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Showing posts from April, 2021

महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन में 'कर्म' शब्द का अर्थ motion से है। इसके पांच प्रकार हैं।

  भारत में दर्शनशास्त्र की इतनी ऊंची और श्रेष्ठ परंपराओं का यह एक श्रेष्ठ विवेचन है जिसे अंतरिक्ष विज्ञानी ओपी पांडे व निरंजन सिंह जी ने इस पर अपना अपनी दृष्टि से यथार्थ विवेचन किया है मैकेनिक्स (कायनेटिक्स) एवं यंत्र विज्ञान महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन में 'कर्म' शब्द का अर्थ motion से है। इसके पांच प्रकार हैं। उत्क्षेपण (upward motion) अवक्षेपण (downward motion) आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress) प्रसारण (Shearing motion) गमन (General Type of motion) विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है। (१) नोदन के कारण-लगातार दबाव (२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना (३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है (४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से डा. एन.जी. डोंगरे अपनी पुस्तक 'The Physics' में वैशेषिक सूत्रों के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा १६७५ में खोजे गए गति के नियमों की तुलना करते हैं। प्रशस्तपाद लिखते हैं ‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विश

ग्राम प्रधान से पंतप्रधान तक चुनाव के माध्यम से गुलामी की जंजीरें की जकड़ से भारत को बर्बाद करने का षड्यंत्र

       जब इंडियन संविधान की बात होती हैं तो लोग भीमराव अम्बेडकर का वर्णन करते हैं। संविधान निर्माता बेनेगन नरसिंह राव, प्रेम बिहारी नारायण रायजादा, राजेन्द्र प्रसाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जवाहर लाल नेहरू व वल्लभ भाई पटेल जैसे व्यक्तियों का वर्णन नहीं किया जाता ? जबकि डॉ. अम्बेडकर तो इस संविधान के विरोध में थे, और इसे जला देना चाहते थे !   अंबेडकर को बदनाम करके कुछ लोग प्रसन्न होते हैं और अंबेडकरवादी मनु महाराज को गाली देकर प्रसन्न हो जाते हैं पर इस देश में अंग्रेजों को रहना जब भारी पड़ने लगा तो उन्होंने स्वतंत्रता से 4 साल पहले ही इस देश को चलाने की कायदे या विधान की रचना करवाने के लिए अपने कुछ चाटूकार लोगों को चुन कर यह लिखित गुलाम संविधान की तैयारी करवा लिये फिर ट्रांसफर पावर का खेल खेला गया जिस का परिणाम इस ग्राम प्रधान के चुनाव में भी स्पष्ट दिख रहा है पहले मतदान फिर जलपान और ऐसे ही अनेक स्लोगन से मतदाता जागरुकता अभियान का मंच चलाने वाले आज पूर्ण रुप से गायब हो गए हैं मीडिया ने सन्नाटा है पर हर गांव में उथल पुथल मची हुई है क्योंकि आग तो अब लग चुकी है अब दूर से बैठकर तमाशा देखना ह

शब्द भाषा 64 लिपियों का समृद्ध भारतीय परंपरा

         एक मित्र ने प्रश्न पूछा कि, 'बचपन में 'ञ' पढ़ाया गया था, आज तक समझ नहीं आया कि उसका प्रयोग कहाँ करना है?' यह प्रश्न आना स्वाभाविक है, इसका उत्तर देने का प्रयास कर रही हूँ। पर उन लोगों को समझाने के लिए नहीं है जिन्हें knowledge सरल और 'ज्ञान' कठिन शब्द लगता है।  जब उन्हें पता चलेगा कि ज् +ञ = ज्ञ होता है तो उनके लिए हिन्दी भाषा और क्लिष्ट दिखायी पड़ सकती है। चलिए 'क' 'च' 'ट' वर्ग के अंत में आने वाले पञ्माक्षरों को जानते हैं। हिंदी भाषा में “ञ” “ङ” "ण" "न" "म" को पञ्चमाक्षर के रूप में जाना जाता है। पञ्चमाक्षर का प्रयोग संस्कृत में बहुतायत में पाया जाता है। संस्कृत या कहें कि देवनागरी लिपि इन अक्षरों के बिना अधूरी है। परंतु लिखने में तथा छपाई में होने वाली क्लिष्टता से बचने के लिए शनैः शनैः इन पञ्चमाक्षर का प्रयोग हम छोड़ते चले गए। जैसे कि चंद्रबिंदु का प्रयोग भी कई लोग कम करना शुरू कर दिए हैं। जैसे अब “गाँव” को आप अक्सर “गांव” लिखा हुआ ही पाते होंगे। अब रही बात “ञ” के प्रयोग की या “ङ” के प्रयोग की तो जि