आय और व्यय का एक समुचित और सधा हुआ सदुपयोग जीवन में खुशियां और आनंद के साथ आदर और सम्मान का पात्र बनाता है वहीं जब इसका लेखा-जोखा बिगड़ जाता है तो व्यक्ति नराधम बन जाता है जैसे ज्यादा व्यय करने वाला सदाचारी नहीं रह सकता जिससे वह नैतिक पतन को प्राप्त हो जाता है वही कम व्यय करने वाला सहज सरल और परोपकारी बन जाता है पर यह आधुनिक अर्थशास्त्र व्यय प्रधान अर्थव्यवस्था का पोषक है इसमें शुभ लाभ संस्कृति पनप ही नहीं सकती यह सब कुशिक्षा का ही परिणाम हैैं गुरुकुल व्यवस्था की सृजन से ही आप इस चक्रव्यूह से बाहर निकल सकते हैं केवल एक ही मार्ग आपको बचा सकता है
रिजर्व बैंक भवन के मुख्यद्वार पर एक ओरलक्ष्मी की विशाल प्रतिमा है और दूसरी ओर यक्षराज कुबेर की ।
कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में धनागार में कुबेर की प्रतिमा स्थापित करने का निर्देश दिया है !जो स्थान देव-जाति में इन्द्र का है ,वही स्थान यक्षों में कुबेर का है ।
कुबेर ने यक्षों का व्यापार बढ़ाया ,स्वर्ण की खोज की , इन्द्र से मित्रता स्थापित की ।सोने को सबसे पहले कुबेर ने ही पिघलाया था !
गंधर्व-जन इनके मित्र थे ।
कुबेर शिव के उपासक थे । अलकापुरी इनकी राजधानी थी ।
गंधमादनपर्वत , मेरुपर्वत और कैलास-पर्वत इनके अधिकार में थे ।
इनके पास स्वर्ण का अक्षयकोश माना जाता है ।
राक्षस-गण यक्षों की ही एक शाखा थी ।
मणिभद्र ,पूर्णभद्र , मणिमत् ,मणिकंधर आदि कुबेर के गण थे । इनकी राजसभा में एक सौ नारियां[अप्सरायें] थीं ,
कुबेर विश्रवा के पुत्र थे , इनकी मां का नाम इड़विड़ा था ! नलकूबर इनका पुत्र था ।मीनाक्षी को कुबेर की पुत्री बतलाया गया है !कुषाण-काल की मूर्तियों में लक्ष्मी को कुबेर-पत्नी के रूप में अंकित किया गया है ! इसके पास पुष्पक- विमान था , जो बाद में रावण ने इससे युद्ध करके लिया था ।
दश दिक्पालों में एकब कुबेर भी हैं ,उत्तर-दिशा का स्वामी , इनको लोकपाल भी कहा जाता है !
वेदमन्त्रों ने कुबेर को वैश्रवण , महाराज और राजाधिराज के रूप में स्मरण किया है >>
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे !
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो दधातु !
[विश्रवा के चार पत्नियों मॆं से इड़विड़ा के कुबेर और केशिनी के रावण ,कुंभकर्ण , विभीषण पुत्र हुए थे ।]
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रिजर्व बैंक के सामने जो प्रतिमा हैं उनका किस्सा बड़ा रोचक है.
शांतिनिकेतन के कलाकार रामकिंकर बैज ने यह कलाकृति बनाई थी. स्वयं इंदिरा गांधी ने उनके नाम का सुझाव दिया था. चौबीस फुट ऊँची दोनों कलाकृति चार चार फुट के छह खंड में है.
इसके लिए उपयुक्त पत्थर ढूंढने में रामकिंकर को ज्यादा समय लगाया.
अंत में कांगड़ा में उनके मन मुताबिक पत्थर मिला.
कलाकृति में यक्ष के हाथ में उद्यम का प्रतीक मशीन का पहिया है. लक्ष्मी या यक्षी के हाथ में सम्पन्नता का प्रतीक धान की बाली है.
मणिभद्र यक्ष को शताब्दियों तक समृद्धि का प्रतीक माना जाता रहा है. डॉ मोतीचंद्र के ' सार्थवाह' में विस्तृत वर्णन है
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अजय कर्मयोगी गुरुकुलम अहमदाबाद