*श्रद्धा से श्राद्ध शब्द बना है। श्रद्धा पूर्वक किए हुए कार्य को श्राद्ध कहते हैं।* सत्कार्यों के लिए सत्पुरुषों के लिए सद्भाव के लिए अंदर की कृतज्ञता की भावना रखना ही श्रद्धा कहलाता है। *उपकारी तत्वों के प्रति आदर प्रकट करना जिन्होंने अपने को किसी प्रकार लाभ पहुंचाया है, उनके लिए कृतज्ञ होना श्रद्धालुओं का आवश्यक कर्तव्य है।* ऐसी श्रद्धा ही धर्म का मेरुदंड है इस श्रद्धा को हटा दिया जाए तो धर्म के सारी महत्ता नष्ट हो जाएगी और वह एक निः सत्व पुछ मात्र बनकर रह जाएगा। *श्रद्धा ही धर्म का एक अंग है इसलिए श्राद्ध उसका धार्मिक कृत्य है* इस प्रकार जीवन में जो भी कार्य श्रृद्धा पूर्वक किते जाते हैं।वे ही श्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं। https://ajaykarmyogi.blogspot.com/2017/11/blog-post_26.html?m=1 पर अब्राहिमिक संस्कृतियों के दरिंदे हमारे आस्था और श्रद्धा विश्वास पर अनेक घात कर रहे हैं हमें इससे अलग करने का षड्यंत्र जो पिछले हजार साल से चल रहा अपने पूर्वजों का अतुलनीय योगदान का यह एक पक्ष है हे परम आदरणीय एवं पूज्यनींय पूर्वजों हम आपको नमन करते हैं सात सौ साल के इस्लामिक हैवानिक राज और दो
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण