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Showing posts from December, 2019

सनातन संस्कृति और धर्म को विकृत करने का इल्यु सडयंत्र "इजूर वेदम्" सबसे सत्य और शुद्ध वेद कहा जाये

      मित्रो इल्लुमिनाती ने सनातन को खत्म करने के लिए दो तरह के हथियार तैयार किये थे पहला हथियार ईसाई मिशनरी दूसरा इस्लाम के टिड्डी दल। भारत में हजार आक्रमण करने के बाद भी जब यवन/इल्लु/जियोनिस्ट हिन्दुओ को गुलाम नही बना पाए तब उन्होंने क्रिस्चन रिलीजन को तैयार किया जिसने रोम पर अधिकार करके सनातन संस्कृति पर प्रहार करना शुरू किया लेकिन पूर्ण सफलता नही मिली। इससे भी इनका काम नही बना तो इस्लाम नामक नरभक्षक टिड्डी दल तैयार किया जो सन 712ई० से लेकर मुगल काल तक आते आते सारे खत्म होने की कगार पर आ गए तब भी हिन्दुओ को गुलाम नही बना पाए। हर जगह से मात खाये इल्लु ने एक नई रणनीति बनाई और ईसाईयत को अंतिम प्रहार के लिए सारी शक्ति प्रदान की ईसाइयत भारत में अपना वर्चस्व बनाने के लिए सनातन की जड़ों अर्थात वेद, पुराण और रामायण जैसे अनेक धार्मिक ग्रंथो पर प्रहार करने का महाषड्यंत्र शुरू किया। सन 1600 से आज तक भारत में बहुत से ईसाई विद्वान् रॉबर्ट डी नोबली, विलियम जोन्स, मैक्स मुलर, ब्रायन होऊटन और बिशप राबर्ट कोल्डवेल जैसे ईसाई मतावलम्बी भारत आये और उन्होंने भारतीय भाषा विज्ञान का

यह शैतान लोग मधुमक्खियों सहित सभी प्राणियों को क्यों मारना चाहते हैं

     मधुमक्खीयों को खत्म करने के पिछे विदेशी षडयंत्र। कृपया लेख को पूरा पढें 🙏🙏_________- मधुमक्खीयों की देशवासियों के लिए कितनी जरूरत है वो आप सब जानते हो। वो चाहे फसलों में परपरागण के लिए हो या शहद से हमारे स्वास्थ्य के रूप में या किसी भी दूसरे प्रत्यक्ष /परोक्ष रूप में।। लेकिन इन मधुमक्खीयों को एक अमेरिकी कंपनी Monsanto कंपनी द्वारा खत्म करने की पूरी कोशिश है जिसमें दूसरी छोटी विदेशी कंपनी बायर, सिजेंटा, ड्यूपोंट आदि भी शामिल हैं ये Monsanto कपंनी सन 1901 से भारत में अपना व्यापार करती है इस कंपनी ने GMOS नामक एक तकनीक विकसित की है। GMOS का मतलब है - Genetic Modifaid of Seeds. हिंदी में समझे तो अर्थ ये है कि बीजों के जींनस के साथ जानवरों के जींनस को मिलाना। उन कीटों के डीएनए को बीज के डीएनए के साथ मिलाया जाएगा जो बहुत अधिक जहरीले हैं जैसे बाजरा बीज के डीएनए के साथ किसी जहरीले सांप के विशेष जहरी जींसस को मिलाना। इससे ये होगा कि जब मधुमक्खी उस बाजरे की फसल से पराग या थोड़ा बहुत नैक्टर लाएगी तो उस जहर का उस पर धीमा लेकिन खतरनाक असर होगा और धीरे धीर

इस हैप्पी न्यू ईयर के शोर में क्या वीर गोकुल सिंह के बलिदान को कभी याद किया है

   हमारा नवबर्ष #चैत्र_शुक्ल_पक्ष_प्रतिपदा से 1 जनवरी को हम वीर गोकुला सिंह के बलिदान के रूप में याद करते हैं ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ #महाआश्चर्य! भारतवासी,1 जनवरी को देश की आजादी के लिए शहीद होने वाले अमर #वीर_गोकुल_सिंह को भूल गए..!!! पर गुलाम बनाने वाले अंगेजों का नववर्ष याद है.. 1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, राष्ट्रधर्म रक्षक वीर गोकुल सिंह जी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के बलिदान दिवस पर (1जनवरी 1670) उनको शत-शत नमन। कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी। सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी।। सन् 1666 के समय में इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, #हिन्दू_स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था। औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस

पारस जो ईरान बन गया इस्लाम के आने के बाद पूरा इतिहास दफन क्या गया

    ईरान की सीमा हर काल में घटती बढ़ती रही। आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बहुत भिन्न है। ईरान की पहचान पहले पारस्य देश के रूप में थी। उससे पहले यह आर्याना कहलाता था। प्राचीनकाल में पारस देश आर्यों की एक शाखा का निवास स्‍थान था। वैदिक युग में तो पारस से लेकर गंगा, सरयू के किनारे तक की सारी भूमि आर्य भूमि थी, जो अनेक प्रदेशों में विभक्त थी। जिस प्रकार भारतवर्ष में पंजाब के आसपास के क्षे‍त्र को आर्यावर्त कहा जाता था, उसी प्रकार प्राचीन पारस में भी आधुनिक अफगानिस्तान से लगा हुआ पूर्वी प्रदेश 'अरियान' वा 'एर्यान' (यूनानी एरियाना) कहलाता था जिससे बाद में 'ईरान' शब्द बना। ईरान के ससान वंशी सम्राटों और पदाधिकारियों के नाम के आगे आर्य लगता था, जैसे 'ईरान स्पाहपत' (ईरान के सिपाही या सेनापति), 'ईरान अम्बारकपत' (ईरान के भंडारी) इत्यादि। प्राचीन पारसी अपने नामों के साथ 'आर्य' शब्द बड़े गौरव के साथ लगाते थे। प्राचीन सम्राट दार्यवहु (दारा) ने अपने को अरियपुत्र लिखा है। सरदारों के नामों में 'आर्य' शब्द मिलता है, जैसे अरियरा

भारत की मृतप्राय हो चुकी सनातन वैदिक परंपरा को नया जीवन देने वाले आचार्य कुमारिल भट्ट

    कौन थे कुमारिल भट्ट??? जब पूरा भारत बौद्धों की चपेट यानी बौद्धप्राय हो गया था, लगभग नास्तिक धर्म राष्ट्रबाद से अलग -थलग होता भारतदेश, विदेशी आक्रमण-कारियों के लिए चारागाह होता देश, बौद्धधर्म राजा और महराजाओ का धर्म, जनता की बिना इक्षा के उस पर थोपा हुआ धर्म, जिसका भारतीयता से कोई ताल-मेल नहीं, जिसमे राष्ट्रबाद के लिए कोई स्थान नहीं, ऐसे में किसी भी देश-भक्त का चिंतित होना स्वाभाविक है काशी में एक बौद्ध राजा की महारानी अपने घर के छत पर खड़ी होकर वैदिक धर्म की दुर्दशा पर रो रही थी किससे कहे अपने मन की ब्यथा को--! वैदिक अथवा सनातन धर्म का नाम लेना तो अपराध हो गया था, गली से जाता हुआ गुरुकुल का एक ब्रम्हचारी जिसके सिर पर पानी की कुछ बूद टपकी ब्रम्हचारी को लगा कि बिना वर्षा के ये पानी -- ऊपर देखा तो एक महिला रो रही है, माता क्या कष्ट है-? उस रानी के मुख से अनायास ही निकल गया कौन बचाएगा इस सनातन- वैदिक धर्म को --? मै वेदों का उद्धार करुगा, मै पुनर्स्थापना करुगा अपने सनातन धर्म का, यह आश्वासन देना किसी और का नहीं आचार्य कुमारिलभट्ट का ही साहस था. कुमारिलभट्ट के जन्म के बारे में कई मत

ईशा के पैदा होने से 500 वर्ष पूर्व स्थापित मानक आज भी पारे और अन्य रासायनिकों के शोधन में उपयोगी है

