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Showing posts from January, 2019
◆Members of 'British War Cabinet' Killed Gandhi◆ Nathuram Godse was just a tool, the main conspirators behind Gandhi's Assassination were members of British War Cabinet & British Intelligence. Nehru-Patel both were aware from the conspiracy but they had not tried to secure Gandhi because Gandhi wanted to reunite India-Pakistan once again. Nehru-Patel both were hungry for power as well as for PM post. Another Churchill's agent Mohammed Ali Jinnah had accepted to meet with Gandhi in Karachi. Pakistan visit for persuade Jinnah was the next target of Gandhi. Britishers & Nehru-Patel both were aware from this fact that Gandhi is a Ziddi person who can convince Jinnah 'by hook or by crook.' ◆According to Rajmohan Gandhi◆ Right from August 1947, Gandhi had wanted to visit Pakistan. On September 23, he said, "I want to go to Lahore...I want to go to Rawalpindi." He wrote about this wish to Jinnah, the Pakistan governor general who continued to be

जंबू फल से भारत वैभव की झलक एवं जलपोत निर्माण व्यवस्था

गाँव-गिराम की बसाहट देखियेगा तो पता चलेगा कि जहाँ-जहाँ पानी के सोत थे वहाँ-वहाँ निश्चित रूप से जामुन के पेड़ होते थे, बल्कि लगाए भी जाते थे। हो सकता हो कहीं-कहीं ये प्राकृतिक रूप से भी हो। .. ऐसे पानी के सोत स्थलों को हम अपनी स्थानीय बोली में 'जमुनपनिया' कहते थे/है। कल पोस्ट के माध्यम से ये पता चला कि जामुन के कितने महत्व थे/है और विशेष कर पानी के शुद्धिकरण हेतु। किन्हीं ने बताया कि आज से 25-30 साल पहले जामुन पेड़ों की जो सघनता थी वो अब दिखाई नहीं देने लगी है , जहाँ एक साथ बीस पचीस पेड़ होते थे वहाँ अब इक्का दुक्का पेड़ ही दृष्टिगोचर होते है। और इस चीज को हम भी अनुभव कर रहे हैं। प्राचीन समय में हो न हो ये भारतीय उपमहाद्वीप जामुन के पेड़ों से बहुत आच्छादित रहा होगा। पानी के शुद्धिकरण के साथ साथ जामुन के लकड़ी का व्यावसायिक रूप से भी बहुत महत्व था। और व्यवसाय का जो सबसे बड़ा चीज था वो था नौका-निर्माण मने कि शिप-बिल्डिंग। नदियों से लेकर समुद्रों में दौड़ने वाली नाव और जहाजों तक। .. जामुन की लकड़ी अन्य लकड़ी की तुलना में सड़ता गलता बहुत कम है .. शताब्दी वर्ष तक टिकता है ये। जहाजों

भारतीय शिक्षा बोर्ड के गठन के प्रस्ताव की स्वीकृति

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वैदिक शिक्षा के लिए भारत के पहले राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड (भारतीय शिक्षा बोर्ड) बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। सरकार के इस कदम से बीजेपी के उन असंतुष्ट समर्थकों की नाराजगी खत्म होने की उम्मीद है, जिनका मानना था कि, वर्तमान सरकार ने वेद शिक्षा व वेद पाठशालाओं को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया है। लंबे समय से ‘वैदिक पाठशाला’ और वैदिक शिक्षा को बढ़ावा देने की मांग की जा रही है और यह उस मांग को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत एक पूरी तरह से वित्त पोषित स्वायत्त निकाय महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान पहले से ही वेद विद्या के प्रचार के लिए काम कर रहा है। इस प्रतिष्ठान ने ही दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की अध्यक्षता में शुक्रवार को आयोजित हुई बैठक में वैदिक शिक्षा के भारतीय शिक्षा बोर्ड को सैद्धांतिक मंजूरी दी है। महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान की गवर्निंग काउंसिल को अब एक सप्ताह में बोर्ड के उपनियमों के साथ आने का आदेश दिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्

क्या आप जानते हैं ईसाई काल गणना के इतिहास में 15 अक्टूबर 1482 से पहले का दिनांक 14 अक्टूबर नहीं 5ऑक्टोबर था

Christmas versus मकर  संक्रांति उपर्युक्त दोनों पर्वों में एक साम्य है कि जब वे प्रवर्तित हुए तब सूर्य का दक्षिणायनान्त हुआ था। अनेक प्रकार के वर्ष होते हैं। दक्षिणायनान्त पर्व ऋतुवर्ष अथवा सांपातिक वर्ष का घटक है किन्तु उक्त दोनों पर्व ऋतुवर्ष के घटक नहीं हैं प्रत्युत किसी अन्य वर्ष के सन्दर्भ में ऋतुवर्ष की स्मृति हैं। Christmas के दिन Christ का जन्म हुआ था अथवा नहीं यह पृथक् विषय है और इस पोस्ट का कथ्य नहीं है। दकषिणायनान्त के साथ ही ऋतुवर्ष के सहस्य नामक दशम मास का अन्त होता है जिसके पश्चात् उत्तरी गोलार्द्ध में दिनमान में वृद्धि होने लगती है। ऋतुवर्ष के मासों के नाम हैं – मधु माधव शुक्र शुचि नभस् नभस्य इष ऊर्ज सहस् सहस्य तपस् व तपस्य। इनकी तुलना क्रमश: मार्च एप्रिल मे ज्यून जुलाइ ऑगस्ट सेप्टेम्बर ऑक्टोबर नोवेम्बर डिसेम्बर जेन्युअरि व फेब्रुअरि से की जा सकती है। पृथ्वी की अक्षीय नति (लगभग २२°·५) के कारण भूमध्य रेखा (०° अक्षांश) पर मध्याह्न सूर्य की स्थिति प्रतिदिन लम्बवत् नहीं होती प्रत्युत २२°·५ उत्तर अक्षांश (उत्तरायणान्त रेखा) से २२°·५ दक्षिण अक्षांश (दक्षिणाय
स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण मिशन, दयानन्द सरस्वती और आर्यसमाज, गुरु गोलवरकर और आरएसएस,डबल श्री और आर्ट ऑफ लिविंग, ब्रह्मकुमारी, गायत्री परिवार, इस्कॉन और आजकल के अग्निवीर जैसे अनेक संगठन हुए और आज भी हैं जो शास्त्र को पूर्णतः नही मानते और उसमे मनमाना बदलाव करते है जबकि सनातन का मतलब ही है जो समय के साथ न बदले और यदि बदल गया तो वो सनातन ही कैसा? पर ये लोग है जो सदैव मनमाना परिवर्तन के पक्षधर रहे हैं, इनमें से सबमे एक कॉमन बात रही है कि ये सब वर्णव्यवस्था को समाप्त करने में पूरी ताकत लगा दिए जिसके कारण इस देश मे धर्म का पतन हो गया। मित्रों सनातन धर्म मे मानव समाज की जो व्यावहारिक व्यवस्था है रही जिसके कारण भारत सदैव धन, बल, ज्ञान से सम्पन्न रहा उसका एकमात्र कारण है कि वर्णधारित कर्म सिंद्धान्त जिसके ऊपर भारत की सम्पूर्ण अर्थशास्त्र, शिक्षा व्यवस्था, रक्षा व्यवस्था, कृषि, गौरक्षा वाणिज्य इत्यादि सब कुछ टिका हुआ था। पर अंग्रेजो ने जब समझ लिया कि लगातार 800 वर्षों तक भारत से लड़ने के बाद भी मुसलमान, भारत को इस्लामिक राष्ट्र नही बना सके तो उन्होंने इसबात पंर शोध करना शुरू किया कि आखि

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया वह चमत्कारिक निर्णय जो पूरे विश्व में हलचल मचा गई

NETAJI 'S FORMULA - DETERMINATION NOT TO BORROW LOANS AS IT MAY DESTROY THE ECONOMIC FUTURE OF THE COUNTRY जो देश अपनी मुद्रा का मूल्य, क्रय-शक्ति (विनिमय- माध्यम) को अपने श्रम संसाधन की उत्पादन क्षमता के आधार पर बनाए रखता है । वही स्वतंत्र देश कहलाया है अर्थात अपनी मुद्रा स्वयं नियंत्रित करना है । इस पर यह कहावत बिलकुल ठीक बैठती है । जिसका सिक्का वही राजा ।जब तक मुद्रा की क्रय-शक्ति (परचेजिंग पावर) ठीक रहती है । तब तक सब ठीक है कहीं कुछ गड़बड़ नहीं होता बस क्रय- शक्ति की मात्रा में कमी हो सकती है । लेकिन अत्यधिक मात्रा की कमी होना ठीक नहीं है । अगर ऐसा होता है तो वहां ज्ञान की कमी और संसाधन, श्रम, वस्तुएं नष्ट होने लगती हैं यानि अच्छाई से बुराई की और बढ़ना ही ज्ञान का घटना है । यह एक वाइरस की तरह फैलता है । यही सृजन - संघार है । इसका मात्र एक इलाज है वाइरस से परहेज करना और ज्ञान की मात्रा में बृद्धि करना ।     स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदेशों को हृदय में संजोये रखे और उसका पालन करे।     भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अ

क्या आपको पता है की नासा प्रमुख रोबर्ट लाइटफुट जूनियर खुद संस्कृति बोलने की प्रैक्टिस करते है, और वो संस्कृत भाषा को सीख रहे है

क्या आपको पता है की नासा  प्रमुख रोबर्ट लाइटफुट जूनियर खुद संस्कृति बोलने की प्रैक्टिस करते है, और वो संस्कृत भाषा को सीख रहे है, उन्होंने संस्कृत पर कहा था की ये दुनिया की सबसे स्पष्ट भाषा है, और मुझे समझ में नहीं आता की भारतीयों ने इसके महत्त्व को क्यों नहीं समझा और इसे छोड़ दिया आपको बता दें की पहले भारतवर्ष में संस्कृत ही बोली जाती थी पर आज बहुत ही कम लोग संस्कृत बोल पाते है, संस्कृत बोलने वालो की संख्या भारत में मात्र कुछ हज़ार में है, आज हम आपको संस्कृत के बारे में कुछ जानकारियां दे रहे है जिस से आपको गर्व होगा 1. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है। 2. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है। 3. अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी। 4. NASA के मुताबिक, संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। 5. संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है। वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है। 6. संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत खजाना है।  जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्

तीन तलाक की बहस आज से 80 वर्ष पूर्व

अगर आप यह समझते हैं कि हमारे देश में 'तलाक' पर बहस पहली बार हो रही है तो आप गलत हैं। हमारे देश में यह बहस तब से हो रही है जब सोशल मीडिया पर सक्रिय 95% लोग इस भूमि पर अवतरित भी नहीं हुए थे। आजकी और तब की बहस में अंतर केवल इतना है कि तब यह बहस 'संसद' में न होकर  केन्द्रीय असेंबली में हुई थी।              जी हाँ ! आज से 80 वर्ष पहले सन् 1939 में तत्कालीन केन्द्रीय असेम्बली में डॉ.देशमुख के 'हिन्दू स्त्री तलाक बिल' पर यह बहस हुई थी। जिसमें अ०भा०वर्णाश्रम स्वराज्य संघ के प्रधान सेठ बैजनाथ जी बाजोरिया ने बिल के विरोध में चार सौ से अधिक प्रार्थना पत्रों का बंडल प्रस्तुत कर अपने तर्कों को सही प्रमाणित करने का प्रयास किया था।           मैं यह सब इसलिए कह रहा हूँ इस बहस में भाग लेते हुए मुसलमान  सदस्यों ने हुए तब कहा था कि हम "कुरान की किसी भी आज्ञा का अंश मात्र में भी विरोध नहीं होने देने देंगे। हिन्दू चाहें तो अपने शास्त्रों में परिवर्तन कर सकते है।"           दूसरी बात यह भी कि उस समय भी हमारा तत्कालीन 'भेलसा ' एक जागृत क्षेत्र था। उन दिनों पं

कादर खान की चाल

कादरखान की चाल . कादरखान मुंबई के हिरे के कारिगरों के बीच बहुत पोप्युलर थे । कम से कम एक दिन में कोइ ना कोइ कारीगर उसका नाम लेता ही था । कारण था कादरखान की टेढीं चालें । तेढी चाल चलके सामनेवालों को महात करते थे, परेशान करते थे । . हिरे में भी कभी टेढी चाल चलनी पडती है । पोलिशिंग के दरम्यान कोइ गांठ ( डुसु ) आ जाती है या हिरेके मूल गठन में ही मूल गठन के अलग अलह ढांचे का मिश्रण (आंतरी का जाल) आ जाता है । ऐसे हिरों के काटने की कोई फिक्स दिशा नही मिलती चाहे ३६० अंश की सभी दिशा में कोशीश करके देख लो और पूरे दिन लगे रहो । हिरा घीसने का नाम ही नही लेता । थक हार कर ऐसे अधुरे हिरे कारिगर मेनेजर को वापस देने जाता है तो मेनेजर और अन्य अनुभवि कारीगर कादरखान की चाल चलने के लिए कहते हैं । कादरखान की चाल से हिरा घीसने लगता है । वो चाल कैसे थी वो तो कारिगर जाने । . कादरखान नही रहे लेकिन उनकी चाल उनके पहले भी थी और उनके बाद भी चलती रहेगी । हर फिल्म, टीवी सिरियल और समाज में कादरखान की चालें चलती रहती है । राजनीतिने तो हद कर दी है । कादरखान की चाल ही महत्व की बाबत हो गयी है । सरकार अपने स्वार्थ