कर्मयोग और पुनर्जन्म एक विवेचन!!!!! पुनर्जन्म की यह धारणा है कि व्यक्ति मृत्यु के पश्चात पुनः जन्म लेता है, हम ये कहें कि कर्म आदि के अनुसार कोई मनुष्य मरने के बाद कहीं अन्यत्र जन्म लेता है, पाश्चात्य मत में सामान्यतः पुनर्जन्म स्वीकृत नहीं है, क्योंकि वहाँ ईश्वरेच्छा और यदृच्छा को ही सब कुछ मानते हैं। कहा जाता है कि यदि व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है तो उसे अपने पहले जन्म की याद क्यों नहीं होती? सनातन संस्कृति का यह मानना है कि अज्ञान से आवृत्त होने के कारण आत्मा अपना वर्तमान देखती है, और भविष्य बनाने का प्रयत्न करती है, पर भूत को एकदम भूल जाती है, यदि अज्ञान का नाश हो जायें तो पूर्वजन्म का ज्ञान असंभव नहीं है। हमारी पौराणिक कथाओं में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं, और योगशास्त्र में पूर्वजन्म का ज्ञान प्राप्त करने के उपाय वर्णित हैं, आत्मा के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है, अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती, तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण