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Showing posts from October, 2017
एक् ग़लतफ़हमी का पूरा विश्व शिकार था कि पश्चमी देश शुरू से ही धनाढ्य रहा है। और हमको ये बताया गया है कि भारत एक आध्यात्मिक और धर्म प्रधान देश था लेकिन अर्थ प्रधान देश कभी भी नहीं था । जबकि 2000 सालो से ज्यादा वर्षों तक भारत विश्व कि एक सबसे बड़ी अर्थशक्ति थी , ये नई रेसेयरचेस से पता चल रहा है । भारत सोने की चिड़िया नहीं , मैनुफेक्चुरिंग की बहुत बड़ी अर्थ शक्ति थी । ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------         इस ग़लतफ़हमी को एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट ने तोडा । उसका नाम था पाल बैरोच । 80 के दशक में ,जिसके रिसर्च को पॉल कैनेडी ने अपनी ने अपनी पुस्तक "The Rise and fall of great Powers" उद्धृत किया। बरोच ने कहा कि झूठ है।पूर्व में पश्चिमी देश धनी नहीं गरीब थे। बल्कि सत्य इसके विपरीत है धनी देश पूर्व में थे औपनिवेश के पूर्व।      एक इतिहासकार हैं Jack Goldstone George Mason University के जिन्होंने 2009 में हायर एजुकेशन में चलने वाली एक बुक लिखी The Rise of the West in World History . 1500-1850.       ए
कैलाश पर्वत का रहस्य क्या है? इसे दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत माना जाता है। यहां अच्छी आत्माएं ही रह सकती हैं। इसे अप्राकृतिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है। यह पर्वत पिरामिडनुमा आकार का है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं। रशिया के वैज्ञानिकों अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिंदुओं के सामान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, पर 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'यूएनस्पेशियल' मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी। कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्रोतों से घिरा है- सिंध, ब

गोपाष्गोटमी के दिन गौ गोपाल गौपालन से सर्वोन्नति का राजमार्ग

*🌹सर्वोन्नति का राजमार्ग : गोपालन*🌹 *(गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं  https://youtu.be/2bRukzmmjys 🌹वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से मनाया जाता है । जहाँ गायें पाली-पोसी जाती हैं, उस स्थान को गोवर्धन कहा जाता है । *🌹गोपाष्टमी का इतिहास*🌹 🌹गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोग ही गोवर्धन को धारण किये हुए हैं । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभीने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया । 🌹उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकार
*गाय व भारत की दुर्दशा का सच* गाय व बछड़ों के दो मुख्य दुश्मन है । पहला टैक्टर दूसरा दूध की डेरियाँ । डेरियों ने जबसे फैट युक्त दूध लेना शुरू किया तबसे गाय हांसिये पर आ गयी । इन सबके पीछे मुख्य कारण है मनुष्य का लालच और आलस्यपन । सरकार कभी भी आजतक इन सत्तर वर्षों में गरीब व उपेक्षित को देखकर बजट नहीं बनाती है , सरकार हमेशा उद्योगपति , शहरीकरण , और उच्चवर्ग को देखकर ही बजट बनाती है , क्योंकि यही उनके आय का स्रोत हैं । यदि सारी गौचर भूमि भी खाली करा दी जाये तो भी 40 % से अधिक गौ-वंश नहीं बचने वाला है । पहले किसान गाय को इसलिए पालता था कि उसे सिर्फ एक समय का ही चारा खिलाना पड़ता था , आज भूसा को टैक्टर के द्वारा खेतों में उड़ा दिया जाता है , फिर 10 -15 रुपये किलो का भूसा कौन खिलाना चाह रहा है , वह भी उन गायों को जो दूध नहीं देती या कम देती हैं या जिनका मूल्य कम है । सरकार ने मनरेगा , नरेगा के द्वारा जबसे मजदूरों की मजदूरी देनी शुरू की है जिसमें मजदूर और प्रधान की पूरी सांठ-गांठ होती है इसलिए मजदर मंहगे हो गये, नरेगा या मनरेगा में काम कुछ नहीं होता सिर्फ कागज पर काम होता है , और कम
