अक्षय तृतीया- वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इसके महत्त्व के बारे में कई लोगों ने बहुत लिखा है तथा बहुत से प्रसंग इसके साथ जोड़ दिये हैं। कई स्थानों पर देखा कि ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म इसी दिन हुआ था। वह ब्रह्मा का नहीं, रावण का पुत्र था तथा उसका अक्षय तृतीया से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके कुछ महत्त्व हैं- (१) वैशाख मास का अर्थ है कि इस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में होगा। अतः उससे १२ दिन पूर्व तृतीया को रोहिणी नक्षत्र (४० से ५३ १/३ अंश) में रहेगा जो चन्द्र का उच्च स्थान (३३ अंश) राशि अनुसार है। इसी प्रकार मेष संक्रान्ति वाला अमान्त मास को चैत्र कहते हैं। मेष १० अंश पर सूर्य उच्च का होता है, अतः अमावास्या के ३ दिन बाद प्रायः उच्च का ही रहेगा। यहां उच्च का अर्थ है अच्छा फल देने वाला, कक्षा का उच्च स्थान नहीं है। कुछ लोगों ने लिखा है कि अन्य तिथि का क्षय हो सकता है, इस तिथि का नहीं। किसी भी तिथि का क्षय हो सकता है। यदि कोई तिथि २४ घण्टा (६० दण्ड) से कम अवधि की है तो संसार के किसी न किसी भाग में उसका क्षय अवश्य होगा, जहां इस तिथि में कोई सूर्योदय
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण