जब १५दिसंबर१९९४ के दिन जो किसानों, लघु उद्योग, सेवा क्षैत्र, सहित तमाम आर्थिक क्षैत्र की लुटिया डुबोने के लिए WTO से गैट करार किया गया !
जिसके तहत कृषि क्षैत्र की शर्तों में किसानों को सहायता थोड़ी थोड़ी करके खत्म करना, विदेशी कृषि उत्पादों तेल, फल , अनाज,मांस का तय शर्तों से आयात करना, वैसे इस समझौते को लागु तो १जनवरी २००५ से किया जाना था पर, विदेशियों के इशारों पर नाचने को हमारे नेता जैसे आज तत्पर है
किसानों को बर्बाद करने के क्रम में जानिए कैसे भारत की पीली क्रांति (सरसों)का अंत किया गया!
कई बार मुझे लगता है, कि भारत एक देश नहीं ‘एक आदमी’ है – वो ‘आदमी’ चलता है तो देश चलता है, वो ‘आदमी’ रुकता है तो देश रुक जाता है; वो ‘आदमी’ जगता है तो देश जगता है, और वो ‘आदमीं’ मर जाता है तो देश मर जाता है!
यह तेल का अघोषित युद्ध था! इतिहास गवाह है, कि तेल ने तो देश के देश तबाह करवा दिए – भारत के उस ‘एक आदमीं’ को जिससे देश चलता और रुकता है – तबाह करना क्या बड़ी बात थी!
भारत के दुश्मनों को भारत का यह पासवर्ड समझ में आ गया था! वर्ष 1991 में श्री राजीव गांधी की हत्या करवा दी गयी! और उसके बाद शुरू हुआ भारत में राजनीतिक अस्थिरता का दौर!
कोई सरकार साल भर चली तो कोई सिर्फ 16 दिन| भारत की राजनीति के शीर्ष पर बैठा वो ‘आदमी’ बदलवाया जाता रहा – और तब तक बदलवाया जाता रहा जब तक कि तेल के विदेशी षड्यंत्रकारियों को उनके मतलब का ‘आदमी’ नहीं मिल गया!
1994-95 में जब Sri P. V. Narasimha Rao नाम के एक राजनीतिज्ञ भारत की राजगद्दी पर बैठे थे – तभी तेल के सौदागरों नें देश में अपनी घुसपैठ शुरू कर दी थी ! यही वह समय था जब भारत ने 1986 में शुरू हुआ तेल के आयात पर प्रतिबन्ध धीरे-धीरे उठाना शुरू कर दिया था!
1 जून 1996 को H. D. Deve Gowda नाम के एक राजनीतिज्ञ नें भारत की कमान सम्भाली !
वैसे ही २३जुलाई १९९६ को श्री देवगौड़ा ने एक दशक पुराने मई १९८६में राजीव गांधी द्वारा बनाए गए Technology mission on oil seeds के तहत edible oil के नाम पर लगाया प्रतिबंध हटाकर Open General licence (OGL) के नाम पर नई नीति की घोषणा कर दी, जैसे ही प्रतिबंध हटा विदेशियों ने अपना तेल भारतीय बाजार में भर दिया जो भारत निर्यातक था ,१९९६-९७में तेल आयात का बिल आया १बिलियन अमेरिकी डॉलर !
विदेशी पाम आयल और अमेरिका के सुअरों के खाने की सोया केक बनाने के बाद बचा सोयाबीन का रिफाइंड आयल भारत के बाजारों में धकेला जा चुका था! भारत का मेहनती किसान सदमें में था! उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि वो अपने उगाये देसी तेल का करे तो क्या करे!
भारत की पीली क्रांति की मौत हो चुकी थी!!
किंतुं उन विदेशी खूंखार अजगरों का मन अभी भी नहीं भरा था! उनकी सिर्फ एक फुंकार ने भारत के मेहनती किसान को कंगाल तो बना दिया था, पर अभी भी वह किसान साँसे ले रहा था! देश के शीर्ष पर बैठे, भारत को चलाने वाले उस ‘एक आदमी’ को तो उन्होंने पहले ही #लोरियां दे कर सुला दिया था शायद! वो आदमीं सो गया तो देश को तो सोना ही था!
और जब देश सो रहा था, उन अजगरों नें दिल्ली के बाजारों में जितना भी भारत के मेहनती और #कंगाल किसानों द्वारा उगाया गया देशी तेल का स्टॉक था, उस सारे के सारे स्टॉक में आर्जीमोन, डीजल, waste आयल, न जाने क्या क्या मिलवा दिया! यह समय था 1997-1998 का| यही समय था जब हम भी गाँव में सुना करते थे- कि देसी तेल, एवं देसी डालडा में सुअर की चर्बी मिली हुयी है! खुल्ला सरसों तेल खाने से #ड्राप्सी बिमारी का प्रोपेगंडा उसी समय चलाया गया !
