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Showing posts from August, 2020

क्या सरकार को कंपनी या कंपनी को सरकार रेगुलेट करती हैं क्योंकि खाने में ज़हर और मांस परोशने का धंधा सभी सरकारों ने यथावत चल रहा है पर सरकार के प्रतिनिधि यह सब जानते हुए भी मौन धारण किए है

  सरकार में बैठे लोगों का चेहरा बदलता है पर सरकार की कार्यप्रणाली जस की तस चलती रहती है सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन कार्य सब वही चल रहे हैं जो पिछले 70 साल से चला आ रहा है हम ठप्पा लगाकर संतुष्ट हो जाते हैं एक समय था जब fdi  के नाम पर संसद रोकी गई थी पर आज एक  रहस्यमई में खामोशी छाई हुई है कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं क्योंकि वह सारे लोग जो इस fdi विरोध करने वाले थे वह सभी  इसी स्वदेशी झंडे के तले विरोध कर रहे थे आज वही लोग अब आज fdi का झंडाबरदार बने हुए है और लीपा पोती करते हुए अपनी जिम्मेदारियों का इति श्री कर रहे हैं  यह दर्द किससे कहूं जब बहुत छोटा सा था तो इसी स्वदेशी मंच की कक्षा से पढ़ कर सब स्वदेशी विदेशी का परिज्ञान मुझे हुआ पर आज जब उस पर कार्य करने का समय आया तब सब जगह सन्नाटा छा गया यह दर्द भी किसी से कह नहीं सकता अब मुझे ऐसा होने लगा है यह सब परिणाम है हमें इसका कारण और निवारण  तलाशना ही पड़ेगा बर्बादी का यह तांडव इस राष्ट्र को बर्बाद कर देगा  गीता के उस बचन को धारण करके कर्मपथ पर अपनी पुरुषार्थ को जगाएं क्योंकि दो पक्षों हैं धर्म और अधर्म यदि आपका अपना सगा भाई और गुर

सरकार मीडिया इतना समझा रहे हैं पर इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता भारत से सीखना चाहिए

         अमेरिका ब्रिटेन सहित सभी देशों के लोग भी कितने वेबकूफ है बैकसीन लगवाने को राजी ही नहीं है इन्हें बिल्कुल भी भरोसा नहीं है who ओर बिल गेट्स पर अपनी जान को खतरा बता रहे हैं ये मुर्ख इन अमेरिकीयों को ओर ब्रिटेनियों को भारतीयों से सीखना चाहिए।कि जब who ओर बिल गेट्स जैसे महान लोग टीकाकरण की बात कर रहे हो ओर सभी को लगवाना अनिवार्य कर रहे हो तो चुपचाप मोती के कहने पर लगवा लेना चाहिए अगर हर महीने बैकसीन लगवाने को बोले तो चुपचाप लगवा लेनी चाहिए आखिर कैरोना महामाई जो आई हूई है दुनिया में उससे बचना भी तो है सभी को।इतने अक्लमंद भारतीय लोगों से कुछ अक्ल लेनी चाहिए इन अमेरिका और ब्रिटेन वालों को।।।। https://youtu.be/zgjmcBkR41w यदि वैक्सीन नहीं लगवाना है तो चिप लगवायें

कोटिल्य के10 सूत्र में राज्य के सुख समृद्धि का मूल मंत्र

     वामपंथी खुद को atheist कहते है। और धर्म को अफीम कहते हैं । बुद्धिस्म् जैनिज़्म लोकायत आदि नास्तिक कहलाते हैं लेकिन ये सम्प्रदाय या धर्म के अंतर्गत आते हैं । तो प्रश्न ये है कि जो मर्क्सिसम और पश्चिम का Atheism है क्या हिन्दू धर्म का और उसके बौद्ध जैन लोकायत आदि धर्म दर्शनों की नास्तिकता एक ही वस्तु है ? एक ही चीज है ? या अनुवादों की समस्या है ? कौटल्य ने मात्र 10 सूत्रों में सुखी राज्य के मूलमंत्र को वर्णित किया है। लोग कहते आये है कि भारत धर्म प्रधान देश था- उसका अर्थ इतिहासकारों समाजशास्त्रियों और धार्मिक गरुओ ने पूजा पाठ और आत्म साक्षात्कार तक सीमित कर दिया। जबकि धर्म का अर्थ था कर्तव्य - एकाउंटेबिलिटी जिसकी  डिमांड सदैव किसी विभीषिका के समय होती है। स्वतंत्र भारत अधिकार प्रधान व्यवस्था को अपनाने को क्यो बाध्य हुवा ये भी विश्लेषण की विषय वस्तु है। दूसरी बात कौटल्य सदैव राज्य को और उसके समस्त नागरिकों के सुख वैभव और कर्तव्य की बात करते हैं। व्यक्तिगत सुख उसी सामूहिक सुख का एक अंग मात्र था। तीसरी बात निम्नलिखित मंत्र यद्यपि समस्त नागरिक समुदाय के लिए है, लेकिन राजा और राज्य कर्मचा

यूरोपियन इसाई इतिहासकार लेखको का एक प्रायोजित लेखन

        यूरोपीय ईसाई इतिहास लेखकों का समस्त लेखन सप्रयोजन है। महमूद गजनवी ने कभी भी सोमनाथ मंदिर पर कोई आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की थी।ये गप्पें और झूठ 20 वीं शताब्दी के आरंभ के आसपास सप्रयोजन रची गई। महमूद की ऐसी कोई हैसियत थी ही नहीं। गजनी वाले महमूद के कथित इतिहास का एकमात्र आधार उस पर लिखने वाले लोग अलबरूनी की पुस्तक ‘अल हिंद’ को बताते हैं। ‘अल हिंद’ पुस्तक का एडवर्ड सचाऊ ने अपनी एक लंबी भूमिका के साथ अनुवाद प्रस्तुत किया है। अबू अल रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल बरूनी की पुस्तक का नाम है ‘अल हिंद’। इस पुस्तक का उपशीर्षक है- ‘हिन्दुओं के ज्ञान और विज्ञान का उनके शास्त्रों के आधार पर विवरण’। बरूनी ने लिखा है कि उनके उस्ताद ने उनसे हिन्दू धर्म के ज्ञान और विज्ञान के विषय में तथ्यपूर्ण विवरण लिखने कहा था, तदनुसार मैंने यह पुस्तक लिखी है। पुस्तक में कहीं भी गजनी का कोई जिक्र नहीं है, ना ही बिरूनी के अपने इलाके पारसीक जनपद का और ना ही पूरी पुस्तक में कहीं भी गजनी के महमूद का कोई भी उल्लेख है। जब महमूद का ही होई उल्लेख नहीं है तो उसके सैन्य अभियान का उल्लेख होने का सवाल ही नहीं पैदा होता ह

इतिहासकारों को भी जाने जिन्हें मूल इतिहास लेखक की मान्यता इस आधुनिक शिक्षा में मिली हुई है

जिन्हें मूल इतिहास लेखक मान लिया गया है, उनके बारे में कुछ तो जाने 3 अलेक्जेंडर डाऊ - अलेक्जेंडर डाऊ स्काटिश मूल के थे। उनका जन्म 1736 ईस्वी में स्काटलैंड के पर्थशायर में हुआ। उनके पिता एक चुंगी नाके में चौकीदारी का काम करते थे। उन्होंने चर्च में थोड़ी शिक्षा प्राप्त करने के बाद नाविक का काम शुरू किया और बाद में 24 वर्ष की उम्र में सिपाही की नौकरी करने ईस्ट इंडिया कंपनी में भर्ती हुये तथा कोलकाता आकर अंग्रेजों की कोठी पर पहरा देने लगे। उन्होंने क्लाइव और वाटसन के साथ कंपनी की सेवा की और क्रमशः तरक्की पाते गये और कप्तान बना दिये गये। यहाँ रहते हुये उन्हांेने फारसी सीखी और मुस्लिम लेखकों की लिखी किताबों के आधार पर हिन्दोस्तान की कहानी लिखी। इस पुस्तक के द्वारा इन्होंने भारतीय राज्य को निरंकुश और गैर जिम्मेदार राजाओं तथा नवाबों द्वारा संचालित बताया और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत के लोगों के हित में इन राजाओं और नवाबों को हटा कर अपने लोगों को शासन में बैठाना आवश्यक बताया। कंपनी के लिये काम करते हुये बिहार के भागलपुर में 1779 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई। उसने कुछ नाटक और कहानियां भी लिखी।

आधुनिक शिक्षा की जाल में उलझ कर विवाह संस्कार और संस्कृति का सत्यानाश

    आज पूरे देश में सुशांत सिंह राजपूत के  हत्या या आत्महत्या पे मीडिया में बवाल मचा हुआ है  इसका कारण क्या है...... दूसरी तरफ इन्हीं तथाकथित फिल्मी हीरो के माध्यम से एक नया कल्चर लिव इन रिलेशनशिप हमारे समाज में डाला जा रहा है जिसमें हमारे पढ़े-लिखे नौजवान इसमें फंस कर अपनी जिंदगी तबाह कर रहे हैं धर्म अर्थ काम मोक्ष की चतुर पुरुषार्थ की अवधारणा पर आधारित  हमारी सनातन संस्कृति में विवाह को भी एक संस्कार का दर्जा दिया गया है हर जीवो का एक प्राकृतिक जीवन कॉल होता है उस काल में उसे अपनी पीढ़ी के आगे चक्र चलता रहे जिससे अपनी संतानोत्पत्ति करना एक जीवन का महत्वपूर्ण आयाम होता है   पर प्रकृति के इस चक्र को इस आधुनिक शिक्षा मे तहस-नहस कर दियाहै  पिछले 20-25 सालों में देर से विवाह करने/होने का कु-चलन बढ़ा है। इससे समाज छिन्न होकर विकृत रूप में विवाहेत्तर संबंध और live-in के रूप में सामने आ रहा है। जैसे कोरोना पहले विदेश में आया, फिर भारत के बड़े शहरों में, फिर छोटे शहर होते हुए गांव गांव तक पहुँच गया है, वैसे ही 'late marriage' और 'live-in' का चलन और इसका दुष्परिणाम गांव गांव

विश्व के सात अजूबे सनातन संस्कृति को नष्ट करने का एक सडयंत्र

मैं एक बार फिर कहता हूँ कि सात आश्चर्यों की लिस्ट सनातन को नीचा दिखाने की एक साजिश के अलावा और कुछ नहीं है यह मंदिर विश्व आश्चर्य नहीं है क्योंकि हम अपनी संस्कृति के कमजोर प्रचारक हैं। हम कभी भी अपने मंदिरों की यात्रा नहीं करते और ना ही मंदिरो के लिए कोई उत्सुकता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारे मंदिर अजूबों की लिस्ट में शामिल हों, तो विदेशियों से आशा ना रखकर सबसे पहले हमें अपने मंदिरों का भ्रमण और सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार करना पड़ेगा । 🙏 जय श्री राम Anand Shukla/Pradeep Jha किसी सज्जन को इस मंदिर के लोकेशन के बारे में जानकारी हो तो बताने की कृपा करें