आजादी की कीमत ऐसे चुकाई है... .........नीरा आर्य की आत्मकथा से......... बारी और पेटी अफसरों की जिस्म की भूख शांत करने का ठेका भी कैदी औरतों ने ही लिया था, हरामी पिल्लों के घर में शायद माँ-बहन थी ही नहीं...अगर कोई ऐसा करने से मना करती तो उसे फाँसी तक भी लटका दिया जाता था या फिर शर्मगाह में लाल मिर्च भरवा दी जाती। अगर कोई महिला कैदी उनकी जिस्म की भूख शांत करने का विरोध करने के लिए पत्थर आदि उठा लेती, तो जिस पत्थर को वह उठाती (मारने के लिए हथियार तो थे ही नहीं, इसलिए बहुधा आस-पास पड़े हुए पत्थरों के टुकड़ों से ही पीड़िताएँ अपना बचाव कर सकती थीं। यदि विरोध करते समय पास पड़े कोई औजार कुल्हाड़ी, फावड़ा आदि हाथ में उठा लिया,) उसे तौला जाता और अपराधन से कह दिया जाता कि यदि इतना भारी पत्थर (1 पौंड से अधिक) तुमने मार दिया होता, तो दूसरा तो मर ही गया होता। यह तो उसका सौभाग्य था कि तुम मार न पाई और उसके प्राण बच गए। बस, उस पत्थर के वजन पर ही कानून की इतिश्री हो जाती और मारने की इच्छा करनेवाली फाँसी पर लटका दी जाती थी। कुछ औरतों को जंगल से सूखी लकड़ी, शहद आदि लाने का काम दिया जाता था, यदि कोई औरत भागने
Ajay karmyogi अजय कर्मयोगी शिक्षा स्वास्थ्य संस्कार और गौ संस्कृति साबरमती अहमदाबाद परंपरा ज्ञान चरित्र स्वदेशी सुखी वैभवशाली व पूर्ण समाधान हेतु gurukul व्यवस्था से सर्वहितकारी व्यवस्था का निर्माण