अजगर का काम हो चुका था!
#अजगर में भारत को चलाने वाले सोये हुए उस ‘एक आदमी’ को फिर से #नींद से उठाया और उसे एक नयी घोषणा करने का आदेश दे दिया!
August 27, 1998 को भारत के उस एक आदमीं नें फिर से मुंह खोला – और आदेश दिया कि दिल्ली में भारत के कंगले किसानो द्वारा उगाये गए देसी तेल में डीजल मिला है – इसलिए यह देसी मस्टर्ड बिलकुल नहीं बिकेगा! बिकेगा तो सिर्फ और सिर्फ – विदेशी सोया का तेल !
August 27, 1998 को उस ‘आदमीं’ नें सोयाबीन के तेल के फ्री इम्पोर्ट की पालिसी की घोषणा कर दी और साथ ही साथ मुहर लगा दी देश के कंगले तेल किसानों के अंतिम संस्कार की तैयारियों पर! पूरे देश नें मरे हुए किसानों की #अर्थियों पर सोने जैसा चमकता हुआ सोयाबीन का रिफाइंड तेल खरीद-खरीद कर चढ़ाया| और छुट दी गई कि #पाम_तेल को किसी भी तेल में मिलाकर बेचो, स्वास्थ्य विभाग चुं नहीं करेगा 🙄
अपने इस कर्तव्य की इति-श्री करके देश नें फिर चैन की सांस ली और पुनः सो गया!
इसी प्रकार #गैट_करार लागु करवाने के कदम के अंतर्गत विदेशी #कृषि_उत्पादों को डंप किया गया !
किसी किसान बंधु से पुछिएगा १९९५/९८के समय किसानों पर नाममात्र का कर्ज था , मुझे याद है बचपन में कपड़े उधार लाते थे , जिसे जब भी मालताल मंडी में बेचते और चुका देते थे ! खाद और कुछ नकद राशि गांव की सहकारी समिति से उधार मिल जाया करती थी ! साहुकार सेठजी २रूपया सैंकड़ा मासिक ब्याज लेते थे तो बड़ी सावधानी रखते बिना जरूरत का या अतिआवश्यक न हो तब तक कोई खरीद नहीं करते थे !
अब इन समझौतों से किसानों की हालत पतली हो रही थी तब १९९९/२०००के साल में बैंकों ने उधारीकरण (जिसे सरकार उदारीकरण कहती हैं) की नीति के चलते गांव गांव जाकर किसान क्रेडिट कार्ड बनाना शुरू किए , जिससे किसान अपने लागत की पुर्ति के लिए बैंकों पर निर्भर होते गए ! वैश्विक षड्यंत्रों समझौतों से होने वाले घाटे का पता ही ना चले इसके लिए कर्ज सीमा बढ़ाई जाती रही और आज हालत ये है कि कोई किसान इस कर्ज को चुकाने की हालत में नहीं है ! अब तो ये होता है कि जैसे तैसे किसान उस कर्ज का ब्याज कबाड़ कर जमा करवाता है और बैंक उसे पुरा जमा मानकर पुनः नया कर्ज जारी कर देती है !
और इसी उधारीकरण के हाथ चलते किसानों को बेल की जरूरत थी पर उधार में किश्तों पर हाथी (ट्रैक्टर) खरीद लिया!
किसानों की आमदनी घटती गई इधर भारत में आई IT कंपनियों ने बहुत ही महंगे दामों पर नौकर रखे तो उस क्षैत्र में बच्चों को बेहतर महंगे मजदूर बनाने के लिए भी कर्ज लिए जमीने बेची, कुछ सफल भी हुए पर सीमित मांग पर पुरी इंडस्ट्री खड़ी हो गई जिसका बबल फुटना ही था , वो फुटा भी !
इन सभी परिस्थितियों, वैश्विक षड्यंत्रों और समझौतों, स्वयं के विवेक की कमी जैसे कारणों के चलते किसान कर्ज में डुबते गए और आज हालत ये हो गई है कि प्रतिदिन औसतन भारत में ३५किसान आत्महत्या करते हैं !
#राष्ट्रपुरूष कहे जाने वाले शख्स को अपने नियंत्रण में लेकर धनमाफिया राज कर रहे हैं!
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अजय कर्मयोगी गुरुकुलम अहमदाबाद