किसी भी सभ्यता का इतिहास उस समाज की शिक्षा का इतिहास भी होता है क्योंकि सभ्यता के लिए आवश्यक पुरुषार्थ अपने ज्ञान परंपरा के संदर्भ में ही संभव होते हैं और किस समाज ने ज्ञान के किन-किन रूपों की साधना की है और कितना और कैसा ज्ञान अर्जित किया है , इससे ही उसमें किए गए और चल रहे पुरुषार्थों का स्वरूप निर्धारित होता है। आज यह विश्व विदित सत्य है कि प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का प्रचार था , वह अपने समय के विश्व की अन्य शिक्षा व्यवस्थाओं की तुलना में सर्वाधिक श्रेष्ठ और समुन्नत थी । जब कुछ अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी के रूप में भारत आए और यहां के समाज में कुछ प्रतिष्ठा पाने का प्रयास करने लगे तो उन्होंने पाया कि इस समाज में शिक्षा का बहुत अधिक आदर है इसलिए उन्हें लगा कि हम भी यहां के लोगों को शिक्षा में रुचि लेते हुए दिखे तो शायद इससे हमारा कुछ सम्मान बढ़ेगा और तब हमें अपना व्यापार फैलाने में सहायता मिलेगी इसके लिए उन्होंने कोलकाता और काशी मे विद्यालय स्थापित किए । यद्यपि उन्हे एक आशा यह थी कि शायद इन विद्यालयों द्वारा छद्म रूप से ईसाइयत के प्रसार मे भी सहायता
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण