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Showing posts from July, 2019

गौरों की सडयंत्रो में फंसा भारत, विश्वयुद्ध में भारत के सैनिकों का अकल्पनीय संहार के बाद भी ना भारत ना इंग्लैंड ने उन्हें सम्मान दिया

  आखिर कौन थे वे वीर जो वास्तव में छले गये...!!! 28 जुलाई 1914 को शुरु हुए वैश्विक महाभारत में डेढ़ लाख भारतीय सैनिक हताहत हुए, पर न तो भारत उन्हें याद करता है और न ही पश्चिमी देश जिनकी विजय के लिए वे लड़े थे। "यह कोई लड़ाई नहीं है, यह तो दुनिया का अंत है। हमारे पूर्वजों के महाभारत जैसा महायुद्ध है।" यह उस चिट्ठी की एक लाइन है जो पहला विश्वयुद्ध छिड़ने के छह महीने बाद ब्रिटेन के एक अस्पताल में पड़े किसी गुमनाम भारतीय सैनिक ने 29 जनवरी 1915 को लिखी थी। इसी तरह फ्रांस के सॉम मोर्चे पर लड़ते हुए घायल होने वाले इंदर सिंह नाम के एक सिख सैनिक ने सितंबर 1916 के अपने एक पत्र में लिखा था, "इसे तो असंभव ही समझो कि मैं जीवित घर लौट सकूंगा। मेरी मौत पर दुखी मत होना। मैं अपनी बांह थामे एक योद्धा की पोशाक में मरूंगा" करीब एक सदी पहले हुए प्रथम विश्वयुद्ध में इस तरह के न जाने कितने पत्र लिखे गए होंगे। न तो सभी पत्र आज उपलब्ध हैं और न ही सभी भारतीय सैनिक इतने साक्षर थे कि पत्र लिख सकते। ब्रिटिश सरकार उनके पत्र सेंसर भी करती थी। इसलिए वे अपने मन की व्यथा-कथा न खुद लिख सकते थे

जब नेहरू ने गौ भक्त और धर्मप्राण खरबपति डालमिया को मिट्टी में मिला दिया

    देश देश के प्रमुख उद्योग पतियों में डालमिया बिरला बजाज का नाम आपने सुना होगा पर एक नाम इसमें से गायब है वह है रामकृष्ण डालमिया जी का नेहरू ने कैसे सडयंत्र करके  इनको बर्बाद किया आप इनकी हकीकत सुनकर आप रो पड़ेंगे देश के प्रथम प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप में अपने विरोधियों को निपटाने में माहिर थे. इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया. देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया. जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे. वहां पर बुलियन मार्केट में एक दलाल के रूप में उन्होंने अ

कश्मीर पर अमेरिका मध्यस्थता के लिए इतनी बेकरारी क्यों

अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर हमेशा पाकिस्तान का साथ क्यूँ देता है ? एक रहस्यमय बात !!! _________________________________________________ दोस्तो पाकिस्तान की साजिश है ! कि 1971 में भारत ने पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग करवा दिया ! तो अब वो भारत का जम्मु और कश्मीर अलग करवाना चाहता है ! इसी लिए 1971 के बाद पाकिस्तान में जितने भी शासक हुए उन्हों ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया हे ! औरआज आतंकवाद वहाँ इतना बढ़ चूका हे की अब तक हमारे 1 lakh से ज्यादा जवान उसमे शहीद हो चुके हे संविधान में एक Article 370 दाखिल किया गया..उसके तहत जम्मु कश्मीर को एक देश का दरज्जा दिया गया है | भारत का सुप्रीम कोर्ट कोई भी फैसला सुनाये जम्मु कश्मीर में वो लागु नहीं होता | भारत की संसद जो भी कानून बनाये जम्मु कश्मीर में वो लागु नहीं होता | हमारी संसद जो कानून बनाती हे उस कानून का जब आप पहला पन्ना पढेंगे उसमे पहले ही वाक्य में कहा जाता हे Except Jammu and Kashmir. मतलब ये कानून बनाया जा रहा हे जम्मु कश्मीर को छोड़कर| · हमारी सरकार ने आज़ादी के 64 साल बाद ऐसे कई कानून बनाये हे जो आप पर लागु है , हम पर लागु हे,सारे देश पर लागु

मेरा नाम आजाद है अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद और स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है बाल गंगाधर तिलक की जयंती पर नमन उन अमर शहीदों को

  स्वाधीनता संघर्ष में स्वदेशी और स्वराज्य की दीपशिखा को प्रज्वल्लित करने वाले क्रांतिपुरुष स्वदेशीआंदोलन के जनक स्वराज्य के प्रणेता अमर शहीद #लोकमान्यबालगंगाधरतिलक एवं आजादी के महानायक माँ भारती के सपूत अमर शहीद #चंद्रशेखरआजाद जी के जन्म दिवस पर शत् शत् नमन। #ChandraShekherAzad आज भारत के समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की जयंती है, इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" स्वतंत्रता-सेनानियों का उद्घोष बन गया था। इन्हें आदर से "लोकमान्य" भी कहा जाता था। भारत के इस वीर पुरुष को इनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि *लोकमान्य जी की कलम अंग्रेजो के तोप और तलवारो पर भारी थी* *इसी कलम ने अंग्रेजो द्वारा सम्प्रदाय के नाम पर भारत को बांटने की साजिश को नाकाम कर दिया था* *ऐ कलम उन शहीदों को कर तू नमन जो तिरंगा कफन सर सजा के चले* देश के पहले राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने वाले बाल गंगाधर तिलक को लोग “लोकमान्य” की उपाधि देते थे। देश को आजाद कराने और जनता की सेवा के लिए उन्होंने कई अवस्मरणीय कार्य किए हैं। एक नेता होने के सा

संस्कृत भाषा के ग्रंथ केवल कर्मकांड की ही नहीं अपितु सर्वश्रेष्ठ गणित और विज्ञान का भी पथ प्रदर्शक है

देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं ही, परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में  जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा- पाठ के मंत्र ही होंगे। वास्तविकता इससे सर्वथा भिन्न है। देखते हैं - *"चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्।* *यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।"* बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है ! इसका अर्थ है - यदि वर्ग की भुजा 2a हो तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a ये क्या है ? यह तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र ही है, पूजा -पाठ की पद्धति तो हर्गिज नहीं। शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था ।हालायुध ने अपने ग्रंथ *मृतसंजीवनी* मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है , इस श्लोक का उल्लेख किया है - *परे पूर्णमिति।* *उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्।* *तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः।* *तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्

यूरोप में कॉन्वेंट बनने का कारण सुनने के बाद आप शर्म से झुक जाएंगे

   कान्वेन्ट_का_अर्थ_क्या_है सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि ये शब्द कहाँ से आया है तो आइये प्रकाश डालते हैं । ब्रिटेन में एक कानून था लिव इन रिलेशनशिप बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना। जब साथ में रहते थे तो शारीरिक संबंध भी बन जाते थे तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था। अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाये तब वहाँ की सरकार ने कान्वेन्ट खोले अर्थात जो बच्चे अनाथ होने के साथ साथ नाजायज हैं उनके लिए कान्वेन्ट बने। उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर होती है क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायजा बाप है न माँ है न बहन है।। तो कान्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए। अब भारतीयों की मूर्खता देखिए जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं वो कान्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा कान्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं । आज जिसे देखो कान्वेन्ट खोल रहा है जैसे बजरंग बली कान्वेन्ट

क्या अब पृथ्वी रहने लायक नहीं रह गई है कि चांद पर बसने का सपना देख रहे हैं

    6000 करोड़ की लागत से बने चंद्रयान को भेजने की तैयारी हो रही है। एक प्रश्न मुझे परेशान करता है जब अमेरिकी वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रॉन्ग चाँद से होकर आ चुके हैं और उन्हें वहां कुछ नहीं मिला तो भारत को चंद्रयान भेजकर क्या हासिल होगा ? क्या सिर्फ वाहवाही लूटने और दुनिया को ये दिखाने के लिए कि हमने अंतरिक्ष विज्ञान में अमेरिका की बराबरी कर ली है ? ये इतना खर्चीला मिशन है कि डोंनाल्ड ट्रम्प को भी नासा को इसकी परमिशन देने के लिए कई बार सोचना पड़ा था पर भारत को तो सोचने की आदत बिल्कुल नहीं है। अगर ये कोई सैटेलाइट होता जिससे कृषि, रक्षा, मौसम या जासूसी जैसे कॉर्यों में मदद मिलती तो मैं इसका सहर्ष स्वागत करता। पर सबको मालूम है इसका क्या रिजल्ट निकलना है यानि खोदा पहाड़ निकली चुहिया। हमे चाँद पर पहुंचने की जल्दी है पर बाढ़ से बचने के बचने के उपायों के बारे में हम बिल्कुल नहीं सोचते। गाँव देहात तो छोडो दिल्ली, मुंबई और कोलकाता तक मात्र 10 सेमी की बारिश में बदहाल हो जाते हैं। क्या मास्को, शंघाई और शिकागो बारिश में कभी ऐसी बदहाल अवस्था में मिले हैं ? रक्षा के क्षेत्र में हमारी दशा बिल्कुल ही दयनी
     सलीम - जावेद की जोड़ी की बात करते है, इनकी लिखी हुई फिल्मों को देखें, तो उसमें आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम/ ईसाई/ साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा। इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते हैं। फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर "हेमा मालिनी" को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है, जो यह साबित करता है कि - मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते हैं। इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि - बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है, कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए। "दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है। और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है। "जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है। फिल्म 'शान" म
अब तक गाय के आपने बहुत सारे रूप देखे हैं लेकिन इस फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में गाय का यह रूप आपको आह्लाद कर देगा  https://youtu.be/o5jxwMrCbfA एक दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसा पशु अधिकतर तब करते हैं जब उनका स्वजन मर जाए तो वो किसी वस्तु को अधिकार में कर लेते हैं। मैंने सोशल मीडिया पर देखा था तब वहाँ इसका लोग मज़ाक़ बना रहे थे, तब भी मैंने बताया था। संभवतः गाय का बच्चा मर गया हो, वो ग़ुस्से में भी है।

जल की त्राहि-त्राहि में छुआछूत और सामाजिक जीवन की भूमिका

 .     इतिहास के हिसाब से देखें तो 1970 के दौर में भारत में ये समझ आने लगा था कि भारत में पानी की किल्लत है | इसे सुलझाने के लिए भारत सरकार ने UNICEF से मदद ली | ए.सी. लगे कमरों में गरीबों के हितैषी, ग्रामीणों की समस्या सुलझाने बैठे | आखिर तय हुआ कि इसमें भी भारत के संविधान वाला ही नुस्खा आजमाया जाए | तो अमेरिका में इस्तेमाल होने वाले हैण्ड पंप को भारत में कॉपी कर लिया गया | काफ़ी खर्चे के बाद हैण्ड पंप तैयार हो गया और उसे लगाया गया | कुछ ही महीने बाद जब दोबारा सर्वे करके इनके इस्तेमाल से होने वाला फायदा जांचने की कोशिश की गई तो पता चला कि सारे मूर्ख ग्रामीण तो अपने पुराने तरीकों से ही पानी निकाल रहे हैं | चिंतकों ने कारण जानना चाहा तो पता चला कि नए वाले हैण्ड पंप तो कबके खराब हो चुके | मरम्मत इतनी मुश्किल और खर्चीली कि सरकारी नल को छूता ही नहीं था | हुआ यूँ था कि अमेरिका के जिन नलों की नक़ल की गई थी वो एक परिवार दिन में मुश्किल से चार पांच बार इस्तेमाल करता था | यहाँ भारत में पूरा पूरा परिवार नल के सामने कतार में घंटों खड़ा रहता था | विदेश से आई महंगी चीज़ को फेंके जाने की नौबत