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Showing posts from May, 2018
RO WATER का षड़यंत्र - विदेशी कंपनियों का ऐसा षड्यंत्र जिससे आज गाँव भी नहीं बचा । जिस देश में पानी बेचना पाप माना जाता है आज उस देश में पानी 20 रूपये लीटर बेचा जा रहा है । मशीनों के लिए प्रयोग होने वाला RO वाटर आज प्रत्येक घरों में पहुँच चुका है । एक फैशन सा होता जा रहा है कि हम भी RO WATER पीते हैं इसलिए वीमार नहीं पड़ेंगे । - पानी के अन्दर बहुत सारे मिनरल्स होते हैं लेकिन जब इनको काटरेज फ़िल्टर से पास किया जाता है तो बहुत सारे मिनरल्स ख़त्म हो जाते हैं जैसे- बी-12 ख़त्म हो गया तो आपको पता भी नहीं चलेगा । 1 लीटर RO WATER बनाने के लिए 2 लीटर पानी प्रयोग किया जाता है । 50% पानी WASTE हो जाता है । - सामान्यतः मानव के लिए 7 से 7.5 Ph , 200 से 250 TDS , 50 Hardness Vailue का पानी पीना चाहिए । लेकिन जहाँ पर सप्लाई का पानी ही 200 TDS, 10 HARDNESS का आ रहा हो वहां RO का क्या काम है । - कोई भी RO वाटर की क्वालिटी मेन्टेन नहीं करता है , सिर्फ आपको साफ़ पानी देता है और जो बोतलों में पानी मिलता है उनकी TDS लगभग 10 के आसपास होती है तथा उसमे पानी की PH बढ़ाने के लिए व मिनरल्स को मेन्टेन रखने क

गायन वादन के अतिरिक्त अनंत कलाएं जो गुरुकुल के विषय का ज्ञान

प्शदचीन काल में भारतीय शिक्षा-क्रम का क्षेत्र बहुत व्यापक था। शिक्षा में कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थीं कलाओं के सम्बन्ध में रामायण, महाभारत, पुराण, काव्य आदि ग्रन्थों में जानने योग्य, सामग्री भरी पड़ी है; परंतु इनका थोड़े में, पर सुन्दर ढंग से विवरण शुक्राचार्य के 'नीतिसार' नामक ग्रन्थ के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण में मिलता है। उनके कथनानुसार कलाएँ अनन्त हैं, उन सबके नाम भी नहीं गिनाये जा सकते; परंतु उनमें 64 कलाएँ मुख्य हैं। कला का लक्षण बतलाते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिसको एक मूक (गूँगा) व्यक्ति भी, जो वर्णोच्चारण भी नहीं कर सकता, कर सके, वह 'कला' है।[1] केलदि श्रीबसवराजेन्द्रविरचित 'शिवतत्त्वरत्नाकर' में मुख्य-मुख्य 64 कलाओं का नामनिर्देश इस प्रकार किया हे- इतिहास आगम काव्य अलंकार नाटक गायकत्व कवित्व कामशास्त्र दुरोदर (द्यूत) देशभाषालिपिज्ञान लिपिकर्प वाचन गणक व्यवहार स्वरशास्त्र शाकुन सामुद्रिक रत्नशास्त्र गज-अश्व-रथकौशल मल्लशास्त्र सूपकर्म (रसोई पकाना) भूरूहदोहद (बागवानी) गन्धवाद धातुवाद रससम्बन्
.इतिहास के तथ्यों को छुपाते इतिहासकार केके मुहम्मद अयोध्या के स्वामित्व के संबंध में 1990 में राष्ट्रीय स्तर पर बहस ने जोर पकड़ा। इसके पहले 1976- 77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या उत्खनन में भाग लेने का मुझे अवसर मिला। प्रो बीबी लाल के नेतृत्व में अयोध्या उत्खनन की टीम में 'दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी' के 12 छात्रों में से मैं एक था। उस समय के उत्खनन में मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला। किसी ने इसे समग्रता के साथ नहीं देखा। एक पुरातत्वविद की ऐतिहासिक सोच के साथ हम लोगों ने उसे निस्संग होकर देखा। उत्खनन के लिए जब मैं वहां पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के स्तंभ थे। उन स्तंभों का निर्माण 'ब्लैक बसाल्ट' पत्थरों से किया गया था। स्तंभ के नीचे भाग में 11वीं-12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे। मंदिर कला में पूर्ण कलश आठ ऐश्वर्य चिन्हों में एक हैं। Read This - भारतीय सेना में जासूसी 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के पहले इस तरह के एक या दो स्तंभ नहीं, 14 स्तंभों को हमने देखा। पुलिस सुरक्षा
 रोज़ सुबह एक ग्लास ताज़ा छाछ पीना अमृत सेवन के सामान है. इससे चेहरा चमकने लगता है. - खाने के साथ छाछ पीने से जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।छाछ कैल्शियम से भरी होती है। - इसका रोजाना सेवन करने वाले को कभी भी पाचन सबंधी समस्याएं प्रभावित नहीं करती हैं। खाना खाने के बाद पेट भारी हो जाना अरूचि आदि दूर करने के लिए गर्मियों में छाछ जरुर पीना चाहिए। - एसिडिटी- गर्मी के कारण अगर दस्त हो रही हो तो बरगद की जटा को पीसकर और छानकर छाछ में मिलाकर पीएं। छाछ में मिश्री, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर रोजाना पीने से एसिडिटी जड़ से साफ हो जाती है। - रोग प्रतिरोधकता बढाए- इसमें हेल्‍दी बैक्‍टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं साथ ही लैक्‍टोस शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है, जिससे आप तुरंत ऊर्जावान हो जाते हैं। - कब्ज- अगर कब्ज की शिकायत बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर छाछा पीएं। पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं। - खाना न पचने की शिकायत- जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है। उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सें

loksabha tv pe gurukul siksa pe ajay karmyogi ka margdarsan

*अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए किस हद तक जा सकता है उसका एक उदाहरण आपके सामने है !! *अमेरिका का एक अखबार है जिसका नाम है* *Washington post ! उसमे july 1979 में front page पर एक खबर आई ईरान और इराक नाम के दो पड़ोसी देश ! इनके बीच मे एक क्षेत्र है उसको अरबी भाषा मे shatt-al-arab कहते हैं उसमे बहुत अधिक मात्रा मे तेल छिपा हुआ है !* *खबर जब छपी तो उसमे reference दिया गया कि अमेरिका के जो अन्तरिक्ष मे सैटेलाइट है उनसे मिली जानकारी के अनुसार !* *तो ईरान और इराक दोनों देशो के कान खड़े हो गए और दोनों देशो ने कहना शुरू किया ये जो क्षेत्र है ये हमारा है !दोनों देशो ने एक साथ एक क्षेत्र पर अधिकार जमाना शुरू किया तो झगड़ा होना स्वाभाविक था* *दोनों का झगड़ा UNO मे गया !UNO काम करता है अमेरिका के इशारे पर !क्यूंकि अमेरिका के funds पर UNO की बहुत सी नीतिया चलती है* *1979 मे ईरान – ईराक का मामला UNO मे गया पर UNO ने इस पर कोई फैसला नही दिया !लिहाजा दोनों देशो मे एक दूसरे के खिलाफ युद्ध करने का तय कर लिया !* *इधर अमेरिका ने सदाम हुसेन को हथियार बेचना शुरू किया ! और उधर ईराक को हथ
महर्षि वाग्भट के अष्टांगहृदयम में दातून के बारे में बताया गया है। वे कहते हैं कि दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो। कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है। उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है जिसमे बबूल , अर्जुन, आम , अमरुद जामुन,महुआ,करंज,बरगद,अपामार्ग,बेर,शीशम,बांस इत्यादि है। ऐसे 12 वृक्षों का नाम उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं। चैत्र माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है, बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है। आप चाहें तो साल भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दें। इस अवधि में मंजन कर ले। दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है। वे कहते हैं कि आपके स्थान पर उपलब
लेकिन आजकल बच्चें पर spoon-feeding माहौल बनाया जा रहा है आगे के लिए घातक है ajay karmyogi पुरानी बात है ....एक लड़का था ...बहुत brilliant था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया ....हमेशा 100 % score किया science में ....अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं ...सो उसका भी selection हो गया ....IIT CHENNAI में ........वहां से B Tech किया .....वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया ...वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की .......M Tech वगैरा कुछ किया होगा .....फिर वहां university of california से MBA किया .......अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है ...सुनते हैं की वहां भी हमेशा टॉप ही किया ......वहीं नौकरी करने लगा ...बताया जाता है की 5 बेडरूम घर था उसके पास .........शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई थी ............बताते हैं की ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में .........अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती ........एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में .....पढ़ लिख के इ
भारत का आर्थिक चिंतन और मनु ==================== मनुष्य अथवा समाज की नितांत आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा भौतिक उत्कर्ष के लिए अर्थ की आवश्यकता होती है। यद्यपि भारत एक धर्मप्रधान देश रहा है किन्तु भारतीय चिंतन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, के संतुलन पर बल दिया जाता रहा है। अर्थ को बाकी तीनों का मूल माना जाता रहा है। अर्थ की महत्ता को परिभाषित करते हुए आचार्य कौटिल्य ने कहा है कि धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में अर्थ प्रधान है। धर्म और काम अर्थ पर निर्भर हैं। भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है। अनेक पाश्चात्य विद्वान भी भारतीय सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता की सीमाओं से परे विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता मानने लगे हैं। स्वाभाविक है कि यहाँ आर्थिक चिंतन की भी दीर्घ और सुदृढ़ परंपरा रही है। समस्त भारतीय वांग्मय यथा वेदों, धर्मशास्त्रों, स्मृतियों विशेषकर मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति नारद, बृहस्पति आदि, शुक्रनीति, कौटिल्य अर्थशास्त्रा, कामान्दक नीतिसार में भरपूर अर्थचिंतन है। भारत के आर्थिक इतिहास का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि प्राचीन काल से लेकर 19वीं शताब्दी
पोस्ट लंबी है, उम्मीद करता हूँ जातिय सीना चौड़ा करने वाले जरूर पढ़े! "जाति" की वास्तविकता और अगर उचित लगे तो इसे शेयर भी करें एक मित्र ने लिखा की हम जातिवाद पर कोई चर्चा नहीं करेंगे। मैं समझता हूँ की यह ठीक नहीं रहेगा। चर्चा करने से उसकी खामिया और उपलब्धियों को समझ सकेंगे। उसी विषय पर एक छोटी सी प्रस्तुति : भारतीय जाती व्यवस्था पर ही टिकी थी भारत की अर्थव्यवस्था | भारत प्राचीन काल से व्यापार का केंद्र रहा है | सीन हर्किन के अनुसार सत्रहवी शताब्दी तक भारत और चीन का हिस्सा दुनिया की जीडीपी में लगभग ६० से ७० % तक हुआ करता था | भारत का व्यापार दुनिया के कई देशों में फैला हुआ था | यही नहीं कैम्ब्रिज के इतिहासकार एंगस मेडिसन के अनुसार – १७०० तक दुनिया की आय में भारत का २२.६ % हिस्सा था , जो लगभग सारे यूरोप की आय के हिस्से के बराबर था | पर अंग्रेजों के आने के बाद उनके शासन के बाद १९५२ तक यह हिस्सा घटकर  सिर्फ ३.८ % तक रह गया | इसका मुख्य कारण मुख्यतः अंग्रेजों की तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत विरोधी नीतियाँ थी , इन सब कारणों से भारत के उद्योग नष्ट होते चले गए तथा किसान व