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Showing posts from March, 2021

कर्मयोग और पुनर्जन्म का तात्विक विवेचन

  कर्मयोग और पुनर्जन्म एक विवेचन!!!!! पुनर्जन्म की यह धारणा है कि व्यक्ति मृत्यु के पश्चात पुनः जन्म लेता है, हम ये कहें कि कर्म आदि के अनुसार कोई मनुष्य मरने के बाद कहीं अन्यत्र जन्म लेता है, पाश्चात्य मत में सामान्यतः पुनर्जन्म स्वीकृत नहीं है, क्योंकि वहाँ ईश्वरेच्छा और यदृच्छा को ही सब कुछ मानते हैं। कहा जाता है कि यदि व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है तो उसे अपने पहले जन्म की याद क्यों नहीं होती? सनातन संस्कृति का यह मानना है कि अज्ञान से आवृत्त होने के कारण आत्मा अपना वर्तमान देखती है, और भविष्य बनाने का प्रयत्न करती है, पर भूत को एकदम भूल जाती है, यदि अज्ञान का नाश हो जायें तो पूर्वजन्म का ज्ञान असंभव नहीं है। हमारी पौराणिक कथाओं में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं, और योगशास्त्र में पूर्वजन्म का ज्ञान प्राप्त करने के उपाय वर्णित हैं, आत्मा के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है, अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती, तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित

गृहस्थाश्रम नीलकण्ठ शंकर बनाने की हैसियत रखता है उसे तथाकथित संन्यास के लिए त्यागना मूर्खता ही नहीं पाप है

तड़पताता संन्यास बनाम खपता गृहस्थ आजकल गुरुओं के विषय में मेरे मन में ज़रा अलग सा खयाल आने लगा है...... कभी किसी गुरु को संन्यास के लिए किसी को प्रेरित नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना उस व्यक्ति के साथ तथा उसके मातापिता के साथ ज्यादती करना है।संन्यास क्रिया नहीं है बल्कि विवेकोचित त्याग का परिणाम है। सच्चा संन्यास घर में ही जन्मता है।घर में ही पलता है।जो घर छोड़ता है वह भी एक नया घर ( तथाकथित आश्रम)बनाता है। उसे नये घर का मोह हो जाता है साथ ही अपने बूढ़े मातापिता को असहाय छोड़ने का पाप भी लगता है। आजकल तो ट्रेण्ड चल पड़ा है कि गुरु कुछ आकर्षक मुद्दे लेकर समाज में जाते हैं और फिर पब्लिसिटी कमाने की भूख बढ़ती ही जाती है उनकी..........एक विवेकी आदमी क्या गृहस्थी नहीं हो सकता? या क्या एक घर में रहने वाला आदमी विवेकी नहीं हो सकता है?? किसी को आकर्षित / मोहित करने की चाह रखने वाला स्वयं ही उससे मोहित हो जाता है और आकर्षित हो जाता है।किसी से मोहित होना या मोहित करना दोनों अविवेक है , अज्ञान है और अज्ञानियों की दुर्गति तय है वह चाहे गुरु हो या शिष्य...... अपने को पुजवाने की चाह भयं

प्रदक्षिणा (परिक्रमा) भी ध्यान साधना का अंग और इस का वैज्ञानिक प्रभाव

   वर्तुलाकार घूमने से, पुनरावृत्ति से आवेश उत्पन्न होता है । केन्द्र स्थिर हो आवेशित हो तो परिधि घूमती है (सीलिंग फैन)। परिधि स्थिर हो आवेशित हो तो केन्द्र घूमता है (टेबिल फैन)। लोह चुंबक से बचपन में बहुत खेले ।विद्युत के लिए कुचालक माने जाने वाले प्लास्टिक में भी चुंबक पैदा करने का करिश्मा बचपन में ही सीख गये ।बच्चे अभी खेलते हैं ।कंघे से बिना तेल बाले बालों में फिराकर चुंबक पैदा कर कागज के टुकड़ों को खिचते हुए देखा। प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के पीछे कुर्सी पर सूती तौलिया मार मार कर करंट पैदा करने और लोगों को झटके देने वाले खेल भी खेले। नीम की पत्तियों सहित टहनी को हाथों के बीच हल्के से घुमा घुमाकर मंत्रोच्चार करके लोगों को झाड़ा देते गुनिया ओझा भी देखे।तथा उक्त क्रिया से लोगों को लाभान्वित होते हुए भी देखा। धार्मिक मामलों में नर्तकों को वर्तुलाकार घूमते हुए भी देखा।  सूफी साधना में तो चक्र नृत्य मुख्य माना ही जाता है । परंपराओं में भी बहुत रहस्य छुपे हैं । परिक्रमा का विज्ञान ------------------------ वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार हम जानते हैं कि वर्तुलाकार घूमते ऊर्जा पु

भारत के शस्त्र और शास्त्र का अद्भुत संयोग, अश्वविद्या के ग्रंथ शालिहोत्र शास्त्र का लेखन महाराजा भोज और विद्वान वररूची

  वाणी के चार प्रकार हयो भूत्वा देवानवहद् वाजी  गन्धर्वान् अर्वाऽसुरान् अश्वोमनुष्यान् Horse  को  देव हय कहते हैं.          गन्धर्व  वाजि  कहते हैं          असुर  अर्व  कहते हैं          मनुष्य  अश्व  कहते हैं । हमलोग  घोड़ा  कहते  हैं । लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा घोड़े की दुम पर जो मारा हथौड़ा बाते हैं बातों का क्या ओर नहीं छोर नहीं सिर नहीं पैर नहीं #उत्तर_प्रदेश के #बागपत जिले का एक छोटा सा गांव #सिनौली आज विश्व के सारे इतिहासकारों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है। कारण यह कि दो वर्ष पूर्व हुए उत्खनन में वहाँ भूमि से कांसे-तांबे के कीलों से बने रथ, और तलवारें आदि मिली हैं। कार्बन डेटिंग पद्धत्ति से हुई जांच उन्हें 3800 वर्ष प्राचीन बताती है। अर्थात ये चीजें 1800 ईस्वी पूर्व की बनी हुई हैं। रथ का डिजाइन बता रहा है कि उसमें घोड़े जोते जाते होंगे। उस छोटे से हिस्से में हुई खुदाई से मिली चीजें प्रमाणित कर रही हैं कि तब इस क्षेत्र में एक अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न विकसित लड़ाकू सभ्यता थी।      मजेदार बात यह है कि हमारे यहाँ इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता है कि #भारत में रथ और घोड़े बाहर

Newziland,Britain apply Sanskrit teaching for smartness

   जब हमारे श्रेष्ठ भारत का नाम कहीं बदनाम होता है।क्या बतायें जब शिक्षित वेश्यावृत्ति करता है बस ह्रदय दुखता है।क्योंकि कुछ ही दसक पहले हमारे यहां7लाख 32हजार गुरूकुल हुआ करते थे।समस्त संसार की मानव जाति हमसे ही सीखती थी कि शिक्षा क्या होती है।और अब हम अपनी मानसिकता से इतना विकृत हो चुके हैं कि क्या बतायें कुछ कहते नहीं बनता।पर इतना जरूर कहूंगा हमारे भारत की मूल गुरुकुल शिक्षा ही सभी समस्याओं  से   मुक्त करती है व मानव को महामानव बनाती थी। एक ही समाधान राष्ट्रीय स्वतंत्र गुरुकुल अभियान     विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता उत्पन्न करना तथा हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करना है. अजय कर्मयोगी: https://m.youtube.com/watch?v=JixMEQ2kehU   , https://m.youtube.com/watch?v=JseQIWhJ7xk  , https://m.youtube.com/watch?v=JixMEQ2kehU  ,  https://m.youtube.com/watch?v=IFmv2YFApQk                    प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ. तब से इस दिन को *विश्व हिन्दी

तैतिस कोटि देवताओं की शक्तियां महामृत्युंजय मंत्र में सन्निहित है

       महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 कोटि(प्रकार) देवताओं के द्योतक हैं उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 वषट्कार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है मंत्र इस प्रकार है ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ महामृत्युंजय मंत्र ( संस्कृत: महामृत्युंजय मंत्र "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र") जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है, ऋग्वेद का एक श्लोक है। यह त्रयंबक "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण (जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया)को संबोधित है। यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है। गायत्री मंत्र के साथ यह समकालीन हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है। शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है। इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है। इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं। इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है; शिव के