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Showing posts from October, 2018
सरदार की आम की टोकरी दोनों विश्वयुध्ध के दौरान विश्व की जनता का असंतोष, गुस्सा बढते देख बेंकर माफिया यहुदियों ने दुनिया पर राज करने का अपना पैंतरा बदला । उन के प्यादे अंग्रेज, डच, फ्रेंच जहां भी गुलाम देशों में राज करते वो सब देशों की जनता के लिये दुश्मन बन गये थे । उन को वापस खिंच लिया और जुठी आजादी के बहाने अपने स्थानिक प्यादों को बैठा दिये । भारत में भी यही हुआ । उनके प्यादे अंग्रेज जनता में अप्रिय हो गये थे तो कोइ चंद्र शेखर आजद या भगत सिंह ब्रिगेड उनको मार भगाये और भारत को सचमुच आजाद करा ले इस से पहले अपने प्यादे कोंग्रेसियों को भारत की लगाम देना जरूरी था । आजादी का श्रेय भले कोंग्रेस ने ले लिया लेकिन जाननेवाले जानते हैं की ना भारत आजाद है और ना कोंग्रेस के कारण ये आधी अधुरी आजादी मिली है । भारत के साथ दूसरे २० देश इस तरह ही आजाद हुए थे । उन देशों में ना कोइ गांधी था ना कोइ नेहरु और ना कोइ आजादीकी लडाई चली थी । तो इन गांधियों को सर पे बैठाने की कोइ जरूरत नही थी ।   १९४७ में जब भारत को जनता की नजरों में आजाद किया गया था तो माउंट बेटन और सरदार पटेल के बीच मजाक होता रहता था
राम कथा के दर्शन थाई लैंड से भारत के बाहर थाईलेंड में आज भी संवैधानिक रूप में राम राज्य है l वहां भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज ” राज्य कर रहे हैं , जिन्हें नौवां राम कहा जाता है l* *भगवान राम का संक्षिप्त इतिहास* वाल्मीकि रामायण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ एक ऐतिहासिक ग्रन्थ भी है , क्योंकि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे, रामायण के बालकाण्ड के सर्ग, 70 / 71 और 73 में राम और उनके तीनों भाइयों के विवाह का वर्णन है, जिसका सारांश है। मिथिला के राजा सीरध्वज थे, जिन्हें लोग विदेह भी कहते थे उनकी पत्नी का नाम सुनेत्रा ( सुनयना ) था, जिनकी पुत्री सीता जी थीं, जिनका विवाह राम से हुआ था l राजा जनक के कुशध्वज नामके भाई थे l इनकी राजधानी सांकाश्य नगर थी जो इक्षुमती नदी के किनारे थी l इन्होंने अपनी बेटी उर्मिला लक्षमण से, मांडवी भरत से, और श्रुतिकीति का विवाह शत्रुघ्न से करा दी थी l केशव दास रचित ”रामचन्द्रिका“ पृष्ठ 354 (प्रकाशन संवत 1715) के अनुसार, राम और सीता के पुत्र लव और कुश, लक्ष्मण और उर्मिला के पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु , भरत और मांडवी के प

नवरात्रि में शक्ति जागरण करने का यह सर्वोत्तम काल माना जाता है

   आओ मनाते हैं #नवरात्रि _____________________________ शक्ति उपासना के लिये नवरात्रि का त्यौहार भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व मे जहाँ भी हमारे #हिन्दू भाई-बहन हैं... उन सब जगहों पर वो अपनी अपनी व्यवस्था के अनुसार मनाते हैं... शक्ति उपासना का सर्वश्रेष्ठ समय है नवरात्रि... का काल...जो आश्विन और चैत्र के समय पड़ता है इस समय का #वातावरण बहुत अनुकूल होता है... ना सर्दी का प्रभाव अधिक होता है...और गर्मी तो लगभग समाप्त सी हो जाती है.. सुरम्य वातावरण #ध्यान साधना और शक्ति उपासना के लिये सर्वोत्तम है... यदि आप शारीरिक शक्ति की बात करें तो यह काल व्यायाम आदि के लिये भी सर्वश्रेष्ठ काल है.. शरीर मे #ऊर्जा और उत्साह खूब होता है... यह जो आश्विन और चैत्र का काल होता है इस समय सूर्य अपने दक्षिणी गोलार्ध से  उत्तरी गोलार्ध मे #प्रवेश करता है... इन दोनों सन्धियों के बीच रोग के आक्रमण की सम्भावना भी अधिक होती है... इसीलिए #कार्तिक के अन्तिम आठ दिन वह #अगहन के प्रथम आठ दिनो को आचार्यों ने यमदंष्ट्रा .. यमराज की दाढ़ कहा है इन दिनो पित्त,ज्वर के रोग प्रकुपित न हो... उससे बचाव के लिए यह
 कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े हुए  सहरी कूल डूड बच्चें भले अपनी प्राचीन संस्कृति को न माने पर आज भी ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई युक्तियां काम कर रही हैं । शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की लिखी सुश्रुत संहिता आज 2500 वर्षों बाद भी चिकित्सा क्षेत्र में मार्गदर्शक बनी हुई है । यह है भारत का वह सनातनी ज्ञान जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था । चार सालों से एक विदेशी महिला की नाक की सर्जरी अटकी हुई थी । कोई भी दवाई काम में नहीं आ रही थी। लाख कोशिशों के बाद वह इलाज के लिए भारत आई। डॉक्टरों ने यहां शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के तकरीबन ढाई हजार साल पुराने तरीके अपनाए और उसकी सफल सर्जरी कर नई नाक तैयार की । डॉक्टरों ने महिला के गाल की खाल की मदद से यह नई नाक बनाई । एक न्यूज एजेंसी के अनुसार, शम्सा खान (24) मूलरूप से अफगानिस्तान की रहनेवाली हैं । आतंकी हमले में चार साल पहले उन्हें गोली लग गई थी । वह उस हमले में बाल-बाल बचीं, पर कुछ जख्मों ने उनकी नाक का हुलिया बुरी तरह बिगाड दिया था। वह इसके चलते ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। यहां तक कि उनकी सूंघने की क्षमता भी चली गई थी । इलाज की आस में उन्ह
सबसे बड़ा सच मौत - माइकल जैक्सन डेढ सौ साल जीना चाहता था । किसी के साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था । लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था । उसकी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे । जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे । उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था । उसको व्यायाम करवाने के लिए 15 लोगों को रखा हुआ था । माइकल जैकसन अश्वेत था उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था । अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया । और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की । नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन ( 3 अपैल 1998) को जन्म दिया। 18 मई 1995 में किंग ऑफ पॉप ने रॉक के शहजादे एल्विस प्रेस्ली की बेटी लिसा प्रेस्ली से शादी कर ली। एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवॉर्ड्स में इस जोड़ी के ऑनस्टेज किस
भारत में पैकेट बंद दूध: आओ हम सब मिलकर जहर पियें!! क्या आप पैकेट का दूध पीते हैं?? क्या आपके मिल्क में भी आ जाती है मोटी मलाई की पर्त? अगर हाँ, तो मुबारक हो भाइयों, जल्दी ही प्रभु से मिलन का रास्ता खुल रहा है आपके लिए.... * वर्ष 1830 | Germany के एक वैज्ञानिक ने एक अनोखे पदार्थ की खोज की जिसका नाम उन्होंने रखा मेलामाइन | सीमेंट जैसा दिखने वाला सफ़ेद रंग का यह पाउडर बहुत चमत्कारी था | जैसे ही इसे वैज्ञानिकों ने formaldehyde के साथ मिलाया, और बहुत अधिक ताप पर गर्म किया तो यह पदार्थ एक moldable मटेरियल में बदल गया जो virtually unbreakable  था | इस पदार्थ को अपने हिसाब से सांचों में ढालकर विभिन्न उद्योगों जैसे प्लास्टिक उद्योग, खाना खाने के बर्तन, चाय के कप, और फ्लोर की चमकदार टाइल्स बनाने के लिए प्रयोग किया जाने लगा | किन्तु किसी ने सच ही तो कहा है कि इंसान की डीड्स की पूर्ति के लिए तो प्रकृति, ईश्वर और वैज्ञानिकों ने मिल कर बहुत कुछ दिया पर ग्रीड्स को शांत करने के लिए तो जो भी दिया वही कम!! दुष्ट बुद्धी इंसान ने धीरे धीरे पता चला लिया कि मेलामाइन में 67% नाइट्रोजन
इस मुस्लिम को है चारों वेदों का ज्ञान, संस्कृत में कमाया विदेशों में भी यूपी की अवधी संस्कृति और गंगा-जमुनी परंपरा पूरी दुनिया में अपनी सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध है। इस संस्कृति में हर धर्म के मानने वाले एक-दूसरे से न सिर्फ परंपरा बल्कि भाषा और संस्कारों से भी गुंथे हुए हैं। इसी अवधी संस्कृति के ध्वजवाहक हैं पंडित हयात उल्ला चतुर्वेदी। चौंकिए मत, 75 साल के हयात उल्ला चतुर्वेदी पांच वक्त के नमाजी भी हैं और चारों वेदों के जानकार भी। लेकिन उनके नाम की कहानी उनसे भी ज्यादा दिलचस्प है। यूपी के कौशांबी जिले के छीता हररायपुर निवासी हयात उल्ला बचपन से ही हिंदी और संस्कृत के बड़े प्रेमी हैं। युवा होने पर वह इलाहाबाद के एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में हिंदी और संस्कृत के अध्यापक हो गए। साल 2003 में जब वह स्कूल से रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद अब हयात उल्ला मेहगांव इंटर कॉलेज में नि:शुल्क हिंदी और संस्कृत पढ़ा रहे हैं। साल 1967 में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में संस्कृत के देश भर के विद्वान इलाहाबाद में जमा हुए थे। वहीं हयात उल्ला के संस्कृत ज्ञान और वेदों की प्रति प्रेम से प्रभावि