👆👆 हमारे शास्त्रो में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है, किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं। यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है। अर्थी के लिए बांस की हरी लकड़ी का ही उपयोग होता है क्योंकि उसे भी नही जलाते शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पित्र दोष लगता है। एवं जन्म के समय जो नाल माता और संतति को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंस सदैव बढ़ता रहे। क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है? बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते है लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते है लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है यह भी स्वांस के साथ शरीर मे प्रवेश करता है इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सि

सूर्यषष्ठी का प्राकृतिक जीवन में महत्व

 *छठ पर्व*  *दुनिया का एक ऐसा पावन पर्व जिसकी महत्ता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। आज ये पर्व हिंदुस्तान ,मलेशिया के अलावे लंदन,अमेरिका में भी बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। *ये छठ पूजा जरुरी है* *धर्म के लिए नहीं*, *अपितु*.. हम-आप सभी के लिए जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं । अपनी परंपरा, सभ्यता,संस्कृति, परिवार से दूर होते जा रहे है। *ये छठ जरुरी है* उन बेटों के लिए जिनके घर आने का ये बहाना है । *ये छठ जरुरी है*  उस माँ के लिए जिन्हें अपनी संतान को देखे महीनों हो जाते हैं, उस परिवार के लिये जो आज टुकड़ो में बंट गया है । *ये छठ जरुरी है* उस आजकल की नई बहु/पुतोहु  के लिए जिन्हें नहीं पता कि दो कमरों से बड़ा भी घर होता है । *ये छठ जरुरी है* उनके लिए जिन्होंने नदियों को सिर्फ किताबों में ही देखा है । *ये छठ जरुरी है* उस परंपरा को ज़िंदा रखने के लिए जो समानता की वकालत करता है । *ये छठ जरुरी है* जो सिर्फ उगते सूरज को ही नहीं डूबते सूरज को भी प्रणाम करना सिखाता है  *ये छठ जरुरी है* गागर , निम्बू और सुथनी जैसे फलों को जिन्दा रखने के लिए । *ये छठ जरुरी है* सूप और दउरा को बनाने वालों के लिए, ये बताने के
*साइनस , नजला* बदलते हुए मौसम को देखते हुये आज आपके लिए साइनस , व नाक में बढ़े हुये माँस के लिये अद्भुत प्रयोग लिख रहा हूँ , जिसे कई चिकित्सकों के अनुभवों से संग्रहीत किया हूँ ।  यह कई रोगियों पर आजमाया हुआ है । इस लेख को समस्या के अनुसार क्रमवार लिख रहा हूँ । *बार बार छींक आना , जुकाम बना रहना , कफ कपाल में एकत्र हो जाना, नाक से पानी बहना , जब अंग्रेजी दवाओं से जुकाम बिगड़ जाए और फेफड़ो की समस्या उत्पन्न हो , सर दर्द , माइग्रेन , खांसी सूखी या बलगम वाली इन सबका एक सस्ता सरल और सर्वथा हानिरहित समाधान है । *सुहागे का फूला-* 100 ग्राम सुहागे को बारीक कूटकर लोहे की कड़ाही व तवे पर डालें और तेज आंच में इतना पकाएं कि पिघलने के बाद सूख जाये , जब सुहागा धीरे - धीरे फूलने लगे तो लोहे की चाक़ू से उलट - पलट करते रहें । फिर इसे बारीक पीसकर शीशी में भर लें । बड़ों को एक चम्मच गर्म पानी के साथ तथा बच्चों को आधा चम्मच दें । सात काली मिर्च और सात बताशे एक पाव पानी में पकाएं चौथाई रहने पर गरमा-गर्म पी लें और चद्दर ओढ़कर 15 मिनट के लिए सो जायें । सुबह खाली पेट व शाम को प्रयोग करें । *रात को देशी
गोवर्धन का सत्य - आजकल गोवर्धन का बड़ा ही महात्म्य है।लोग दूर दूर से परिक्रमा करते हैं। जानिए गोवर्धन पूजा क्या है- गोवर्धन पूजा = गो (गाय) वर्धन (बढाना) अर्थात गाय पालकर, गायों की संख्या बढाना ही गोवर्धन पूजा कहाता है। घर में बनते हुए पकवान को देख देखकर तृप्त होना हम अपने बचपन के ऐसे ही चित्र में खुशियों का समावेश है पहले यह नियम था जिस व्यक्ति के पास एक लाख गाय होती थीं वो नन्द और जिसके पास एक लाख से अधिक हों उसे महानंद की उपाधि से सम्मानित किया जाता था। कृष्ण जी बाबा नंद की गाय, ग्वाल वालों के साथ गोबरधन पर्वत और उसके आस पास चारो तरफ चराते थे। गोबरधन भी नाम इसीलिए पड़ा कि लाखों गायें चरते-चराते समय इतना गोबर करती थी कि यत्र-तत्र गोबर बहुतायत में मिल जाता था। प्रतिवर्ष गोपाष्टमी का मेला इसी पहाड़ी पर लगता था क्योंकि गाय सूखा स्थान चाहती है, यह पहाड़ी ऊँची और सुरक्षित भी थी। मेले में कृष्ण जी गायों का निरीक्षण करते थे, अच्छी स्वस्थ, निरोगी गायों और चरवाहों की पूजा(आदर, सत्कार) करते, उन्हें पारितोषिक वितरण करते और भविष्य के लिए ग्वालों को प्रोत्साहित करते, गौ वंश की वृद्धि में
आजादी बचाओ आन्दोलन डॉ0 बनवारी लाल शर्मा ( प्रेरणा स्रोत महात्मा राजीव दीक्षित जी ) लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के कई लड़ाकू सिपाहियों, कुछ बुद्धिजीवियों और छात्र-युवाओं के साथ 5 जून 1989 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी भवन में सम्पूर्ण क्रान्ति दिवस मानने जुटे तो चर्चा में से यह विचार निकला कि देश की दुर्दशा में कहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का योगदान तो नहीं है। इस विचार को ’लोक स्वराज अभियान’ नामक संगठन बनाकर इलाहाबाद में इस पर शोधकार्य शुरू किया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामानों की सूची बनाना शुरू किया गया और विश्वविद्यालय के छात्रावासों, कालेजों में इन कम्पनियों के सामानों, खासतौर से कोकाकोला, पेप्सीकोला के बहिष्कार का अभियान शुरू हो गया। दो वर्ष में बहुराष्ट्रीय गुलामी का विचार अनेक गांधीवादी, समाजवादी विचारकों एवं समाजकर्मियों में वैज्ञानिकों, पत्रकारों, छात्रों अध्यापकों के बीच फैला और 8-9 जनवरी 1991 को महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम में पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमें बहुराष्ट्रीय गुलामी के विरुद्ध मुक्ति संग्राम का नाम आजादी बचाओ आन्दोलन र
आज सारा देश दिवाली मना रहा है और मिठाइयां बांटी जा रही हैं चारों तरफ पटाखे और विभिन्न तरह के पकवान बनाए जा रहे हैं और लोग इसका स्वाद ले रहे हैं पर, यह पकवान , यह मिठाईयां बिना दूध का नहीं बन सकता ।पकवान भी दूध और घी मक्खन के बिना शायद पूर्ण नहीं होता पर यह कितनी विडंबना है कि जो गौ माता हमको श्रेष्ठ और स्वादिष्ट पकवान व मिठाइयां बनाने के लिए दूध देती है वही गौ माता के चारों की व्यवस्था के लिए संत गोपाल जी महाराज 4 महीने से बिना अन्न आमरण अनशन पर जिंदगी और मौत से ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस एम्स में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं क्यों ? क्योैं की आप का आनंद सदा बना रहे और हर रोज दिवाली हर घर में मनती रहे हमारी अपेक्षा आपसे इस लक्ष्मी पूजा की या दिवाली के अवसर पर आपसे ना तो लक्ष्मी प्राप्त करना है ना ही आपसे मिठाई खानी है केवल आप से यही अपेक्षा है की आप अपनी शुभकामना और शुभेच्छा का संदेश हमें जरुर दें साल भर तक हर ग्रुप में बाहर के दिए गए विषयों से प्रभावित होकर बहुत सारे प्रतिक्रिया और फोटो आप भेजते रहते हैं  पर इस बार इस दीवाली में मुन्ना मौन नहीं रहना है  आप अपनी शुभेच
