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Showing posts from April, 2020

अक्षय तृतीया व गंगावतरण के विशिष्ट मुहूर्त में स्वतंत्र गुरुकुल अभियान का शुभारंभ

   अक्षय तृतीया- वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इसके महत्त्व के बारे में कई लोगों ने बहुत लिखा है तथा बहुत से प्रसंग इसके साथ जोड़ दिये हैं। कई स्थानों पर देखा कि ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म इसी दिन हुआ था। वह ब्रह्मा का नहीं, रावण का पुत्र था तथा उसका अक्षय तृतीया से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके कुछ महत्त्व हैं- (१) वैशाख मास का अर्थ है कि इस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में होगा। अतः उससे १२ दिन पूर्व तृतीया को रोहिणी नक्षत्र (४० से ५३ १/३ अंश) में रहेगा जो चन्द्र का उच्च स्थान (३३ अंश) राशि अनुसार है। इसी प्रकार मेष संक्रान्ति वाला अमान्त मास को चैत्र कहते हैं। मेष १० अंश पर सूर्य उच्च का होता है, अतः अमावास्या के ३ दिन बाद प्रायः उच्च का ही रहेगा। यहां उच्च का अर्थ है अच्छा फल देने वाला, कक्षा का उच्च स्थान नहीं है। कुछ लोगों ने लिखा है कि अन्य तिथि का क्षय हो सकता है, इस तिथि का नहीं। किसी भी तिथि का क्षय हो सकता है। यदि कोई तिथि २४ घण्टा (६० दण्ड) से कम अवधि की है तो संसार के किसी न किसी भाग में उसका क्षय अवश्य होगा, जहां इस तिथि में कोई सूर्योदय

अर्थव्यवस्था का संतुलन से रामराज्य की सनातन अवधारणा स्वामी करपात्री जी महाराज

    भोग वादी संस्कृति यूरोपियन मॉडल और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्र कापाठ हमारे विश्वविद्यालयों की सिलेबस में डालकर बच्चों की मस्तिष्क को विकृत करके परिणाम पर सर पीटते हैं और जीडीपी बढ़ोतरी में सुख और आनंद की अवधारणा तलाशते हैं  #रामराज्य_में_आर्थिक_संतुलन:- #करपात्रीजी_महाराज:- पूंजीवादी देशों में आर्थिक असंतुलन को सन्तुलित करने का प्रयास नहीं किया गया। फलत: उसकी सारी अच्छाईयां बुराईयों में परिणत हो गईं।किन्तु रामराज्य में आर्थिक संतुलन स्थापित करने हेतु धर्म और राज्यशक्ति द्वारा प्रयास किया जाता है। जहां धर्म और राज्यशक्ति दोनों कि अवहेलना होती है उसे हम अराजकतंत्र कहते हैं। सर्वप्रथम हम देखते हैं कि किस प्रकार धर्म के आधार पर आर्थिक संतुलन स्थापित किया जाता है। भोग के साथ दान परोपकार अतिथी सत्कार यज्ञादि के द्वारा धार्मिकता तथा सन्तुलन दोनों का विकास होता है। सम्पूर्ण प्रकृति को ईश्वरमय समझकर तथा सम्पूर्ण जीवमात्र को ईश्वर अंश समझकर उससे बचे हुएे अंश का हर्ष से स्वीकार करना ही रामराज्य कि अर्थनीति का मूलमन्त्र है। "ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत" ( ईशो

विदेशी पेड़ों से भारत की बर्बादी का सडयंत्र

इस देश का नाम आर्यावर्त और इस दीप को जंबूद्वीप करते हैं क्योंकि यहां प्रचुर मात्रा में भरपूर जामुन के फलदार वृक्ष होते थे जिसे #World_bank ने भारत की स्वदेशी पेडों को नष्ट करने की योजना बनाई! इसका परिणाम आज भारत डायबिटीज का कैपिटल बन गया है ? ------- मित्रो आजकल आप जब सड़कों के किनारों पर देखते हो तो आप पाओगे कि सड़कों के किनारों पर सरकार केवल विदेशी और ऐसे पेड़ रोपित करवाती है जिसको ना तो आप औषधि के रूप में प्रयोग कर सकते हैं ,ना ही वह कोई फल वाले पेड़ हैं ,ना ही उसमें कोई इमारती लकड़ी मिलती है । इनमें से अधिकतर विदेशी नस्ल के गुणरहित पेड़ हैं । सरकार द्वारा इन पेड़ों की बिजाई ही क्यों की जाती है ? सरकार का उद्देश्य क्या है इन बेकर पेड़ों के पीछे ? आज से 50 वर्ष पहले सड़कों के किनारे आपने आप उगने वाले स्वदेशी औषधीय पेड़ों जैसे नीम बरगद पीपल आदि, फलदार पेड़ों जैसे आम जामुन ,बेर आदि, इमारती लकड़ी देने वाले पेड़ जैसे टाहली , सागवान आदि की भरमार होती थी । इन स्वदेशी और गुणों से भरपूर पेड़ों से आम व्यक्ति को उपचार के लिये आयुर्वेदिक दवाइयां , खाने के लिए फल और घर के लिये लकड़ी आदि मुफ्त में प्रकृति से उप

धर्म और नैतिक नियमों को छोड़ पोर्न इंडस्ट्रीज को दुनिया में बढ़ावा

दो हजार साल पहले रोम साम्राज्य बहुत से देशों तक फैला हुआ था । आज हम जीस केलेन्डर का उपयोग करते हैं वो रोमनो की देन है । जुलाई महिने का नाम राजा जुलियस सिजर के नाम से रखा गया था और ओगस्ट महिने का नाम राजा ओगस्टस के नाम से । केलेन्डर का नाम ‘जुलियन’ था । इजराइल के यहुदियों की फरियाद पर इसा को क्रोस पर लटका दिया गया था उसका सारा दोष रोमनो के सिर पर डाला गया और फरियाद करनेवाले यहुदियों को भूला दिया गया, क्योंकि इजराईल पर रोमनो का राज था । रोम को जलाकर जब इसाइयोंने रोम पर कबजा किया तो जुलियन केलेन्डर को अपना लिया । केलेन्डर में थोडी भूल थी तो ग्रेगोरी नाम के इसाई पादरीने उसमे थोडा सुधार किया और इसाके जन्म के साथ जोड दिया तो केलेन्डर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर हो गया । आज पूरी दुनिया में ओगस्ट महिने का नाम चल रहा है तो एक विचार जरूर आएगा कि वो राजा ओगस्टस कितना प्रभावशाली रहा होगा । लेकिन ऐसा बिलकुल नही था । बेबस और हताश राजा था । अपनी ही प्रजा की जीवन शैली से नाखूश था । सतत चिंता में डूबा रहता था । एक बार उसने स्टेडियम में एक महासभा बूलाई । दुःखी होकर, क्रोध भरे स

क्या हिंदी को बचाने के लिए चीन से सबक सीखनी चाहिए?

क्या भारत के लिए आज भी यह पोस्ट प्रासंगिक है अपके विचार का इंतजार क्या चीन की तरह भारत में भी अंग्रेजी पर प्रतिबंध लगना चाहिए:अंग्रेजी शब्दों के धुआंधार प्रयोग से आक्रांत हिन्दी को बचाने के लिए हमें चीन से सबक सीखना चाहिए ? सवाल यह है कि क्यों हिंदी के अखबार या पत्र-पत्रिकाएँ जबरन अंग्रेजी के शब्द ठूंसे जा रहे हैं? क्यों हिंदी अखबार या पत्र-पत्रिकाएँ बीच-बीच में अंग्रेजी के शब्द छिड़क देते हैं ? आजादी के 73 साल बाद भी सरकार हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है ।संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की प्रथम राजभाषा है और सरकार के सभी दस्तावेज हिन्दी में तो होने ही चाहिए ।क्यों आज हिन्दी का अध्यापक भी तीन वाक्य अंग्रेजी के तीन शब्दों के बिना नहीं बोल पाता है । हिंदी अखबार या पत्र-पत्रिकाएँ बीच-बीच में अंग्रेजी के शब्दों के उदाहरण :-----** टिकट, रेल, सिग्नल, बिल, कमेटी, पेंशन, फीस, बटन, पुलिस,स्कूल, गारंटी, कंपनी, फिल्म,रिमेक, फोटो, वीडियो, लाइव स्कोर,कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ्ट, फीस, मीडिया, कानून, अदालत, मुकदमा, दफ्तर, एफआईआ

