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Showing posts from February, 2019
  भारत की राजनीति के एक प्रमुख रहस्य की कुंजी इस बात को समझने में है कि पंडित चंद्रशेखर आजाद के बलिदान के कई वर्षों बाद भी, स्वतंत्रता के बाद भी अल्फ्रेड पार्क 'अल्फ्रेड पार्क' ही रहता है। इस रहस्य की एक और कुंजी यह कि जिस 'क्विक सिल्वर' बलराज (यह दोनों पं आजाद के ही उपनाम हैं) ने भगत सिंह जैसे महान क्रातिकारियों को ट्रेनिंग  दी ! भगत सिंह उन्हें अपना गुरु मानते थे ! भगत की चर्चा होती है उनके राजनैतिक चिंतन की चर्चा होती है। उन्हें कम्युनिस्ट और नास्तिक प्रमाणित करने की होड़ लग जाती है परन्तु आजाद की कहीं एकेडमी में  या विश्वविद्यालयों में चर्चा नहीं। तो अब या तो तुम ट्रैंड सेटर नकलची लोग बेवकूफ हो या भगत और राजगुरू जैसी महान आत्माएं बेवकूफ थीं जो उन्हें अपना लीडर और गुरू मानते थे। रहस्यमय रहस्यों की एक कुंजी यह भी कि आजाद जैसे क्रांतिकारी को गिड़गिड़ाना पड़ता है। आजाद ने पंडित नेहरू के घर “आनन्दभवन” इलाहबाद में जाकर उनसे प्रार्थना की कि वो गांधी जी को लार्ड इरविन से कहकर इन तीनो की फांसी की सजा माफ़ करवा दे !! पर नेहरू ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया !! आज़ाद के
न्यूयॉर्क मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक न्यू यॉर्क में दुनिया का पहला 'हस्तमैथुन बूथ' खोला गया है। कंपनी ने इसकी डिजाइन मेल सेक्स टॉय की शक्ल में तैयार की है। इस बूथ को खोलने के पीछे तर्क दिया गया है कि दिन में पुरुषों को तनावमुक्त होने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है। इस हस्तमैथुन बूथ का नाम 'गाईफाई बूथ' है। यहां एक कुर्सी और एक लैपटॉप हैं। लैपटॉप पर लोग इस निजी पल में कुछ देख भी सकते हैं। पहला बूथ मैनहटन में खुला है। हालांकि यह अपने आप में वैध नहीं है। इस तरह के बूथ से अमेरिका में सार्वजनिक शिष्टता का उल्लंघन होता है। इसे खोलने के पीछे का दिमाग 'हॉट ऑक्टपस' के फाउंडर ऐडम लेवी का है। उन्होंने द मिरर से कहा, 'इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि 9 से शाम पांच बजे तक की जॉब तनावपूर्ण होती है। यह दिमाग और देह दोनों के लिए तनावपूर्ण है। इस स्थिति को खासकर कभी न थमने वाली सिटी मैनहटन में लोग महसूस भी करते हैं।' ऐडम लेवी ने कहा, 'हम सभी एक नया समाधान की तरफ देख रहे हैं। हम हर दिन के जीवन को संतुलित करना चाहते हैं। हमें ऐसा लगेगा कि गाईफाई बूथ में हमने कुछ अलग और नया क

