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Showing posts from February, 2018
ये हैं हिन्दुस्तान के 6 सबसे बड़े राज, अगर रहस्य खुला तो आप हो जाएंगे मालामाल   भारत की गिनती दुनिया के सबसे प्रचीन देशों में की जाती है। भारत यानि हिन्दुस्तान का अस्तित्व तब से है जब से दुनिया का अस्तित्व है। हिन्दुस्तान को दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता माना जाता है। इसलिए हमारे देश में ऐसे कई रहस्य छिपे हुए हैं जिन्हें आज तक कोई नहीं समझ पाया। कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हिन्दुस्तान को उसकी प्राचीन सभ्यता के लिए जाना जाता है। भले ही आज दुनिया का बाकी देश आज भारत से विकास के क्षेत्र में आगे निकल गए हों। लेकिन, कहा जाता है कि यहां हजारों साल पहले भी विमान उड़ाते थे, एटम बम से खतरनाक ब्रह्मास्त्र चलाये जाते थे।   हालांकि, इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला और इसे सिर्फ एक मान्यता माना जाता है। लेकिन, आज हम आपको अपने देश के कुछ ऐसे रहस्य बताने जा रहे हैं, जो आज तक रहस्य ही बने हुए हैं। लेकिन, जिस दिन इन रहस्यों से पर्दा उठेगा भारत की तस्वीर बदल जाएगी। तब शायद हिन्दुस्तान दुनिया के बाकी देशों से विकास और तकनीक के मामले में कहीं आगे निकल जाये। तो आइये देखते हैं वो कौन कौन
Amazing facts about Chandra Sekhar Azad in Hindi – चंद्रशेखर आजाद से जुड़े 15 ग़ज़ब रोचक तथ्य आज हम बात करेगे एक ऐसे शख़्स की जो पैदा तो चन्द्रशेखर तिवारी हुआ था लेकिन शहीद हुआ चंद्रशेखर आजाद बनकर. खुद को आजाद घोषित कर दिया था और कभी अंग्रेजो के हाथो ना मरने की कसम खाई थी.  Let’s begin… 1. 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गाँव में सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर एक बच्चा पैदा हुआ था. नाम रखा गया  चंद्रशेखर तिवारी . इनका जन्म करवाने वाली दाईं मुस्लिम थी। 2. चंद्रशेखर आजाद का बचपन भील जाति के बच्चों के साथ में कटा. यही से उसने तीर-कमान चलाना सीखा। 3. चंद्रशेखर आजाद ने मुश्किल से तीसरी क्लास पूरी की थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि आजाद ने सरकारी नौकरी भी की थी. वो तहसील में एक हेल्पर थे, फिर 3-4 महीने बाद उसने बिना इस्तीफा दिए नौकरी छोड़ दी थी। 4. चंद्रशेखर आजाद की  माँ  चाहती थी कि बेटा संस्कृत का बड़ा विद्वान बने. लेकिन मुन्ना का सपना तो देश को आजाद कराना था। माँ ने तो बाप को भी राज़ी कर लिया था कि बच्चें को पढ़ने के लिए वाराणसी के काशी विद्यापीठ में भेज दो। 5.  चंद
भारतीय गणित = अमूल्य धरोहर लेखक:- कुमार गंधर्व मिश्रा लेखक गणित के शोधार्थी हैं। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि सभ्यताओं के विकास और विस्तार में गणित ने भी अमूर्त रूप से भूमिका निभाई है, वास्तव में किसी सभ्यता के विकास का अंदाजा वहां पर पनपी गणितीय संस्कृति से भी लगाया जा सकता है। लगभग 3000 ई. पू. की सिंधु घाटी सभ्यता कुछ ऐसा ही दर्शाती है। सिंधु घाटी सभ्यता अपने व्यवस्थित नगरों व संरचना के लिए जानी जाती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के स्थलों पर खुदाई ने वहाँ उपयोग किए जाने वाले मूलभूत गणित से पर्दा उठाया। उस समय का गणित काफी व्यवाहरिक था। वजन और लम्बाई नापने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले तराजू और अनेक यन्त्र खुदाई में निकले। भवनों के निर्माण हेतु प्रयोग की जाने वाली ईंटें तो कमाल की थीं। इन ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई और उंचाई 4, 2 और 1 के अनुपात में थीं। वजन के तराजू भी अलग अलग आकारों के थे, जैसे- घनाकार, बेलनाकार, शंकुाकार इत्यादि, जो उस काल के ज्यामितीय ज्ञान को दर्शाते हैं। इतना ही नहीं, इन वजनों के अनुपात का मानकीकरण भी था। जैसे, 1/16, 1/8, 1/4, 1/2, 1, 2, 3। रेखा मापक यानी स्केल भ
े 🚩आजादी बचाओ आंदोलन  के श्री राजीवजी दीक्षित जी ने  एक सत्संग में कहा था कि में पूरे देश मे मेरे व्याख्यानो में वही कहता हू जो मुझे संतों व बापूजी ने कहा था , आज से 500 साल पहले 20 मई सन 1498 वे में  1 विदेशी वास्कोडिमा  भारत आया था ओर वो भारत को ईसाई देश बनाने के उद्देश्य से आया था , उसे यूरोप से ईसाई पादरी पोप ने भेजा गया था , उनका उद्देश्य था कि भारत को बरबाद कर देंगे । *💻सन 1813 में लंदन में अंग्रेजो ने भारत की आर्थिक व्यवस्था को खत्म करने के लिए कानून बनाये भारत के व्यापारियों को खत्म करने के एक्साइज ड्यूटी का टेक्स , सेल टेक्स , इन्कम टेक्स, अंग्रेजो ने ही बनाये ताकि भारत के व्यापारी उन्नति न कर सके ।* 👳‍♂अंग्रेजो ने किसानों की जमीन छीनने का कानून 1894 में डलहौजी ने  बनाया, यह कानून अभी भी चल रहा है किसानों के साथ अत्याचार अभी भी हो रहा है ।  🌳अंग्रेजो ने जंगल मे भारतीय किसी कारण से पेड़ काटे तो उसे सजा देते थे  ओर अंग्रेज की कम्पनियों ने करोड़ो पेड़ काटकर सिगरेट बनाई जाती थी। *🇮🇳हिन्दुस्थान के समाज को खत्म करने के कानून IPC, CRPC, CPC आज भी लोअर कोर्ट , हाई कोर्ट , सु

त्रिपुर कामरूप और प्रांगज्योतिस्पुर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व

प्राचीन भारत के देश -  त्रिपुर-कामरूप-चीन-सुचीन ! वर्तमान त्रिपुरा प्रदेश पुराणोक्त “त्रिपुर” का ही एक लघु भाग है। इसकी प्रथम विजय का श्रेय रुद्र को दिया जाता है। इस विजय के कारण ही वे “त्रिपुरारि” कहलाए। पौराणिक परम्परा है कि प्राकृतिक सीमाओं से ही सीमांकन हुआ करता है, अत: त्रिपुर की सीमाएँ भी प्राकृतिक थीं। यह पूर्व में वर्तमान मणिपुर व मिजोरम प्रदेशों तक, उत्तर में वर्तमान मेघालय प्रदेश की दक्षिणी सीमा तक, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नद (स्थानीय जमुना) तक और दक्षिण में समुद्र पर्यन्त विस्तृत था। भारत के त्रिपुरा प्रदेश की सबसे रोचक बात यह है कि इसका उत्तर-दक्षिण विस्तार २५° से २२° उत्तर अक्षांशों के मध्य है जो उत्तरायणान्त रेखा (अथवा पृथ्वी के अक्ष की नति) के विचलन की अधिकतम व न्यूनतम सीमाएँ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि त्रिपुर का उक्त नाम उन तीन पुरों के कारण पड़ा जो उत्तरायणान्त रेखा के विचलन की उत्तरी सीमा पर, मध्य में व दक्षिणी सीमा पर थे। वे तीन पुर थे – १. उत्तरपुर (वर्तमान महेन्द्रगंज के निकट) २. मध्यपुर (वर्तमान मुंशीगंज के निकट) ३. दक्षिणपुर (वर्तमान चिट्टगाँव)
कितने हिन्दू इस बात को जानते हैं कि पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने पुरी जगन्नाथ मंदिर को अमृतसर के विष्णु मंदिर (हरमंदिर साहिब) की तुलना में बहुत अधिक स्वर्ण दान किया था। कितने लोग यह जानते हैं कि इसके ठीक बाद उन्हीं महाराज रणजीत सिंह ने पुरी शंकराचार्य पीठ के संरक्षण में कोहिनूर हीरा भगवान जगन्नाथ के मुकुट के मणि के रूप में पूरा अखण्ड टुकड़ा देने का निर्णय लिया था। इसके बाद अंग्रेजों में बड़ी हलचल मची। उनके दो स्वार्थ इससे संकट में पड़ सकते थे। एक तो यह कि सिक्खों को हिंदुओं से विभाजित करने का उनका षड्यंत्र सफल नहीं होता, वे सिक्खों का नियोजन सनातन विरोधी अभियानों के लिए उतनी प्रखरता से नहीं कर पाते, और दूसरा जो पीठ तथा मंदिर उनके लिए तब (और आज भी) एक विकट चुनौती थी, उसे अचानक से अपार धन और जन का समर्थन मिलने लगता। इसीलिए अंग्रेजों ने बलपूर्वक अपनी ही बनाई हुई सन्धियाँ और नियम तोड़कर महाराजा रणजीत सिंह के साथ विश्वासघात किया और कोहिनूर को उनसे चुरा लिया। उन्होंने दर्शनार्थियों से कर वसूलना तो प्रारम्भ कर ही दिया था , उल्टे यह अफवाह उड़ाई कि पुरी की रथयात्रा नरसंहार का एक व्यापक षड्यंत