प्राकृतिक सिंदूर के पौधे से केमिकल सिंदूर का समाधान

  #सिंदूर_का_पेड़ सिंदूर का पेड़ भी होता है यह सुन आपको आश्चर्य ही होगा!! लेकिन यह सत्य है,,, हमारे पास सब कुछ प्राकृतिक था पर अधिक लाभ की लालसा ने हमे केमिकल युक्त बना दिया। हिमालयन क्षेत्र में मिलने वाला दुर्लभ #कमीला यानी सिंदूर का पौधा अब मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाने लगा है... कमीला को रोरी सिंदूरी कपीळा कमुद रैनी सेरिया आदि नामो से जाना जाता है। वहीँ संस्कृत में इसे #कम्पिल्लत और रक्तंग रेचि भी कहते हैं।.... जिसे देश-भर की सुहागिनें अपनी माँग में भरती हैं,, जो हर मंगलवार और शनिवार कलयुग के देवता राम भक्त #हनुमान को चढ़ाया जाता है।। कहा जाता है कि वन प्रवास के दौरान माँ #सीता कमीला फल के पराग को अपनी माँग में लगाती थीं।। बीस से पच्चीस फीट ऊँचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है... फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है... वैसे तो यह पौधा हिमालय बेल्ट में होता है लेकिन विशेष देख-रेख करके मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।। यह पहाड़ी क्षेत्रों में भारत के अलावा चीन, वर्मा, सिंगापुर, मलाया, लंका, अफ्रीका आदि देशो में अधिक पाया जात

कई 100 साल का जीवन जीने वाले देवराहा बाबा का चमत्कार खेचरी मुद्रा पर अधिकार

देवरहा बाबा.! भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद को एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष ने अपने नाम से ख्याति दिलाई। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। वह अपने चमत्कार से हजारों लोगों को तृप्त करते रहे। लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी अधिक जिए। बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है। कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। उनके अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत थे कि बाबा की आयु बहुत अधिक थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक बैरिस्टर के अनुसार उनका परिवार 7 पीढ़ियों से बाबा का आशीर्वाद लेता रहा था। 19 जून, 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपने प्राण त्यागने वाले बाबा के जन्म के बारे में आज तक संशय है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा रहे थे। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी, जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा का आशीर्वाद देने का ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वह धन्य हो गय

तबलीगी जमात की स्थापना का उद्देश्य

 तबलीग़ के बारे में आपको उसकी स्थापना के मूल उद्देश्य, उसका लक्ष्य और उसकी कार्यप्रणाली के विषय में कोई नहीं बताएगा। 1947 में तब्लीग़ के दो टुकड़े गए एक भारत और दूसरा पाकिस्तान बन गया।  1971 के बाद इसके तीसरे टुकड़े का नाम बंगलादेश बन गया। बंगलादेश की जमात का नाम आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए सामने आया था। पाकिस्तान में तब्लीग़ इस्लामिक शरिया को लागू करने की बात करती है और अल्पसंख्यक हिन्दू, ईसाईयों को इस्लाम कबूल करने का न्योता देती है। सच्चाई यह है कि यह धार्मिक नहीं अपितु मज़हबी आंदोलन है। इसको चलाने वाले धार्मिक गुरु नहीं अपितु मज़हबी मौलाना है। इसकी स्थापना मुसलमानों में प्रचार के लिए नहीं अपितु मुसलमानों को गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देने के लिए हुई थी। 1929 से पहले रंगीला रसूल प्रकरण में, 1939 में हैदराबाद में निज़ाम के मज़हबी अत्याचार के विरुद्ध आर्यसमाज के आंदोलन में, 1945 में सिंध की मुस्लिम लीगी सरकार का सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें समुल्लास के विरुद्ध आंदोलन में ,1947 में पाकिस्तान निर्माण में तब्लीग ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। तबलीग की स्थापना मुगल काल में मुस्लिम बने उन