          पारे की खोज किसने की? इस प्रश्न का निश्चित एवं समाधानकारक उत्तर कोई नहीं देता. पश्चिमी दुनिया को सत्रहवीं शताब्दी तक पारे की पहचान भी नहीं थी. अर्थात मिस्र के पिरामिडों में ईस्वी सन १८०० वर्ष पूर्व पारा रखा जाना पाया गया है. पारा जहरीला होता है, इस बारे में सभी एकमत हैं. इसीलिए १४० से अधिक देशों ने पारे का समावेश करने वाली भारतीय आयुर्वेदिक औषधियों पर तीन वर्ष पहले प्रतिबंध लगा दिया था, जो आगे चलकर हटा लिया गया. *मजे की बात यह है कि जहरीला माना जाने वाला पारा, ईसा से ढाई हजार वर्षों पहले तक भारतीय ऋषियों एवं चिकित्सकों द्वारा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उपयोग किया जाता रहा.* ईसा से पाँच सौ वर्षों पूर्व इसका उपयोग आयुर्वेद में किया जाता था, यहाँ तक कि खाने के माध्यम से ली जाने वाली औषधियों में भी...! अर्थात पश्चिमी दुनिया जिस पारे से तीन सौ वर्ष पहले तक पूर्ण रूप से अनजान थी, ऐसे जहरीले पारे का उपयोग ढाई-तीन हजार वर्षों पूर्व भारत के लोग औषधि के रूप में करते थे, यही अपने-आप में एक बड़ा आश्चर्य है. और इस प्रकार औषधि के रूप में पारे का उपयोग करते समय उसे पूरी त

नागरिक संशोधन बिल की आंख खोलने वाली सच्चाई और ज्वलंत प्रश्न जो आज भी प्रासंगिक है

      नागरिकता संसोधन बिल, अखण्ड भारत श्रेष्ठ भारत  और हिंदू राष्ट्र का के सपने को साकार कर पायेगा ? कायदे से तो इस बिल से ईसाई पंथ के अनुयायियों को भी बाहर होना चाहिए था। बिल में शामिल ईसाई पंथ ही एकमात्र वह पंथ है जो न भारत में पैदा हुआ न पला-बढ़ा। इस्लाम भले ही आज आतंक का पर्याय बन गया हो...नागरिकता संसोधन बिल, अखण्ड भारत के सपने को कैसे साकार करेगा ? कायदे से तो इस बिल से ईसाई पंथ के अनुयायियों को बाहर होना चाहिए था। बिल में शामिल ईसाई पंथ ही एकमात्र वह पंथ है जो न भारत में पैदा हुआ न पला-बढ़ा। इस्लाम भले ही आज आतंक का पर्याय बन गया हो  और एक हैवानियत की हदों को पार करता हुआ रक्तपात का नग्न तांडव कर रहा है पर इस रक्तपात की बीज डालने  वाली यहूदी और ईसाई और अब्राह्मिक संस्कृतियों से भी कोई मानवता का भला होने वाला है क्या? यह तो हमारे शिक्षा तंत्र के माध्यम से हमारे माइंड पर कब्जा कर रखे हैं मौत से भी बदतर जिंदगी हर पल रसपान करा रहे हैं  इसलिए अपने बच्चों की सही शिक्षा के लिए इस गुरुकुल अभियान का सहभागी बने https://m.facebook.com/groups/1083537648465414/?ref=group_browse  

80 टन के पत्थर को चढ़ाने की प्राचीन सनातन कला कौशल ने आज के पढ़े लिखे आधुनिक इंजीनियरों को दी चुनौती

   क्या कोई इस मिस्ट्री को सुलझा सकता है ...?? तंजौर मंदिर के रहस्य: टॉप पर कैप पत्थर है। तंजौर मंदिर के शीर्ष पर टोपी के पत्थर का वजन 80 टन है। कैप स्टोन के बारे में मुख्य उद्गार यह है कि तंजौर मंदिर के निर्माणकर्ता कैसे आए और तंजौर मंदिर में गोपुरम के शीर्ष पर टोपी का पत्थर रखने में सक्षम कैसे हुए। इन कार्यों को करने के लिए उन दिनों में कोई क्रैन या कोई चीज का उच्च उपयोग नहीं किया गया था। केवल एक चीज जो हाथियों की मदद ले सकते थे। तंजौर बड़े मंदिर की विशाल टोपी इस तरहसे बनाई गई है कि तंजौर के मंदिर गोपुरम का मैदान जमीन पर नहीं गिरेगा। यह बस अपने जगह पर ही गिर सकती है। इस विशेष योजना और निर्माण के प्रकार के बारे में ज्ञान होना एक आसान काम नहीं है ...। मैं इसी लिए कहता रहता हूँ दुनिया जब नंगी पेड़ पत्ते लपेट कर रहती थी और जानवर मारकर खाती थी तब हमारे ऋषियों मुनियो ने वेदों की रचना कर दी थी... और इंजीनियर तो कल बने हैं पर सनातन के कला कौशल ने सदियो पहले भव्य भारत का निर्माण कर दिया था, गर्व करो कि हम सनातनी हैं और इस भारत भूमि पर जन्मे हैं। अतुल्य भारत ●●● अद्भुत है यह मन्दिर और कला तो ऐ