गौरों की सडयंत्रो में फंसा भारत, विश्वयुद्ध में भारत के सैनिकों का अकल्पनीय संहार के बाद भी ना भारत ना इंग्लैंड ने उन्हें सम्मान दिया
आखिर कौन थे वे वीर जो वास्तव में छले गये...!!! 28 जुलाई 1914 को शुरु हुए वैश्विक महाभारत में डेढ़ लाख भारतीय सैनिक हताहत हुए, पर न तो भारत उन्हें याद करता है और न ही पश्चिमी देश जिनकी विजय के लिए वे लड़े थे। "यह कोई लड़ाई नहीं है, यह तो दुनिया का अंत है। हमारे पूर्वजों के महाभारत जैसा महायुद्ध है।" यह उस चिट्ठी की एक लाइन है जो पहला विश्वयुद्ध छिड़ने के छह महीने बाद ब्रिटेन के एक अस्पताल में पड़े किसी गुमनाम भारतीय सैनिक ने 29 जनवरी 1915 को लिखी थी। इसी तरह फ्रांस के सॉम मोर्चे पर लड़ते हुए घायल होने वाले इंदर सिंह नाम के एक सिख सैनिक ने सितंबर 1916 के अपने एक पत्र में लिखा था, "इसे तो असंभव ही समझो कि मैं जीवित घर लौट सकूंगा। मेरी मौत पर दुखी मत होना। मैं अपनी बांह थामे एक योद्धा की पोशाक में मरूंगा" करीब एक सदी पहले हुए प्रथम विश्वयुद्ध में इस तरह के न जाने कितने पत्र लिखे गए होंगे। न तो सभी पत्र आज उपलब्ध हैं और न ही सभी भारतीय सैनिक इतने साक्षर थे कि पत्र लिख सकते। ब्रिटिश सरकार उनके पत्र सेंसर भी करती थी। इसलिए वे अपने मन की व्यथा-कथा न खुद लिख सकते थे