#मनु_महाराज का मनुवादी आदेश: #कर सिर्फ ट्रेडर्स यानी वाणिज्यिक लोगों से लिया जाय। उपकरणों से शिल्पकर्म रत #शूद्रों से कर न लिया जाय। ---------   ------------------------------------- ----------      --- टैक्स लेना राज्य का कर्तव्य और अधिकार दोनों है, लेकिन कैसी सरकार टैक्स ले सकती है और किससे कितना ले सकती है, इसके भी सिद्धांत गढे गए हैं, पहले भी और हाल में भी। ब्रिटिश जब कॉलोनी सम्राट हुवा करता था तब वहां के कुछ बड़े विद्वानों ने गैर जिम्मेदार सरकार को  टैक्स न देने की बात की, थी जिनका नाम आज भी उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। आज के संदर्भ में सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति जिसने टैक्सेशन का सकारण विरोध  किया, था वो था डेविड हेनरी थोरौ जिसके सिविल diobedience के फार्मूले को गांधी ने भारत मे दमनकारी कुचक्री क्रूर बर्बर और Hypocrite ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रयोग किया। लेकिन चूंकि हम अनुवाद के मॉनसिक गुलाम है तो भाइयो ने उसे हिंसा और अहिंसा से जोड़ दिया। बहरहाल ये लिंक पढ़िए जिसमे सिविल disobedience का सिद्धांत वर्णित है ।http://historyofmassachusetts.org/henry-david-thoreau-ar
Add भारत को भारतीयता के आधार पर खड़ा करना और इन विषैले अंतर्राष्ट्रीय साजिशों व कानूनों अंतरराष्ट्रीय साजिश वह कानूनों कानूनों  से देश को बचाना caption द्रविड़ शब्द का संस्कृत में प्रयोग - "द्रविड़ियन रेस का पोस्ट मोर्टेम" : द्रविड़ " शब्द का संस्कृत में किन सन्दर्भों में प्रयोग होता है / ------------------------------------------------------------------------- 1916 मे मुदलियार ने जस्टिस पार्टी बनाई /  पेरियार ने 1935 मे काँग्रेस छोडकर इस पार्टी को जॉइन किया / इसका उद्देश्य था - आत्म सम्मान , सामाजिक न्याय और ब्रामहनवाद का हिंसक विरोध / 1937 मे जब राजाजी के नेतृत्व मे मद्रास प्रेसीडेंसी मे काँग्रेस ने जीत दर्ज की तो #हिन्दी को राजभाषा बनाया , जिसका विरोध पेरियार ने किया /1944 मे पेरियार ने द्रविड़ कझगम पार्टी बनाई , जिसका उद्देश्य था एक स्वतंत्र देश #द्रविडनाडु  की स्थापना करना / बुढ़ापे मे जब #पेरियार ने एक #नौजवान औरत मनीयम्माई से शादी की तो अन्ना  दुरई ने DMK पार्टी का गठन किया / उसके बाद बनी ADMK / तब से दोनों तमिलनाडू को पारा पारी लूट रहे हैं / वो आप सब को मालूम
*संस्कृत की विशेषता।* - अक्षरों की क्रमबद्धता से बनती रोचक काव्य पंक्ति। *अंग्रेजी में THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG.* ऐसा प्रसिद्ध वाक्य है। अंग्रेजी अल्फाबेट के सभी अक्षर उसमें समाहित है। किन्तु बहुत कुछ कमी भी है... (१)- अंग्रेजी अक्षरें 26 है और यहां 33 अक्षरों का उपयोग करना पड़ा है। चार O हैऔर A तथा R दो-दो है। (२)- अक्षरों का ABCD... यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है। ●●●सामर्थ्य की दृष्टि से संस्कृत बहुत ही उच्चतम श्रेणी की है... ●१- यह अधोलिखित पद्य और उनके भावार्थ से पता चलता है। *कःखगौघाङचिच्छौजा झाञ्ज्ञोऽटौठीडडण्ढणः।* *तथोदधीन् पफर्बाभीर्मयोऽरिल्वाशिषां सहः॥* अर्थात्- पक्षिओं का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का , दुसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु। संहारको में अग्रणी, मनसे निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करता कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं। " आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं इतना ही नहीं, उनका क्रम भी योग्य है। २- एक ही अक्षरों का अद्भूत अर्थ विस्तार... माघ कवि ने श