Skip to main content

Posts

Showing posts from November, 2019

अवहेलना तिरस्कार पंडित जी की और शादी का आयोजन करने वाली कंपनियों ने मुनाफा की मलाई काटी 10,0000 करोड़

    विवाह की बढ़ती उम्र पर खामोशी क्यों...? 28-32 साल की युवक युवतियां बैठे है कुंवारे, फिर मौन क्यों हैं समाज के कर्ता-धर्ता कुंवारे बैठे लड़के लड़कियों की एक गंभीर समस्या आज सामान्य रुप से सभी समाजों में उभर के सामने आ रही है। इसमें उम्र तो एक कारण है ही मगर समस्या अब इससे भी कहीं आगे बढ़ गई है। क्योंकि 30 से 35 साल तक की लड़कियां भी कुंवारी बैठी हुई है। इससे स्पष्ट है कि इस समस्या का उम्र ही एकमात्र कारण नहीं बचा है। ऐसे में लड़के लड़कियों के जवां होते सपनों पर न तो किसी समाज के कर्ता-धर्ताओं की नजर है और न ही किसी रिश्तेदार और सगे संबंधियों की। हमारी सोच कि हमें क्या मतलब है में उलझ कर रह गई है। बेशक यह सच किसी को कड़वा लग सकता है लेकिन हर समाज की हकीकत यही है, 25 वर्ष के बाद लड़कियां ससुराल के माहौल में ढल नहीं पाती है, क्योंकि उनकी आदतें पक्की और मजबूत हो जाती हैं अब उन्हें मोड़ा या झुकाया नहीं जा सकता जिस कारण घर में बहस, वाद विवाद, तलाक होता हैं बच्चे सिजेरियन ऑपरेशन से होते हैं जिस कारण बाद में बहुत सी बिमारी का सामना करना पड़ता है । शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल व लड़के की उम

bhu के संस्थापक मदन मोहन मालवीय की आत्मा क्यों कराह रही है

    प्रश्न यह है कि फिरोज कोई, ऐसे थोड़े झोला उठाकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रवेश कर दिया है उसके लिए बकायदा नियम कानून और यहां के बुद्धिजीवियों के और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सारे मापदंडों को पूर्ण करते हुए वह यहां तक पहुंचा है। प्रश्न यह है कि यह ऐसा नियम कानून और मापदंड स्थापित करने वाले कौन हैं जो भारत की अस्मिता को समाप्त करना चाह रहे हैं जो भारत की सनातन परंपरा को नष्ट करना चाह रहे हैं हालांकि गलती तो उसी समय हो गई थी जब अपनी गुरुकुल व्यवस्था का त्याग करके और अंग्रेजों की आधुनिक शिक्षा के माध्यम से एक बड़ा संस्थान बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बनाई गई है उसी समय इस सनातन परंपरा के नष्ट होने का बीज डाल दिया गया था यह तो अब उसके फलअश्रुति हैं हम लोग केवल परिणाम पर छाती कूटते हैं कारण और निवारण पर कोई ध्यान नहीं रहता है  बोय पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय कहीं यही हालत राम मंदिर निर्माण का भी ना हो इसलिए सजगता आज से ही जरूरी है और श्रेष्ठ परंपरा के वाहक तेजस्वी पुरुष चयन अगर हो पाता है तू ही विश्व गुरु भारत के संकल्पना साकार हो सकती है नहीं तो अपने अपने पालतू लोगों को बैठा क

पांच ऐसे धन जिस पर किसी सरकार का और उसके demonetisation का कोई प्रभाव नहीं पड़ता

      विद्या धनं सर्वधनं प्रधानम'' यह बात शास्त्रों में हजारों साल पहले मनुष्य को जीवन जीने का  एक महत्वपूर्ण  दर्शन हमारी भारतीय ज्ञान  में समाहित था मनुष्य की पंचकोशी विकास में 5 धन बताए गए (1) विद्या (2)आरोग्य या स्वास्थ्य यह दोनों धन कोई किसी से लेन देन नहीं कर सकता एक पिता अपने पुत्र को भी नहीं दे सकता स्वयं के पुरुषार्थ से ही इस धन की प्राप्ति हो सकती है इस लेनदेन के क्रम पहला में प्रथम धन गऊ धन संपूर्ण धन में तीसरा स्थान गोधन का है चौथा पशुधन जिसमें गाय के अलावा सारे पशु जिसमें हाथी घोड़ा ऊंट बकरी यह सब आ जाते हैं चाहे कोई सरकार का डिमॉनेटाइजेशन हो इस पर लागू नहीं होता इसकी वैल्यू हमेशा बढ़ती रहती है पांचवा और अंतिम हीन( निम्न)धन  जिसे आप रतन धन भी कहते हैं क्योंकि यह धरती जिसे मां  कहते हैं उसको नोच कर खोदकर नीचे से निकाला जाता है आज उसी ही धन के लिए धरती मां को विच्छेदन करके धनी बनने का नाटक करते हैं 🗳  धन का अर्थ है अभि वर्धक यानि बढ़ने वाला भूमि धन है क्योंकि 1बीज मक्के से 3 माह में पंद्रह सौ से 2000 दाने बना देती है ,बाजरा तीन से 5000 दाने बना देती है इसीलिए भूम

राम मंदिर पर मौत का भय और प्रलोभन से भी धर्म विमुख ना हुए आदरणीय श्री पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती जी

श्री राम_मंदिर_षडयंत्र #ध्यानपूर्वक_पढ़ें जगतगुरु शंकराचार्य पुरीपीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंदसरस्वती जी महाराज : पत्रकार : स्वामीजी एक सवाल उठा था पी.वी.नरसिम्हाराव के समय में कि उन्होंने आपको मारने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र बनाया और उसी समय जो सहयोग नरसिम्हा राव का राम मन्दिर को लेकर था उसमे आपने सहयोग नही किया , इसको लेकर क्या विवाद है ? शंकराचार्य जी : ऐसा है वस्तु स्थिति यह है की जब श्री अयोध्या में जिसको उस समय प्रायः बाबरी मस्जिद कहा जाता था और मैंने सबसे पहले कहा की मंदिर के उसमे लक्षण है , गुम्बद है , मीनारे नही है , इसका मतलब वह मंदिर ही है उसे लांछित मंदिर या विवादस्पद ढांचा कहना चाहिए न कि बाबरी मस्जिद जब ढांचा विद्यमान था रामलला उसी मंदिर में प्रतिष्ठित थे और मै शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जा चूका था तब नरसिम्हा राव जी के दो दूत , माध्यम मेरे पास वृन्दावन में आए और लगभग ढाई घंटे तक उनमे से एक लगातार बोलते रहे और लगभग ढाई घंटो में उन्होंने इस प्रकार का भाव प्रकट किया जिससे मै लोटपोट हो जाऊ , प्रलोभन के वशीभूत हो जाऊ , तब मैंने देखा की वो थक गए है तब मैंने उनसे कहा कि

आज मदन मोहन मालवीय जी की आत्मा की स्वयं उन्हें भी धिक्कार रही होगी कि मैंने क्यों इस अंग्रेजी पद्धति का इतना बड़ा शिक्षण संस्थान शुरू किया ?जो हमारे धर्मों पर ही आघात करेगा

    बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय (SVDV) के साहित्य विभाग में एक मुस्लिम सहायक प्रोफेसर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति 5 नवम्बर को हुई।संकाय के विद्यार्थियों को जैसे ही इसकी जानकारी हुई इस नियुक्ति के खिलाफ विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और पिछले कई दिनों से लगातार छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति के आवास के सामने धरना जारी है। लेकिन, तमाम मीडिया समूहों ने इस न्यूज़ को ऐसे चलाया जैसे पूरे BHU में मुस्लिम टीचर की नियुक्ति का विरोध हो रहा है। ऐसा बिलकुल नहीं है। अलीगढ़ के तर्ज पर बेशक BHU के नाम में कुछ समानताएँ हो लेकिन वहाँ किसी का सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से विरोध कभी नहीं हुआ। फिर इस बार ऐसा क्या है कि इस नियुक्ति को रद्द करने की माँग SVDV के छात्र कर रहे हैं। दरअसल यह विरोध एक गैर-हिन्दू का ‘धर्म-विज्ञान संकाय’ में नियुक्ति का विरोध है। अगर यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के ही किसी अन्य संकाय में संस्कृत अध्यापक के रूप में होती तो विरोध नहीं होता। विरोध का मूल इस विशेष संकाय में गैर-हिन्दू की नियुक्ति में निहित है। और वि
हिंदी तेलुगु उर्दू को छोड़कर पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी किया गया आंध्र कि जगन मोहन रेड्ई सरकार ने दिया यह आत्मघाती  निर्णय https://youtu.be/Xm1Hs7yP0vk

इस शिक्षा तंत्र का सर्जिकल स्ट्राइक कब ?राम मंदिर 370 से भी जरूरी यह क्यों

स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्मदिन मना रहा है। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि मौलाना अबुल कलाम किसी विश्वविद्यालय की देन नहीं अपितु एक मदरसे की देन थे। उनकी बड़ी उपलब्धि कोई शैक्षिक डिग्री नहीं अपितु नेहरू के संग नजदीकियां थी। इसीलिए जिस कुर्सी पर किसी वैदिक विद्वान को देश का पाठयक्रम निर्धारित करने के लिए बैठाना था। उस पर एक मदरसे के मौलवी को बैठाया गया। यह भारतीय शिक्षा के विकृतीकरण को नेहरू की एक मुख्य देन है। आइए इसपर विचार करें। 11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था " मोहम्मद खैरुद्दीन" और अम्मी मदीना (अरब) की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त "भारत रत्न " से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भार

अनेक अनजाने लोग जिसके कार्यों से सुप्रीम कोर्ट को राम मंदिर पे मुहर लगानी पडी

      बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।। ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के लिये भगवान् ने मनुष्य का अवतार लिया। वे माया और उसके गुण और इन्द्रियों से परे हैं। उनका शरीर अपनी इच्छा से ही बना है। _/\_ *जो पुरुषों में उत्तम है...!* *जो त्याग समर्पण और मर्यादा के प्रतीक है जो शोर्य पथ के अनुगामी है जो अपने भक्तों को प्राणों से भी प्यारे है...! समस्त ब्रह्मांड को भगवान् श्री राम के प्राक्ट्य दिवस की अनंत बधाई एवं शुभकामनाएं। जय श्री राम..... राष्ट्रीय स्वतंत्र गुरुकुल अभियान    जिस तरह से रामसेतु बनाने का कार्य चल रहा था तो अनेकों लोगों ने अपने-अपने क्षमता अनुसार उसमें योगदान किया उसमें एक गिलहरी का भी योगदान भी रहा है ऐसे करोड़ों हिंदू अपना अपना वह योगदान आज राम मंदिर के लिए कर रहे हैं पर  नल नील के कार्यों को इस क्रम में कभी भी भुलाया नहीं जा सकता उसी तरीके से शारदा सर्वज्ञ पीठ के स्वामी अमृतानंद देव तिर्थ जी के इस अतुलनीय प्रयास जो पर्दे के पीछे राष्ट्र रक्षा व धर्म रक्षा  का कार्य आज भी कर रहे हैं इसमें बहुत सी गोपनीय बातें हैं जो

गौ रक्षा के प्रश्न 7 नवंबर 1966 के बाद आज भी अनुत्तरित क्यों, चाहे कोई सरकार हो

      आज 7 नवम्बर है। आज ही के दिन 53 वर्ष पूर्व 7 नवम्बर 1966 को राजधानी दिल्ली में ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गाँधी द्वारा संसद के सामने ‘गोहत्याबंदी’ के लिये शांतिपूर्ण जलूस निकालते हजारों निहत्थे गोभक्तों, जिनमें महिलाएँ, बच्चे, वृद्ध व साधु भी थे, को गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया गया। इस लेख को लिखने वाले उस खूनी मंजर का प्रत्यक्षदर्शी गवाह है, मैं उस दिन उस जलूस में शामिल था और वह खौफनाक मंजर मैंने स्वयं देखा है। ‘हिन्दुस्तान समाचार’ न्यूज एजेंसी के विशेष संवाददाता श्री मनमोहन शर्मा ने, जो संसद की कार्यवाही कवर करते थे, ने उस घटनाक्रम का आँखोदेखा निम्न वर्णन किया है--- ‘‘वह दृश्य भूला नहीं हूँ। सुबह के 8 बजे होंगे, संसद भवन के सामने एक विशाल जन-समूह एकत्र हो चुका था। संसद के ठीक सामने एक विशाल मंच बना था, मंच पर करीब ढाई सौ लोग बैठे थे, चारों पीठों के शंकराचार्य, करपात्री जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्यसमाज, नामधारी समाज के प्रमुख लोग वहाँ मौजूद थे। धार्मिक गीत गाते-बजाते जत्थे आते जा रहे थे। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं सभी उन जत्थों में शामिल थे। कई महिलाओं की गोद में तो दू
भारत मे क्रिप्टो ईसाई नकली बौद्ध बनकर Rहिन्दुओ को गुमराह कर रहे है। बुद्धम सरणंम गच्छामि बुद्ध धर्म 2 प्रकार का है; पहला भारत के बाहर और दूसरा भारत के अंदर। अगर आपको भारत के बाहर के बुद्ध धर्म का उदय समझना है तो आपको इस्कॉन को समझना होगा। इस्कॉन श्रीकृष्ण भक्ति के प्रचार की संस्था है। इस्कॉन के सदस्य सिर्फ श्रीकृष्ण को ही ईश्वर मानते हैं और वे किसी अन्य हिन्दू देवी देवता की पूजा नहीं करते। वे शिव, दुर्गा, गणेश, काली, हनुमान को नहीं पूजते। इसका अर्थ ये नहीं निकलना चाहिए कि वे बाकी हिन्दू देवी देवताओं के विरोध में हैं। प्राथमिक तौर पर उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण ही हैं। इस्कॉन 5 दशकों पहले बना और इसके दुनियाँ में सैकड़ों मंदिर और हजारों यूरोपीय ईसाई अब श्रीकृष्ण भक्त, यानी हिन्दू हैं। यही इस्कॉन अगर 2000 साल बना होता तो शायद आज सारे यूरोपीय लोग हिन्दू यानी श्रीकृष्ण भक्त होते जो सिर्फ श्रीकृष्ण को ही मानते किसी दूसरे हिन्दू देवी देवता नहीं और सिर्फ श्रीकृष्ण को मानने वाली आध्यात्मिक विचारधारा को शायद आज कृष्णाइज़्म कहते। अशोक ने बुद्ध धर्म का प्रचार इस्कॉन की तर्ज़ पर किया। बुद्ध को अपना इष्ट

वैश्विक कारपोरेट संस्कृति को चुनौती देता सनातन परंपरा का सूर्य षष्ठी पर्व

       वैश्विक कारपोरेट संस्कृति को चुनौती देता यह पर्व भारत के सर्व समाज को पोषित करता और समाज को समृद्ध बनाता है इसमें कंपनी मेड कोई  ही वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता है यह सनातन संस्कृति है कि समाज समृद्धि हो छठ का पर्व प्रारंभ हो गया है। पिछले वर्ष इस त्यौहार के दौरान पटना में करीब 4.5 करोड़ रुपये का सूप का कारोबार हुआ था। सूप बांस से बनने वाला एक बर्तन सा होता है जिसे डोम समुदाय बनाता है। इसके अलावा इस पर्व में केले और टाब-नींबू जैसे स्थानीय फल इस्तेमाल किये जाते हैं। ये सेब, नाशपाती, संतरे की तरह कहीं कश्मीर से नहीं आता, स्थानीय किसानों के पास से ही आने वाली चीज़ है। यानी हिन्दुओं का एक त्यौहार भी सबसे पिछड़े तबके को अच्छा-ख़ासा रोजगार देने में सक्षम है। मंदिरों की वजह से भी अर्थव्यवस्था पर करीब करीब ऐसा ही असर होता है। फूल बेचने वाला (माली समुदाय), अगरबत्ती, बेलपत्र, दूब, अक्षत, रोली, बद्धी-माला जैसी कई छोटी छोटी चीज़ें होती हैं जिनकी दुकानें आपको दर्जनों की संख्या में किसी भी बड़े मंदिर के आस पास दिख जाएँगी। मंदिर की दान पेटी में डाला गया चढ़ावा सरकार हथिया लेती है, इसलिए दान पेट

क्या आप इलुमिनाटी के बारे में जानते हैं?

   क्या आप इस संगठन के बारे में कभी सुना है क्या ? ईल्लूमिनाती (Illuminati) के बारे में एक संक्षिप्त रिपोर्ट !!  !! इल्लूमिनाती (Illuminati) के बारे में एक संक्षिप्त रिपोर्ट !! इल्लूमिनाती क्या है : इल्लूमिनाती दुनिया के सबसे ताकतवर औरसमर्थ लोगों का एक गुप्त समूह (Secret Society) है जिसके सदस्यदुनिया के बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी, व्यापारी, बैंकर, डॉक्टर,वैज्ञानिक, इंजीनियर, लेखक, चिन्तक-विचारक, हथियार निर्माता,दवा निर्माता, टेक्नोलॉजी कम्पनियां हैं ! इल्लूमिनाती का लक्ष्य क्या है : इल्लूका लक्ष्य दुनिया पर राज करना वदुनिया को अपने इशारों पर चलाना है,दूसरी भाषा में कहें तो दानवों की तरहपूरी दुनिया को जीतना व उनपरअपना साम्राज्य स्थापितकरना जैसा की पहले भी सिकंदर तथा कुछरोमन आक्रमणकारी करनेकी कोशिश कर चुके हैं जिन्हें कुछ हद तकसफलता भी मिली थी लेकिन कुछगलतियों की वजह से वो दुनिया पर राजकरने के अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाए थेऔर इल्लू उन सब की गलतियों से सबक लेकरकाम कर रहा है जो उसकी सफलता का सबसेबड़ा कारण है ! आखिर इल्लूमिनाती जैसा संगठन बनाने केपीछे कारण क्या हो सकता है