मैट्रिक पास धूर्त ईसाई मैक्स मूलर कैसे बन गया MA Dr

400 वर्ष पूर्व जब ईस्ट इंडिया कंपनी के तथाकथित व्यापारी भारत आये तो वे भारत से सूती वस्त्र, छींटज़ के कपड़े, सिल्क के कपड़े आयातित करके ब्रिटेन के रईसों और आम नागरिकों को बेंचकर भारी मुनाफा कमाना शुरू किया। ये वस्त्र इस कदर लोकप्रिय हुवे कि 1680 आते आते ब्रिटेन की एक मात्र वस्त्र निर्माण - ऊन के वस्त्र बनाने वाले उद्योग को भारी धक्का लगा और उस देश में रोजगार का संकट उतपन्न हो गया। इस कारण ब्रिटेन में लोगो ने भारत से आयातित वस्त्रों का भारी विरोध किया और उनकी फैक्टरियों में आग लगा दी। अंततः 1700 और 1720 में ब्रिटेन की संसद ने कैलिको एक्ट -1 और 2 नामक कानून बनाकर ब्रिटेन के लोगो को भारत से आयातित वस्त्रों को पहनना गैर कानूनी बना दिया। 1757 में यूरोपीय ईसाईयों ने बंगाल में सत्ता अपने हाँथ में लिया, तो उन्होंने मात्र जमीं पर टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी ली, शासन व्यवस्था की नहीं। क्योंकि शासन में व्यवस्था बनाने में एक्सपेंडिचर भी आता है, और वे भूखे नँगे लुटेरे यहाँ खर्चने नही, लूटने आये थे। इसलिए टैक्स वसूलने के साथ साथ हर ब्रिटिश सर्वेन्ट व्यापार भी करता था, जिसको उन्होंने #प्राइवेट_बिज़न

भोजराज की भोजशाला यहाँ पर कभी माँ सरस्वती यानी वाग्देवी का मंदिर था

भोजशाला मूल रूप से एक मा सरस्वती मंदिर के तौर पर स्थापित था, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना तो यह क्षेत्र उसके साम्राज्य में मिल गया। उसने इस मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। भोजशाला मस्जिद में संस्कृत में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं जो इसके इसके मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। हाल ही में 15 फरवरी 2013 को यहां आंदोलन हुआ है। इसमें 97 लोग पुलिस की लाठीचार्ज से घायल है। मां वाग्देफवी की प्रतिमा भारत लाने के लिए लंदन की कोर्ट में सुब्रमण्य म स्वाामी ने एक याचिका दायर की है। ऐतिहासिक भोजशाला में प्रतिवर्ष बासंती वातावरण में बसंत पंचमी पर सरस्वती के आराधकों का मेला लगता है। दरअसल यह ऐसा स्थान है, जहाँ माँ सरस्वती की विशेष रूप से इस दिन पूजा-अर्चना होती है। यहाँ यज्ञ वेदी में आहुति और अन्य अनुष्ठान इस स्थल के पुराने समय के वैभव का स्मरण कराते हैं। साथ ही इतिहास भी जीवंत हो उठता है। परमार काल का वास्तु शिल्प का यह अनुपम प्रतीक है। ग्रंथों के अनुसार राजा भोज माँ सरस्वती के उपासक थे। उनके काल में सरस्वती की आराधना का विशेष महत्व था। ऐसा कहा जाता

ज्ञान की देवी माँ शारदा सर्वज्ञ पीठ की गुलाम कश्मीर में आज की स्थिति

माँ सरस्वती का निवास: शारदा देश कश्मीर और ‘सर्वज्ञ पीठ’ की धरोहर कश्मीर में जिस मंदिर के द्वार कभी आदि शंकर के लिए खुले थे आज उसके भग्नावशेष ही बचे हैं। हम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी और नवरात्र में माँ सरस्वती की वंदना शंकराचार्य द्वारा रची गई स्तुति से करते हैं लेकिन उस सर्वज्ञ पीठ को भूल गए हैं जिसपर कभी आदि शंकर विराजे थे। देश की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित करने तथा आचार्य गौड़पाद में महाविष्णु के दर्शन करने के पश्चात आदि शंकर को माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई थी। विद्यारण्य कृत ‘शंकर दिग्विजय’ ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि विश्व में जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप में भारत और भारत में काश्मीर सबसे प्रसिद्ध स्थान है जहाँ शारदा देवी का वास है। उस क्षेत्र में माँ शारदा को समर्पित एक मंदिर है जिसके चार द्वार हैं। मंदिर के भीतर ‘सर्वज्ञ पीठ’ है। उस पीठ पर वही आसीन हो सकता है जो ‘सर्वज्ञ’ अर्थात सबसे बड़ा ज्ञानी हो। उस समय माँ शारदा के उस मंदिर के चार द्वार थे जो चारों दिशाओं में खुलते थे। पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा से