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Showing posts from October, 2019

सरदार विट्ठल भाई पटेल की विरासत संपत्ति केअसली हकदार सुभाष चंद्र बोस कैसे बने क्यों स

        नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम अपनी संपत्ति की वसीयत करने वाले स्वतंत्रता सेनानी विट्ठल भाई पटेल क्यों भूलाए गए  भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ऐसे अनेकों परिवार हुए जिन्होंने एक से अधिक स्वतंत्रता सेनानी भारत को दिए । ऐसा ही एक परिवार गुजरात का था । जिससे एक नहीं दो प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भारत को मिले । जी ! यह परिवार सरदार पटेल जी का ही परिवार था । वह स्वयं तो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे ही उनके बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल भी भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी रहे । उनका जन्म सन् 1871 ईसवी में गुजरात के खेड़ा जिला के अंतर्गत “करमसद” गाँव में हुआ था। आपकी प्रारभिक शिक्षादीक्षा करमसद और नडियाद में हुई।सरदार पटेल ने स्वयं अपने संस्मरण में लिखा है कि जब मैंने वकालत के लिए इंग्लैंड जाने की तैयारी की और वहां पर अपना आवेदन भेजा तो उसी समय मेरे बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल ने भी अपना आवेदन वकालत के लिए उसी कॉलेज में भेजा । सरदार पटेल लिखते हैं कि वहां से मेरा आवेदन स्वीकार हो गया जबकि भाई का आवेदन निरस्त हो गया , लेकिन वहां से जब हमको पत्र प्राप्त हुआ तो उसमें वी बी पटेल लिखा

भारत के श्रेष्ठ चिंतन के पतन से देश मानसिक गुलामी की तरफ अग्रसर

       5 साल पहले तक मुझे भी मीडिया पर ग़ुस्सा आता था जबसे वॉलमार्ट ने लिखित और पर स्वीकार किया कि भारत के लोगों को एजुकेट करने के लिए सैकड़ों करोड़ खर्च किया क्योंकि मैं मानता था कि भारत का मीडिया (फिल्म टेलीविज़न प्रिंट इलेक्ट्रोनिक सहित सभी) बिकाऊ है, झूठी ख़बरें दिखाता है आदि आदि । फिर मैंने अमेरिका के द्वितीय राष्ट्रपति थोमस जेफरसन का बयान पढ़ा और तब से मुझे मीडिया पर ग़ुस्सा नही आता , पर ख़ुद पर हँसी आती है कि मैं कितना बेवक़ूफ़ था !! बहरहाल 5 वर्षों से न तो मैं टीवी देखता हूँ, न ही अख़बार पढ़ता हूँ । टीवी और अख़बार से सूचना लेना बिलकुल ही छोड़ दिया । नीचे मीडिया से सम्बंधित कुछ वक्तव्य दिए गए है, जिन्हें आधार में रखकर जब आप किसी भी चीज़ को समझेंगे तो सबसे बेहतर तरीक़े से समझ पाएँगे । समाचार पत्रों में सिर्फ़ विज्ञापन ही सच्चे होते है — जेफरसन , 1810. सभी राजनैतिक ख़बरों के लिए भुगतान किया जाता है, और सबसे अधिक भुगतान उन खबरो के लिए किया जाता है, जिन्हें दिखाना बेहद ज़रूरी था, किंतु नही दिखाया गया — जेफरसन , 1820. जो व्यक्ति समाचार पत्र नही पढ़ता उसके पास ज़्यादा सच्ची ख़बरें होत

भारतीय संस्कृति शुभ लाभ अवधारणा के पोषक है जब से विश्व एक परिवार के चंगुल में फंसकर 99 प्रतिशत संसाधनों पर इन दानवों का कब्जा है

दीपावली पर्वों का पर्व है। अनोखी बात है कि द्यूत निशा, यक्षरात्रि, सुखरात्रि, कौमुदी उत्सव, आकाशीय दीपार्चना दिवस से होते हुए यह पर्व आज बल्‍वावली तक का स्‍वरूप ले चुका है। यह नहीं, हीड़ सिंचन और मंगलकामना पत्रों से यह ग्रिटिंग्‍स फेस्‍टीवल हुआ और नेट पर कांग्रेच्‍युलेशन का स्‍मरण बनकर उभरा है...। इतनी शुभैच्छायें कि चंद भी फलीभूत हो जाए तो कुबेर द्वारपाल होकर तनख्वाह पाए! इस क्रम में सदियां लगी हैं। जिन दिनों यह पर्व यक्षों की पूजा से जुड़ा हुआ था, गांवों में भारी भरकम शरीर वाले यक्षों की सवारियां निकाली जाती थीं। जो बहुत पुराने गांव या नगर हैं, वहां आज भी जक्‍ख, यक्ष, घांस सवारियां निकाली जाती है...। उसकी हैसियत इन्‍द्रध्‍वज विधान के आगे न्‍यूनतम होती चली गई मगर सुखरात्रि ने इसे नवीनरूप दिया और जब उड़ने वाले दीयों का निर्माण सभव हुआ ताे इस रात्रि में दीपदान के साथ साथ आकाश में दीयों को भी उड़ाया जाने लगा ताकि पितरों को भी तमस से उजाला मिल सके। धनद यक्षों की लक्ष्‍मी का महत्‍व जन जीवन पहचानता चला गया तो यह पर्व पूरी तरह श्रीदेवी के पूजन का पर्व हो गया। और यही नहीं, अमावस को

धनवंतरी प्रकट दिवस बना कंपनियों का वार्षिक बिक्री दिवस 90% प्रजा बीमार दिवाली या दीवाला भारत का

    विद्या धनं सर्व धनम् प्रधानम्  जब ज्ञान का यह प्रधान धन नष्ट हो गया इन अंग्रेजों की कुटिल  चाल और काले अंग्रेजों के विकृत शिक्षा नीति के कारण तब आज यह एक बड़ी वृहद समस्या खड़ी हो गई है कि हमें अपने धन की भी पहचान नहीं रह गई है नकली चांदी के सिक्के और कंपनिय के प्रलोभन में घर में कचरा भर रहे हैं जो किसी काम का नहीं है और अपना जीवन संकट में डाल रहे हैं ओरिजिनल चांदी व सोने के  सिक्कों को  भारत  से लूट लिया और कागज हमें पकड़ा दिया  इसी कागज को लेकर हम आज भी गाना गा रहे हैं और धनवंतरी जयंती पर नकली सिक्के खरीद कर संतुष्ट हो रहे हैं पहले डिमॉनेटाइजेश अंग्रेजो के द्वारा किया गया था और 1300 जहाज सोना चांदी  लूट लिया गया था आरोग्य की हालत आज इस देश में यह है कि 80% प्रजा बीमार हो चुकी है क्योंकि आरोग्य के देवता का पूर्णता लोप हो चुका है जब आरोग्य के देवता ही नहीं है तो आरोग्य कहां से होगा और आज यह धनवंतरी प्राकट्य दिवस मल्टीनेशनल कंपनियों का वार्षिक बिक्री दिवस बन गया है  जितना सामान पूरे साल भर यह कंपनियां नहीं  बेच पाते हैं अकेले  उसी एक दिन अपना सारा कबाड़ा निकाल देती हैं  पढ़े-लि

पाप शब्द से ही पापा की उत्पत्ति है कुंवारी मरियम से लेकर आज तक नाजायज औलाद लंपट धूर्त और शातिर अपराधी पैदा करने वाली ही फादर कहलाते हैं

#फादर_का_अर्थ_है_कुँवारी मरियम से लावारिस बच्चा(जीसस)पैदा करने वाला लंपट,धूर्त और शातिर अपराधी...पाप की संतान का मूल रहस्य यही है पाप का धंधा ही है मिशन...! चर्च और मिशनरीज वाले फादर उसको ही कहते हैं...जो कुँवारी लड़कियों से लावारिस बच्चा पैदा करके ईसाईयत को आगे बढ़ा सके...! ईसाईयत अनाथ और लावारिस अवैध बच्चों से ही आगे बढ़ता है...जैसे जोसेफ ने वर्जिन(कुँवारी)मरियम को अपने जाल में फँसाया,उसको प्रैग्नेंट किया,एक लावारिस बच्चा पैदा हुआ,जिसने नया मत शुरू किया,उसने ओल्ड टेस्टामेंट की ऐसी तैसी कर दी और न्यू टेस्टामेंट तैयार करके क्रुसेड शुरू कर दिया,इस उपलब्धि के लिए वह बालक नया मैसेंजर(पैगम्बर)हो गया...उसकी माँ आदर्श बन गयी...यह पैरामीटर तय हो गया कि कुँवारी लड़कियों का बच्चा ही ईसाईयत की असली पहचान हो गई और कुँवारी लड़की से बच्चा पैदा करने वाला जोसेफ फादर हो गया...आज कुँवारी लड़कियों से बच्चा पैदा करने वाला हरेक क्रॉसधारी व्यक्ति इसी परम्परा के अनुसार फादर कहलाता है...! ईसाईयत कुँवारी लड़कियों से बच्चा पैदा करने में इसीलिये पूरी दुनियाँ में लगा हुआ है...अनाथ और लावारिस बच्चों के शेल्टर होम इसी

गणित के नोबेल पर सेक्स प्यार धोखा जैसे तिकड़म का एक दूसरा स्वरूप

गणित का नोबल पुरस्कार इस महिला के हवस के आग में जल जाने के कारण नहीं शुरु हो पाया. इस सम्बन्ध में बेहद मजेदार कहानी है, जिसे आप सबको जानना ही चाहिए. इस महिला का नाम है सोफी हिस. यह विएना के एक फूल के दुकान पर हिसाब किताब देखा करती थी. एक दिन इसके दुकान पर अल्फ्रेड नोबेल भी कुछ फूल खरीदने पहुचे. तब यह 20 वर्ष की थी जबकि नोबेल 43 वर्ष के थे. यह एक बेहद बिन्दास, खुली, सुन्दर, पुष्ट और जल्द से हिलने मिलने वाली महिला थी. पहली ही नजर में यह अल्फ्रेड नोबेल को भा गयी. हालांकी उन्होनें इससे कभी शादी नहीं की लेकिन फिर भी यह घोषित तौर पर उनकी रखैल थी. अल्फ्रेड नोबेल के पास अथाह पैसा था इसलिये उन्होनें इसके जीवन में सभी सुख मौजूद हो इसकी व्यवस्था की. लेकीन इन सबके बावजूद इसने कभी भी अल्फ्रेड से वफादारी नही निभायी. इसने एक बेहद अस्थिर चित्त की, खुद की दिनरात तारीफ करने वाली, कई पुरुषों से ऐयाशी करने वाली आत्ममुग्ध, बेलौस, बिन्दास महिला के रुप में छवि गढ़ ली. उसी समय स्वीडेन में एक जाने माने गणितज्ञ रहते थे उनका नाम था गोस्टा मिटैग लोफलर, गोस्टा स्वीडेन के जाने माने गणितज्ञ थे और यह भी

क्या शिक्षा और आधुनिक फिल्मी कल्चर हमारे सामाजिक संबंधों को भी निगल जाएगा क्या विवाह की बातें बीते दिनों की यादें बन जाएंगे

विवाह की बढ़ती उम्र पर खामोशी क्यों...?* 28-32 साल की युवक युवतियां बैठे है कुंवारे, फिर मौन क्यों हैं समाज के  कर्ता-धर्ता कुंवारे बैठे लड़के लड़कियों की एक गंभीर समस्या आज सामान्य रुप से सभी समाजों में उभर के सामने आ रही है। इसमें उम्र तो एक कारण है ही मगर समस्या अब इससे भी कहीं आगे बढ़ गई है। क्योंकि 30 से 35 साल तक की लड़कियां भी कुंवारी बैठी हुई है। इससे स्पष्ट है कि इस समस्या का उम्र ही एकमात्र कारण नहीं बचा है। ऐसे में लड़के लड़कियों के जवां होते सपनों पर न तो किसी समाज के कर्ता-धर्ताओं की नजर है और न ही किसी रिश्तेदार और सगे संबंधियों की। हमारी सोच कि हमें क्या मतलब है में उलझ कर रह गई है। बेशक यह सच किसी को कड़वा लग सकता है लेकिन हर समाज की हकीकत यही है, 25 वर्ष के बाद लड़कियां ससुराल के माहौल में ढल नहीं पाती है, क्योंकि उनकी आदतें पक्की और मजबूत हो जाती हैं अब उन्हें मोड़ा या झुकाया नहीं जा सकता जिस कारण घर में बहस, वाद विवाद, तलाक होता हैं बच्चे सिजेरियन ऑपरेशन से होते हैं जिस कारण बाद में बहुत सी बिमारी का सामना करना पड़ता है । शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल व लड़के की उम्र 21 स

श्री राम जी क्या शुद्र विरोधी नहीं थे क्या संबुक ऋषि का वध नहीं किया था क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भी सडयंत्र में फंसाया गया ?

श्रीराम के विषय मे उठाने वाले प्रश्नो के उत्तर श्रीराम जी पर लगाए जाने आरोप कितने सही हैं? क्या श्रीराम जी शूद्र विरोधी थे? क्या उन्होने शंबूक का वध किया था ? क्या उन्होने गर्भवती सीता को छोड़ दिया था? क्या उनका या उनके भाइयों का लवकुश से युद्ध हुआ था? क्या सीता जी धरती मे समा गई थी? इस लेख मे इन सब प्रश्नो का उत्तर दिया जाएगा। ** आजकल 2 पुस्तकें रामायण के नाम से जानी जाती है 1 वाल्मीकि रामायण 2 तुलसीदास जी की रामचरित मानस। इसमे से वाल्मीकि रामायण श्रीराम जी के समय मे लिखी गई है। आजकल प्राप्त वाल्मीकि रामायण मे 7 काण्ड (Chapter) हैं। अंतिम काण्ड उत्तर काण्ड है। तपस्वी शंबूक का वध , लवकुश से युद्ध तथा गर्भवती माता सीता जी का त्याग दोनों इसी काण्ड मे आते है। * परंतु सच्चाई यह है कि महर्षि वाल्मीकि ने जो रामायण लिखी थी उसमे 6 काण्ड ही थे। सातवा उत्तर काण्ड बाद मे (17 वी -18 वी शताब्दी मे ) मिलाया गया है। क्योकि उत्तर काण्ड महर्षि वाल्मीकि जी की रचना नहीं है इसलिए श्रीराम जी को तपस्वी शम्बूक का हत्यारा नहीं कहा जा सकता. उन्हें गर्भवती स्त्री माता सीता जी के त्याग का अपराधी भी नहीं

जिसके दिये गणित पर ही अमेरिका अपोलो को अंतरिक्ष में भेज सका था। आइंस्टीन की थ्योरी का विरोध करने वाले वैज्ञानिक का नाम क्या है

■जमाने ने मारे जवाँ कैसे कैसे, जमीं खा गयी आसमाँ कैसे कैसे! ●एक महानतम् विभूति को आज याद करें जो बिहार के आर्यभट्ट, रामानुजम और विश्वेसरैया एक साथ हैं। ●एक गणितज्ञ, वैज्ञानिक, खगोल शास्त्री और इंजीनियर एक साथ कोई कैसे हो सकता है? और आध्यात्मिक आयाम अलग! ....संगीत वाद्ययंत्र से भी अनुराग। ●आईये एक स्वानुभूत घटना वशिष्ट नारायण सिंह के बारे में आपको बतायें... बिहार, किशनगंज शहर में खगड़ा रेलवे क्रासिंग पर एक ओवरब्रिज बना था.... ....जो उद्घाटन के पहले ही गिर-ढह गया। पर उसका एक पाया-खँभा खड़ा था.... जैसे मुँह चिढ़ाने के लिये खड़ा रह गया हो। वहीं मेरी बाइक खराब हो गयी। बगल में एक मोटरसाइकिल मैकेनिक से बाइक ठीक कराने लगा। वहाँ बैठने पर एकाग्रता आयी.... तो बेहद खूबसूरत अक्षरों में खंभे पर हिन्दी में  लिखा देखा..... 【ये पुल छै माह 15 दिन में गिर जायेगा.....दस्खत... वशिष्ट नारायण सिंह】 मैं चौंका, चूँकि बाईक मैकेनिक बगल का था, मैंने उससे इस टिप्पणी के बारे में पूछा। मैंने यही समझा कि देशी ठर्रे का यहाँ ठेका है किसी केस्टो मुखर्जी ने लिख मारा होगा। मैंने वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में काफी कुछ सुन र