, मौन हो कर सच बने रहने दिया गया. आगे और बताने से पहले यह बहुत जनना जरुरी है की ब्रिटिश शासन ने सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ बातो को क्यों प्रचारित किया और क्यों बोस के सच को सामने क्यों नही आने दिया गया. जब सुभाष चन्द्र बोस काबुल में थे और रूस में घुसने के लिए जरुरी पासपोर्ट और ट्रांजिट वीसा का इंतज़ार कर रहे थे तब ब्रिटिश सरकार को बोस के काबुल में होने
उन्मुक्त विकसित सहृदय था प्राचीन भारत- जो लोग भारत को पिछड़ा हुआ कहता हैं उन्हें प्राचीन भारत का अध्ययन करना चाहिए विशेषतः विदेशी यात्रियों के वृतांत का। ऐसा ही एक यात्री था चीनी यात्री ह्वेन त्सांग । उसने अपनी यात्रा 29 वर्ष की अवस्था में 629 ई. में प्रारम्भ की थी। यात्रा के दौरान ताशकन्द, समरकन्द होता हुआ ह्वेन त्सांग 630 ई. में ‘चन्द्र की भूमि‘ (भारत) के गांधार प्रदेश पहुँचा। गांधार पहुंचने के बाद ह्वेन त्सांग ने कश्मीर, पंजाब, कपिलवस्तु, बनारस, गया एवं कुशीनगर की यात्रा की। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन के निमंत्रण पर वह उसके राज्य में लगभग आठ वर्ष (635-643 ई.) रहा। इसके पश्चात् 643 ई. में उसने स्वदेश जाने के लिए प्रस्थान किया। ह्वेन त्सांग अपनी यात्रा के दौरान 639 इसवी में कुछ समय के लिए महाराष्ट्र में आया जहाँ सोलंकी राजा पुलकेशी का शासन था। ह्वेन त्सांग के अनुसार, “जिसके पास ऐसे प्रचंड योद्धा थे जो अकेले ही 1000 लोगों का सामना कर सकते थे तथा सेकड़ों मतवाले हाथी थे” ह्वेन त्सांग के शब्दों में, “इन योद्धाओं और हाथियों के कारण यहाँ का राजा अपने पड़ोसियों की और तिरस्कार की दृष्टि स
रहस्य लौह स्तंभों की तकनीक का वज्रसंघात लेप : अद्भुत धातु मिश्रण लोहस्‍तंभ को देखकर किसे आश्‍चर्य नहीं होता। यह किस धातु का बना कि आज तक उस पर जंग नहीं लगा। ऐसी तकनीक गुप्‍तकाल के आसपास भारत के पास थी। हां, उस काल तक धातुओं का सम्मिश्रण करके अद्भुत वस्‍तुएं तैयार की जाती थी। ऐसे मिश्रण का उपयोग वस्‍तुओं को संयोजित करने के लिए भी किया जाता था। यह मिश्रण '' वज्रसंघात '' कहा जाता था।  शिल्पियों की जो शाखा मय नामक शिल्पिवर के मत स्‍वीकारती थी, इस प्रकार का वज्र संघात तैयार करती थी। उस काल में मय का जाे ग्रंथ मौजूद था, उसमें इस प्रकार की कतिपय विधियों की जानकारी थी, हालांकि आज मय के नाम से जो ग्रंथ हैं, उनमें शिल्‍प में मन्दिर और मूर्ति बनाने की विधियां अध्‍ािक है, मगर 580 ई. के आसपास वराहमिहिर को मय का उक्‍त ग्रंथ प्राप्‍त था। वराहमिहिर ने मय के मत को उद्धृत करते हुए वज्रसंघात तैयार करने की विधि को लिखा है- अष्‍टौ सीसकभागा: कांसस्‍य द्वौ तु रीतिकाभाग:। मय कथितो योगोsयं विज्ञेयाे वज्रसंघात:।। (बृहत्‍संहिता 57, 8) मय ने 8 : 2 :1: अनुपात में क्रमश: सीसा, क

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muslim vegam ka yeh andaaj aap ko chamtkrit kar dega aur bhartiya muslim bhaio ko bhi sochneaye pe majboor kar dega
मित्रो हिन्दुओ के आराध्य देव पुरुषोत्तम राम की भी ध्वजा पूरे दुनिया मे है ।  दुनिया का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भगवान राम के बारे में नहीं जनता हो , सभी भारतीय धर्मग्रंथों में राम का नाम आदर से लया गया है , राम के बिना हिन्दू धर्म और संस्कृति अधूरी है , जैसे हिन्दू अभिवादन के लिए "राम राम " शब्द का प्रयोग करते है मृत्यु बाद भी राम नाम सत्य है कहते हैं । भारत के बाहर भी थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में राम राज्य है , और वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट " भूमिबल अतुल्य तेज " राज्य कर रहे हैं , जिन्हें नौवां राम ( Rama 9 th ) कहा जाता है । लोग थाईलैंड की राजधानी को अंगरेजी में बैंगकॉक ( Bangkok ) कहते हैं , क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है , की इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है , इसका नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है , देवनागरी लिपि में पूरा नाम इस प्रकार है , " क्रुंग देवमहानगर अमररत्नकोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महातिलकभव नवरत्नरजधानी पुरीरम्य उत्तमराजनिवेशन महास्थान अमरविमान अवतारस्थित शक्रदत्तिय विष्णुकर्मप्रसिद्धि &qu
 वामपंथ के सबसे बड़े मसीहा कार्ल मार्क्स के बारे में आपको कुछ बताना चाहता हूँ जिससे आप इनके बारे में ठीक से समझ सकें । तो कार्ल मार्क्स के यहूदी पिता एक बहुत ही धनी वक़ील थे और इनकी माँ बहुत ही धनाढ़्य व्यापारी की बेटी थीं । मिलिनेयर मार्क्स ने खुद कभी एक ढेले का काम नहीं किया , केवल कुछ न्यूज़पेपर्स और कुछ इधर उधर पेपर लिखते थे । मार्क्स ने जनसंख्या पर लोगों को ज्ञान बाँटे और खुद ने सात बच्चे पैदा किया । मक्कार मार्क्स के पास अकूत सम्पत्ति उसके रिश्तेदारों के मरने के बाद ही आई थी, खुद कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे दो पैसे कमा सके । कार्ल मार्क्स के एक अवैध बेटा भी था । जी हाँ, आप ठीक पढ़ रहे हैं , अपने घरेलू नौकरानी से मक्कार मार्क्स ने यह संतान पैदा करी थी । और आप एकदम ठीक पढ़ रहे हैं मार्क्स के घरों में घरेलू नौकर भरे हुए थे । हाँ, यह बात दूसरी है कि वो घरेलू नौकर रखने के सिद्धांत के विरोध में था । कथनी और करनी का विरोधाभास वामपंथ का मूल है । अपने कॉलेज के दिनों में मार्क्स ने एक Trier Tavern Club नामक दारू पीने की सोसाइटी ज्वाइन करी थी । और दारू की वजह से कॉलेज में सबसे
क्या आप जानते है आयुर्वेद में वर्णित है स्वर्ण (सोना) बनाने की कला ? भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था ! भारत पर लगभग 1200 वर्षों तक मुग़ल, फ़्रांसिसी, डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और यूरोप एशिया के कई देशों ने शासन किया एवं इस दौरान भारत से लगभग 30 हजार लाख टन सोना भी लूटा ! यदि यह कहा जाए कि आज सम्पूर्ण विश्व में जो स्वर्ण आधारित सम्रद्धि दिखाई दे रही है वह भारत से लुटे हुए सोने पर ही टिकी हुई है तो गलत न होगा ! यह एक बड़ा रहस्यमय सवाल है कि आदिकाल से मध्यकाल तक जब भारत में एक भी सोने की खान नहीं हुआ करती थी तब भी भारत में इतना सोना आता कहाँ से था ? शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण जैसा महाप्रतापी राजा सोने की लंका में ही रहता था ! अनेकों हिन्दू देवी देवताओं के पास अकूत स्वर्ण उपलब्ध था जिससे वह हजारों वर्षों तक पूरे विश्व का पोषण कर सकते थे ! देवराज इंद्र, यक्षराज कुबेर, विष्णु पत्नी लक्ष्मी, भगवान् श्री कृष्ण आदि के पास इतना धन था कि अकेले एक-एक राजा ही पूरे विश्व का हजारों साल तक पोषण कर सकते थे ! सबसे रहस्यमय प्रश्न यह है कि आखिर भारत में इतना स्वर्ण आया कहाँ से ? इसका एकम

acharya shree praman sagar maharaj ka ajay karmyogi gurukulam sabarmati ko asirvachan

परम पूज्य आचार्य श्री प्रमाण सागर जी के सान्निध्य में , भारत की व्यवस्थाओं को और शिक्षा तंत्र के माध्यम से इस देश को उन्नत बनाने हेतु अजय कर्मयोगी जी का प्रवचन दिनांक 29 -12 2017 दिसंबर
सर्दियों में रोजाना करें भूनी हुई गोंद का सेवन, मिलेंगे कई फायदे सर्दियों में ठंड से बचने के लिए लोग गोंद के लड्डूओं का सेवन करते है लेकिन गोंद को भून कर खाने से भी कई बीमारियां दूर होती है। प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर गोंद का सेवन कैंसर से लेकर दिल तक की बीमारियों को दूर करता है। इसके अलावा सर्दियों में इसे खाने से पुरानी खांसी, जुकाम, फ्लू और इंफेक्शन जैसी समस्याएं नहीं होती। रोजाना गोंद को भून कर खाने से शरीर अंदर से गर्म रहता है, जो आपको कई बीमारियों से दूर रखता है। आइए जानते है रोजाना भूनी हुई गोंद खाने के फायदे। विधि:-  एक पैन में 1/2 टीस्पून तेल गर्म करके उसमें गोंद को भूनें। 3-4 मिनट भूननें के बाद गोंद पॉपकॉर्न की तरह फूल जाएंगे। सर्दियों में गोंद से बने लड्डू का सेवन भी बहुत फायदेमंद होता है। भूनी हुई गोंद खाने के फायदें:- 1- दिल के रोग इसे भून कर रोजाना सेवन करने से दिल के रोग और हार्ट अटैक के खतका कम होता है। इसके अलावा इसका सेवन मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है। 2- प्रैग्नेंसी में फायदेमंद प्रैग्नेंसी में गोंद का सेवन महिलाओं की
आज हम आपके बीच एक बहुत बड़ी सच्चाई रखने की कोशिश करेंगें और यह बताने का प्रयास करेंगें की एसा क्यूँ है की हम लोगो को सब बातो का पता चलते हुवे भी जैसे हम सभी जानते है श्री राजीव दीक्षित जी के साथ क्या हुवा, शहीदे आजम भगत सिंह जी के साथ क्या हुवा या फिर हमारे लोखो क्रातींकारी भाईयो और बहनो के साथ क्या हुवा।।* *यह सभी बातो को जानकर भी भारत देश के लोग क्यूँ सोए हुवे है और एसा क्या कार्ण है की अभी तक भारतीये लोग अपनी नींद से नहींं जाग पाये है।।* *हम चाहए कितना भी बड़ा धमाका कर दें  श्री राजीव दीक्षित जी के विचारो के भारतीये लोगो के बीच मगर हम फिर भी सभी भारतीयो को जगा नहींं पायेंगे एस क्यूँ??* *इस पर हम आप लोगो के बीच एक उधार्ण की तोर पर, आपकी आखेँ खोलने के लिये यह वीडियो आप लोगो के बीच रख रहें है और आगे भी रखते रहेंगें, इस वीडियो का एक एक शब्द सच्चा है की हमे किस प्रकार वे लोग नींद मे रखा रहे है।।* *कृपया इस वीडियो को देखें और इसके एक एक सीन पर हो सकें तो उस पर अपनी छान बीन करें क्यूँकी हमने की है और यह उपेक्षा करते है की आप भी करेंगें।।* https://youtu.be/yIPIeRizbOc *RDX- I
भारतीय मीडिया तो उत्तर कोरिया को इस तरह दिखाती है जैसे वह भारत पर आक्रमण करने जा रहा है ! शर्म भी नहीं आती कि मुट्ठी भर के देश ने भारत से बेहतर ICBM बना डाला है और पूरे इतिहास में पहली बार अमरीका को इस बात का अहसास कराया गया है कि यदि अमरीका ने दूसरों पर आक्रमण किया तो अमरीका को अपनी भूमि पर उसका हिसाब चुकाना पडेगा, वरना विश्वयुद्ध में भी अमरीका की मुख्य भूमि युद्ध से अछूती रही थी, केवल आरम्भ में जापान द्वारा धोखे से हवाई द्वीप पर आक्रमण किया गया था | साभार विनय झा के वॉल से . कोरिया ने अपने पूरे इतिहास में कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, जबकि अमरीका दशकों से वहां आक्रमण भी कर रहा है और लगातार तनाव बनाए हुए है | अमरीकी खतरे के कारण ही उत्तर कोरिया अपने संसाधनों को रक्षा पर नष्ट करने के लिए विवश है और अमरीका के कारण जो आपातकालीन स्थिति उत्तर कोरिया में बनी रहती है उसमें तानाशाही को पनपने का अवसर मिलता है, वरना तानाशाही और कम्युनिज्म उत्तर कोरिया में कब का समाप्त हो गया होता | लोकतन्त्र का ठेका लेने वाले अमरीका ने अपने देश में रेड इंडियनों का सफाया किया और पूरी दुनिया में तानाशाही
कैसे हुआ अंग्रेजी केलेन्डर के 12 महीनों का नामकरण नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये, पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय-कैलेण्डर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले चैत्र वर्ष-प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करना चाहिए...!! जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ. मान्यता है कि जेनस के दो चेहरे हैं. एक से वह आगे और दूसरे से पीछे देखता है. इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं. एक से वह बीते हुए वर्ष को देखता है और दूसरे से अगले वर्ष को. जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया. जेनस जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी हो गया. फरवरी : इस महीने का संबंध लैटिन के फैबरा से है. इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत' . पहले इसी माह में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया करते थे. कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं. जो संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं तब यह साल का आखरी महीना था और इसमें ३० दिन हो